चार मूर्ख

 एक गाँव में एक प्रसिद्ध संत का आगमन हुआ। उसी गाँव में चार मूर्ख


मित्र भी निवास करते थे। संत का स्वागत-सत्कार देख, उन्हें बड़ी उत्सुकता हुई, पूछा तो पता चला कि संत ने मौन रहकर गहन तपस्या की है और बहुत सी सिद्धियों के स्वामी भी हैं। बस, फिर क्या था, मूर्खों ने सोचा कि सम्मान प्राप्त करने का सबसे सुगम उपाय यही है। चारों ने एक दीया लिया और जंगल में एक अँधेरी गुफा ढूँढ़कर उसमें जा बैठे। निर्णय किया कि मौन रहेंगे तो देखा-देखी सिद्धियाँ हमारे पास दौड़ी चली आएँगी, फिर सम्मान मिलने में क्या देरी है। थोड़ा वक्त ही गुजरा था कि दीये की लौ लपलपाने लगी। उनमें से एक बोला— “अरे कोई दीये में तेल तो डालो।" दूसरा तुरंत बोला – "बेवकूफ! बातें थोड़ी करनी थीं।" तीसरा कहने लगा- "तुम दोनों मंदबुद्धि हो । मेरी तरह चुप नहीं बैठ सकते ?" चौथा भी कहाँ शांत रहने वाला था, वह बोला –"सबके सब बोल रहे हो, सिर्फ मैं हूँ कि चुप बैठा हूँ।" मूढ़ ऐसे ही अनर्थ के प्रपंचों में समय गँवाते हैं; जबकि बुद्धिमान विवेक का उपयोग कर, जीवन को समर्थ व सुदृढ़ बनाते हैं ।

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