लड़ लो -झगड़ लो मगर बोलचाल बंद मत करो
सदा याद रखना, भले ही लड़ लेना-झगड़ लेना, पिट जाना-पीट देना, मगर बोलचाल बंद मत करना, क्योंकि बोलचाल के बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते है। गुस्सा बुरा नहीं है। यह मानव स्वभाव है लेकिन गुस्से के बाद आदमी जो बैर पाल लेता है, वह बुरा है। पालते गुस्सा तो बच्चे भी करते है, मगर बैर नहीं वे इधर झगड़ते हैं और उधर अगले ही क्षण फिर एक हो जाते हैं। कितना अच्छा रहे कि हर कोई बच्चा ही रहे। कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जो गलती से प्रेरणा लेकर उससे लाभ उठाते हुए आगे के लिए सावधान हो जाते है और कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिन्हें कभी अपनी गलती का अहसास ही नहीं होता और वे जिन्दगी भर ठोकरें खाते रहते है। क्षमापना का दिन साल भर का हिसाब किताब पूरा कर लेना है। कल से नया खाता खुलेगा, नए बहीखाते होंगे, पर इस नए बहीखाते में पुराने बहीखाते की बैलेंस शीट नहीं होगी। सालभर में व्यक्ति ने जो भी बैर-विरोध किया हो, उसके लिए क्षमा याचना करता है और मिच्छामि-दुक्कड़म्' बोलता है।