हाउ टू विन फ्रेंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपल

हाउ टू विन फ्रेंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपल.






किसी ने ठीक ही कहा हिया, किसी भी इंसान को प्रभावित कर उनसे

काम निकलवाना एक कला होती है.....और इस किताब में दिए गए उसूलो की मदद से आप इसी कला को सीखेंगे. इन उसूलो को जान कर ना सिर्फ आप अपना आत्मविश्वास बड़ा सकते है, बल्कि लोगो को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करने का तरीका भी सीख सकते है.



फिर चाहे आप एक विद्यार्थी हो, एक व्यापारी हो या फिर आप अपने दोस्तों के बीच मशहूर होना चाहते हो. थोडा सा समय दे कर इन उसूलो का अभ्यास करते ही आप अपने आस पास के लोगो से अपना कोई भी काम आसानी से करवा सकते है.





तो चलिए सबसे पहले हम उन फंदामेंटल टेक्नीक्स की बात करते है, जिनसे आप लोगो को आसानी से अपने वश में कर सकते है.



उसूल 1 – Don’t criticise, condemn or complain





यानि लोगो की कडवे शब्दों में आलोचना, निंदा और शिकायत ना करे.





उसूल 1




 हम से ये कहता है कि किसी भी व्यक्ति की आलोचना या निंदा करने से पहले हम उस व्यक्ति को समझने की कोशिश करे कि वो व्यक्ति इस तरह से बर्ताव क्यों करता है और इसके पीछे की वजह क्या है ? सच मानिए ये आलोचना और निंदा करने से ज्यादा फायदेमंद होगा क्योंकि ऐसा करने से उस व्यक्ति के साथ-साथ हम में भी सहनशील होने के भाव जागृत होते है.



इस उसूल को खुद महान अब्राहम लिंकन ने भी अपनाया था. एक बार उन्होंने अपना अनुभव बांटते हुए कहा कि”मै पहले अपने विरोधियों की आम रूप से खूब आलोचना किया करता था लेकिन एक बार एक विरोधी ने उनकी आलोचना से परेशान होकर उन्हें तलवार से मारने की धमकी दे डाली, जिसके बाद से ही अब्राहम लिंकन डर गए. और उन्होंने किसी की भी सीधे तौर पर आलोचना करना छोड दिया. इतना ही नहीं...लिंकन खुद ये बात बताते है कि वो दुसरो को भी यही सलाह देने लगे कि सीधे तौर पर आलोचना करना नुकसानदायक हो सकता है. इसलिए हमेशा हमें सही ढंग से पेश आना चाहिए.





उसूल 2 – Give honest and sincere appreciation.





यानी पूरी ईमानदारी और अच्छी नियत के साथ सामनेवाले की प्रशंशा करे.



एक ऐसा भी तरीका है जिससे हम किसी भी इन्सान से कुछ भी करवा सकते है और दूसरा उसूल यही सिखाता है कि किस तरह से हम ऐसा करने में कामयाब हो सकते है अगर हम तहेदिल से और पूरी ईमानदारी के साथ किस व्यक्ति की प्रशंसा करते है तो इसकी छाप उस व्यक्ति के दिलो-दिमाग से जिंदगी भर नहीं छूटती. वो हमेशा आपकी इस प्रशंसा को संजोए रखता है और ऐसे में ये लाजिमी हो जाता है कि वो आपकी कही हुई बात को माने. . और आपको पसंद करे. उदाहरण के लिए कंस्ट्रकशन साइट के मैनेज़र को एक बड़ी दिक्कत का सामना तब करना पड़ा जब मजदूर उनके सामने तो उनकी बात मानकर सेफ्टी हेड गियर/ हेलमेट पहन लेते....लेकिन उनके जाते ही वो उसे हेलमेट को निकाल देते. ऐसे में उस मैनेज़र ने एक अलग तरीका अपनाया. उन्होंने इस बार बड़े ही प्यार से मजदूरों से कहा कि क्या उन्हें ये हेलमेट अच्छे नहीं लग रहे? या फिर इनकी फिटिंग खराब है? अगर ऐसा नही है तो उन्हें ये हेल्मेट्स पहनने चहिये. क्योंकि ये उनकी सुरक्षा के लिए ही बने है. वो नहीं चाहते कि उनके कीमती मजदूरों को चोट लगे. ये सुनते ही मजदूरों ने उस वक्त से ही हेलमेट रोजाना पहनना शुरू कर दिया. और उस मैनेज़र का ये तरीका काम आया.





उसूल 3 – 




किसी अन्य व्यक्ति के मन में उत्सुकता जागरूक करना यानी लोगों को सकारात्मक रूप से प्रेरित या प्रोत्साहित करना.





इसका बड़ा साधारण सा उदहारण है, जब आपके पास एक बहुत ही ज़बरदस्त आईडिया है तो लोगो को ये कभी ना सोचने दे कि वो आईडिया आपका है बल्कि उसको बड़ी ही समझदारी से लोगों के दिमाग में घोल दो ताकि उनको लगे ये आईडिया सिर्फ आपका ही नहीं बल्कि उनका भी है. ऐसा करने से लोग इसे अपनी योजना समझकर और भी ज्यादा मददगार साबित होंगे. इस मनोवैज्ञानिक सोच का हम बड़ी आसानी से अपनी प्रोफेशनल जिंदगी में इस्तेमाल कर सकते है.



लेखक डेल कार्निज़ अपना ही एक अनुभव बांटते हुए बताते है कि एक बार ब्रूकलिन इंस्टिट्यूट ऑफ़ आर्ट्स एंड साइंस में वो विद्यार्थियों के लिए बड़े ही सफल लेखको को गेस्ट लेक्चर के लिए बुलाना चाहते थे. समस्या ये थी कि सभी लेखक बहुत व्यस्त थे इसलिए डेल ने लगभग के लिए पहुच गए. आखिर उस ख़त में ऐसा क्या लिखा गया था? 150 विद्यार्थियों के साथ मिल कर एक ख़त लिखा और इन लेखको को भेज दिया. इस ख़त को पढ़ते ही ये सभी वयस्त लेखक अपने-अपने देश को छोड़कर ब्रूकलिन में भाषण देने के लिए पहुँच गए थे. आखिर उस ख़त में ऐसा क्या लिखा गया था?



दरअसल डेल ने इसी उसूल का फायदा उठाया. उस ख़त पर सभी 150 विद्यार्थियों ने दस्तखत किये थे, और उन लेखको से विनती की कि अगर उनके जैसा महान लेखक अपना समय निकाल कर उन्हें सिखायेंगे तो ये उन विद्यार्थियों के लिए गर्व की बात होगी. 



भई, ऐसा ख़त पढ़ कर तो कोई भी पिघल जाए. तो ये थी अपने आस-पास के लोगो को वश में करने की कुछ तरकीबे. अब हम उम्मीद करते है कि आप भी लोगो से डील करने वाली अपनी सोशल स्किल को मज़बूत बना लेंगे.





ये बात तो आप भी मानोगे कि कोई भी इंसान उस व्यक्ति का काम करना है या उस व्यक्ति की बात मानता है जिसे वो पसंद करते हो ! तो फिर चलिए आप भी सुन लीजिये उन टेक्निक्स के बारे में जिसकी मदद से लोग आपको पसंद करने लगेंगे.





उसूल 1 – Become genuinely interested in other people.



यानि सही मायनों में लोगों में अपनी दिलचस्पी दिखाना





अगर आप चाहते है कि लोग आपको पसंद करे, और अगर आप सच्ची दोस्ती कायम करना चाहते है तो इस उसूल को हमेशा ध्यान में रखे. अगर हम किसी के सच्चे दोस्त बनना चाहते है तो हमें पूरी लगन से उनके लिए अपने वक्त के साथ-साथ अपना मन भी इन्वेस्ट करना होगा और अपने स्वार्थ को परे रखना होगा. जिसका एक बहुत ही सही उदाहरण ये है कि जब हम किसी के साथ दोस्ती की शुरुवात करते है और अगर इसी शुरुवाती समय में उसी की मात् भाषा बात करते है तो वो व्यक्ति हमें ज्यादा पसंद करता है. अब इससे हमारा मतलब ये बिलकुल नहीं है कि आप लोगो की हाँ में हाँ मिलाये |



उदाहरण के लिए किसी भी सफल बिजनेस इंटरव्यू का राज़ आखिर क्या हो सकता है ?



हार्वर्ड के भूतपूर्व प्रेसिडेंट डब्ल्यू. एलियट के अनुसार सफल बिजनेस इंटरव्यू के पीछे कोई बड़ा राज़ नहीं है. यहाँ आपको बस एक ही चीज़ करनी होती है. और वो है सामने वाले इंसान को काफी बारीकी से सुनना. उनमे बड़ी दिलचस्पी दिखाना. क्योंकि आप अगर उन्हें अहमियत देते हो तो वो भी आपको ज़बरदस्त रेसपोंस देने लगते है.



उसूल 2 –याद रखिये, किसी भी व्यक्ति के लिए उसका नाम सबसे महत्वपूर्ण होता है चाहे वो किसी भी भाषा में लिया जाए..



हर इंसान के लिए उसका अपना नाम सबसे ज्यादा ज़रूरी होता है. वर्ना ऐसे ही थोड़ी ना हर कोई अपने नाम को रोशन करना चाहता है. 

प्रसिद्ध लेखक शेक्सपीयर ने बखूबी कहा है” व्ट्स इन अ नेम?” यानी “नाम में क्या रखा है?”


लेकिन साहब शायद ये बात भूल गए कि हर इंसान के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी होता है उसका नाम. क्यंकि नाम की वजह से ही हम एक दुसरे से अलग है. नाम हर इंसान की पहचान होती है और अगर हम किसी इन्सान को उसके नाम से बुलाये तो ये ज्यादा कारगर साबित होता है. और ये उसूल आप अपने से नीचे तबके के साथ आजमा कर देख सकते है. जैसे ड्रावर, वेटर या चपरासी. अपना नाम सुनना हर किसी को पसंद होता है. 



उसूल 3 – दुसरे इंसान की रूचि की बाते करे.



हम अगर किसी के साथ ज्यादा देर तक बिना बोर किये बाते करना चाहते है तो ये उसूल हमें यद् रखना होगा कि हमें उस इंसान की रूचि की बाते करनी चाहिए. इससे आप दोनों की बाते और भी ज्यादा मजेदार हो जायेंगी और काफी देर तक चलेंगी. जैसे हम अगर किसी इन्सान से पहली बार मिलते है और सिर्फ अपने बारे में ही बाते करते जाते है तो इससे उस इंसान की रूचि धीरे-धीरे कम होती हुई नज़र आएगी. लेकिन अगर हम उस इंसान के साथ उसकी रूचि की बाते करते है तो आप के साथ-साथ उस इंसान को भी आपसे बात करने में मज़ा आएगा. अब जैसे कि विलियम लयोंन जो कि एक साहित्य के प्रोफेसर है बताते है कि जब वो 10 साल के थे तो वो अपनी आंटी के यहाँ सप्ताहंत बिताया करते थे. एक शाम एक मध्य उम्र के व्यक्ति उनकी आंटी से मिलने पहुंचे और कुछ समय उनकी आंटी के साथ बिताने के बाद उन्होंने अपना सारा ध्यान नन्हे विलियम पर लगाया.



उस वक्त उन्हें बोट्स में काफी दिलचस्पी थी इसलिए वो अतिथि भी उनसे बोट्स के ही बारे में बाते करने लगे. उन्हें उस आदमी से बात करने में काफी मज़ा आ रहा था. और जैसे ही वो वहां से चले गए नन्हे विलिंयम ने उनकी तारीफ़ अपनी आंटी से शुरू कर दिया. लेकिन वो तब चौंक गए जब उनकी आंटी ने उन्हें बताया कि वो आदमी न्यूयॉर्क में एक वकील थे और उन्हें दरअसल बोट्स में कोई रूचि नहीं वो तो सिर्फ तुमसे बाते करना चाह रहे थे और तुम्हारी बाते वो इसलिए इतनी दिलचस्पी से सुन रहे थे क्योंकि वो एक बहुत ही भले व्यक्ति है.



उसूल 6 – लोगों को अहमियत दीजिये और उन्हें महसूस कराये कि वो ख़ास है.



जैसा कि हमने उसूल 5 में बताया की दुसरे इंसान की रूचि जाग्रत करना बहुत ज़रूरी होता है और ये मुमकिन हो पाता है उस इंसान की रूचि के बारे में बाते करने से और अब इस उसूल से हमें ये पता चलता है कि उस इंसान को ख़ास साबित करना भी उतना ही ज़रूरी है. ये बहुत ज़रूरी है कि हमारी बातों से दुसरे इंसान को ये लगने लगे कि वो हमारे लिए बहुत मायने रखता है. इससे आपके और उस इंसान के बीच के रिश्ते और भी गहरे होते चले जायेंगे.



ये उसूल आपको इस छोटी सी कहानी से साफ समझ आ जाएगा. एक दिन डेविड अपने कुछ शराबी दोस्तों को देर रात एक पार्टी के बाद सुरक्षित अपनी कार में घर पहुँच रहे थे. लेकिन तभी साइन बोर्ड देखने के बावजूद डेविड ने जान बूझ कर गलत मोड़ ले लिया और तभी उन्हें एक ट्रेफिक पोलिस ऑफिसर ने रोक लिया, उन्होंने डेविड से पूछा “क्या तुम जानते हो मैंने तुम्हे क्यों रोका है?” अब अगर इस स्तिथि में डेविड बाकी लोगो की तरह ट्रेफिक पोलिस को एक रुखा ज़वाब देते तो वो फंस जाते. लेकिन डेविड ने बड़ी ही समझदारी और ईमानदारी से अपनी गलती मानी और साथ ही साथ ये भी कह दिया” मुझे माफ़ कर दीजिये सर, मै जानता हूँ कि मैंने गलती की है और साइन बोर्ड देखने के बावजूद मैंने गलत मोड़ ले लिया, जो भी जुर्माना है मै भरने के लिए तैयार हूँ. 





अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए आपका बहुत शुक्रिया. देश को आप जैसे पुलिस ऑफिसर की ही ज़रुरत है”.





अब ये सुनते ही मानो पुलिस ऑफिसर के कानो में डेविड ने शहद घोल दिया हो. उन्होंने ना सिर्फ डेविड को माफ़ किया बल्कि उनका लाइसेंस लौटाकर शराबी दोस्तों को सही सलामत घर पहुंचाने की जिमीदारी पर शाबाशी भी दी. और वहां से बिना जुर्माने के ही उन्हें जाने दिया. भई, वाह डेविड!!!



तो देखा दोस्तों, इन सभी उसूलो को अब आप अच्छी तरह से जान चुके हो तो इनका अभ्यास कीजिये और देखिये कि किस तरह आपके आस-पास के लोग आपको पसंद करने लगेंगे.





हाउ टू विन पीपल टू योर वे ऑफ़ थिंकिंग



लोगो को वश में करने और लोगों का पंसदीदा बनने के बाद अब हम जानेगे कि अपनी सोच से लोगो को कैसे जीता जा सकता है.





उसूल 1 – एक ज़बरदस्त बहस को एक ही तरीके से जीता जा सकता है और वो है उसकी उपेक्षा करके ..जी हाँ.



आखिरकार हम इस निश्चय पर आ चुके है कि दुनिया में किसी भी बहस का सबसे बढ़िया नतीजा पाने के लिए क्या करना चाहिए और वो है उस बहस को टाल देना. किसी भी बहस की उसी तरह टाल देना चाहिए जिस तरह हम किसी नशेडी या शराबी को टाल देते है|



क्योंकि आम तौर पर कोई भी बहस एक ही नोट पर ख़त्म होती है और वो है असहमति. क्योंकि 10 में से 9 लोग बहस के बाद इस बात पर और भी ज्यादा यकीन करने लगते है की उनका मानना और उनकी सोच सही है. और इससे आपस में और भी ज्यादा मत-भेद पैदा हो जाते है. इसलिए बेहतर यही है कि इससे बचा जाए.



प्रिंसिपल 2 –दुसरो की सलाह की इज्ज़त करो, ये कभी ना कहें कि “ तुम गलत हो”



हम किसी की बुराई सीधे-सीधे नहीं कर सकते. ऐसा करने से हम किसी को अपना दुश्मन खुद बना सकते है. क्योंकि बहुत कम लोग ऐसे है जो अपनी बुराई सुनना पसंद करते है. किसी को ये कहना के वो गलत है उसे बुरा महसूस करने पर मजबूर कर सकता है बल्कि आप ये कह सकते है कि कैसे वो अपनी खामियों को दूर कर सकते है. उदाहरण के लिए सोचिये कि आप एक कंपनी के मैनेज़र है. और कंपनी में इंसेंटिव्स देने का एक नया सिस्टम लाना चाहते है. तो आप अपने सिस्टम को किस तरह पेश करेंगे? ज़्यादातर लोग ये बताते है कि कंरट सिस्टम में कहाँ खामियां है और फिर अपने नए आईडिया को डिफेंड या प्रोमोट करने में जुट जाते है. लेकिन ये एक गलत रास्ता है. मीटिंग में सबसे पहले ये पूछना ज्यादा बेहतर रहेगा कि सभी के मुताबिक ऑन-गोइंग सिस्टम में क्या-क्या दिक्कते है. फिर अपने आईडियाज़ को सामने रखते हुए उनके विचार जाने. इस तरह से ना सिर्फ आपके आईडिया को स्वीकार किया जाएगा बल्कि उसमे सभी काफी दिलचस्पी लेंगे.





उसूल3 – अगर आप गलत है तो तुरंत ही अपनी गलती को मानकर माफ़ी मांगे लेना आपके लिए फायदेमंद रहेगा.





जब हम किसी बात में सही होते है तो हमारे अन्दर एक अलग ही आत्मविश्वास होता है जो हमारी बातो में और हमारे स्वभाव में साफ-साफ देखा जा सकता है लेकिन जब हम किसी बात में गलत होते है तो हमारा आत्मविश्वास गिर जाता है और साथ हम अपना बचाव करने की भी कोशिश करते है. लेकिन हमें ये उसूल ध्यान में रखना होगा कि जब कभी हम गलत होते है तो हमें तुरंत ही उसे स्वीकार कर लेना चाहिए. ये बात हमारे पूर्वज हमेशा से ही कहते आ रहे है कि अपनी गलती मानने से कोई छोटा नहीं होता. और ये बात हमें ये उसूल भी सिखाती है कि हमें अपनी गलती को स्वीकार कर लेना चाहिए. क्योंकि गलती करने के बाद उसका बचाव करने से ज्यादा फायदेमंद ये है कि अपनी गलती को मुस्कुराहट के साथ मान ले.



इसका सीधा उदाहरण लेखक डेल कार्नेज ने अपनी निजी जिंदगी में हुए वाकये को बांटते हुए इस किताब में बताया है. डेल ने बताया कि वो अपने पालतू कुत्ते को घुमाने जंगल में ले जाते थे. क्योंकि जंगल के आस-पास कोई भी नहीं होता था इसलिए वो उसे जंजीर से नहीं बांधते थे. लेकिन एक दिन एक पुलिस इन्स्पेक्टर ने उन्हें इस तरह देख लिया और लेखक को जमकर डांठ लगाई साथ ही साथ यह भी कह दिया कि अगली बार अगर उन्होंने उनके पालतू कुत्ते को खुले-आम देखा तो वो उन्हें अदालत में ले जायेंगे. अब कुछ दिनों तक तो डेल कार्निज़ ने पुलिस मेन की बात मानकर अपने पालतू कुत्ते को जंजीर से बांधकर रखा ताकि आस-पास के लोग और बाकी छोटे जानवर सुरक्षित रहे लेकिन एक दिन फिर से डेल ने अपने कुत्ते को अपनी जंजीर से नहीं बाँधा और इस बार दुबारा उसी इंस्पेक्टर ने डेल को देख लिया. लेकिन इससे पहले की इंस्पेक्टर कुछ बोल पाते लेखक डेल ने खुद ही अपनी गलती मानते हुए उसने कह दिया कि” माफ़ कीजिये मैने दुबारा आपकी बात नहीं मानी. मै कितना गैर-जिम्मेदार हूँ”



ये सुनते ही पुलिस ऑफिसर पिघल गया. उन्होंने कहा” अरे, कोई बात नहीं इतने प्यारे कुत्ते को बाँधने का आखिर किसका मन करेगा?” लेकिन फिर भी डेल अपनी गलती के लिए माफ़ी मांग रहे थे. और पुलिस ऑफिसर ने उन्हें माफ़ कर दिया वो भी बिना कुछ कहे.



तो देखा दोस्तों. डेल की यही बात हमें सिखाती है कि अपनी गलती मान लेने से मसला आसान हो जाता है....और हमें ज्यादा तकलीफ का सामना नहीं करना पड़ता.





उसूल 8 – सामने वाले व्यक्ति की सोच समझे





कई बार हमारी नजरो में एक इंसान काफी गलत होता है लेकिन हमारी सोच से ठीक परे उस इन्सान के मन में ये भाव होते है कि वो बिलकुल सही है. यही होती है अपनी-अपनी सोच, जो ज़रूरी नहीं कि हम सब की एक जैसी हो. हमें अपने आप को उनकी जगह पर रख कर सोचने की कोशिश करनी चाहिए तभी हम उन्हें बेहतर तरीके से समझने में कामयाब हो पायेंगे. और शायद इस कहानी से आप इस प्रिंसिपल को थोडा बेहतर समझ पाएंगे. श्रीमान कार्टर अपनी पत्नी को हमेशा एक बात के लिए ताने कसते थे कि आखिर वो सारा समय बगीचे में पौधो को सवारने में क्यों बिताती है. श्रीमान कार्टर की बातो से परेशान होने के बाद भी श्रीमती कार्टर उन्हें कुछ नहीं कहती लेकिन एक लम्बे समय के बाद सोच विचार कर आखिरकार श्री कार्टर को अपनी गलती का एहसास हुआ.



उन्हें पता चल कि उनकी पत्नी को बागवानी करना कितना पसंद था और ये कि उन्ही की वजह से श्रीमान कार्टर का बगीचा सबसे बढ़िया था. लेकिन अपनी पत्नी की तारीफ करने के बजाए वो उन्हें डाठा करते. आखिरकार श्रीमान कार्टर ने बगीचे में व्यस्त अपनी पत्नी से माफ़ी मांगी और उनकी तारीफ़ करते हुए उनके साथ बगीचे में समय भी बिताया. कुछ इस तरह श्रीमान कार्टर ने अपनी पत्नी के विचारों को समझा और अपनी जिंदगी बेहतर बनाई.





उसूल 10– हमेशा एक अच्छे और नेक कारण को ध्यान में रखे.



आम तौर पर लोग 2 तरीके से प्रतिक्रिया देते है. एक जो उनका मन कहता है और दूसरा जो उन्हें ठीक लगता है. इन दोनों बातो में फर्क है, लोगो का उस रास्ते को चुनना ज्यादा आसान होता है जो उन्हें सही लगे. लेकिन असलियत में एक अच्छा इन्सान हमेशा इस बात का ख्याल रखता है कि उसके किसी भी बर्ताव से लोगो पर क्या असर होगा. यानी वो अपने इस महान लक्ष्य को कभी नहीं भूलता. और यही बात ज़ाहिर तौर पर उसके लिए फायदेमंद होती है..





उसूल 11 – अपने सभी आईडियाज़ को बड़े ही ज़बरदस्त तरीके से पेश करे.



कई बार सिर्फ सच कहना ही काफी नहीं होता. आपको सच के साथ थोडा बहुत मसाला भी लगाना होता है और अपने सच को या अपनी सोच और भी ज्यादा मज़ेदार बनाना पड़ता है. आपको किसी शोमेन की तरह बड़े ही नाटकीय ढंग से अपने आप को पेश करना होता है. उसके बाद ही आप ध्यान आकर्षित कर सकते है. कई बार हम कुछ बातो को समझाने के लिए अलग-अलग तरह की रणनीती अपनाते है क्योंकि हम जानते है कि साफ़ लफ्जों में कहना काफी नहीं होगा. जैसे हम फिल्मो में देखते है, कोई कितनी भी साधारण सी सच्ची कहानी क्यों न हो लेकिन फ़िल्मकार को उसे अपने दर्शक तक पहुचाने के लिए नाटकीय रूप अपनाना पड़ता है ठीक उसी तरह हमें अपनी सोच को नाटकीय रूप देना ज़रूरी हो जाता है.



ऐसा ही कुछ किया इंडियाना की केथरीन विलिंयम ने जिन्हें अपनी नौकरी में कुछ दिक्कत हो रही थी और वो ये समस्या अपने बॉस के साथ बाँटना चाह रही थी. लेकिन ऐसा नहीं पाया. उनके बॉस अपनी व्यस्त दिनचर्या की वजह से उनसे अपनी मीटिंग को टाल रहे थे और ना ही उनकी सेक्रेट्री ठीक से ज़वाब दे रही थी.  



एक हफ्ता यूँ ही बीतने वाला था और केथरीन को ज़वाब चहिये था. आखिरकार उन्होंने अपने बॉस को एक नोट लिखा जिसके अन्दर एक औपचारिक पत्र भी था. “मै जानती हूँ आप कितने व्यस्त होंगे अपने शेड्यूल की वजह से लेकिन कृप्या आप मुझे इस फॉर्म में 2 रिक्त स्थानों को भरकर मुझे दे दीजिये. पहला कि आप मुझे किस तारीख पर मिल रहे है और दूसरा कि आप मुझे अपना कितना समय देंगे.



ये देखते ही केथरीन के बॉस प्रभावित हुए और उन्होंने केथरीन के साथ तुरंत की मीटिंग की जिसके बाद आखिरकार उनकी समस्या दूर हुई.





उसूल 12 – लोगों को सकरात्मक रूप से चेलेंज करे ताकि वो अपना बेहतरीन कर पाए .



एक बहुत बड़े बिहेविरियल साइंटिस्ट फ्रेड्रिक ने अपनी सालों की रिसर्च से ये जानने की कोशिश की है कि एक छोटे 

से कारखाने में काम करने वाले मजदूर से लेकर एक बड़ी कंपनी के सीनीयर एक्ज़ीक्यूटिव तक के लिए मोटिवोटिंग 
फेक्टर क्या होता है? फ्रेड्रिक ने हज़ारो मजदूरों से ये जानने की कोशिश की उन्हें प्रोत्साहन कहाँ से मिलता है जिसमे 
उन्होंने तीन चीजों का जिक्र भी किया. तन्खाव्ह, आरामदायक काम करने की जगह या फिर कुछ और. जब इस 
रिसर्च के परिणाम सामने आये तो वो फ्रेड्रिक को चौंकाने वाले थे. क्योंकि परिणाम ही कुछ ऐसे थे. दरअसल
 लोगो को सबसे ज्यादा खुद उनके काम ने ही प्रोत्साहित किया था, जिससे ये साफ़ हो गया था कि ज्यादा 
तन्खाव्ह और अच्छी वर्किंग एन्वायरमेंट से ज्यादा लोगों को उनके काम ने प्रभावित किया था. इससे ये
साफ होता है कि अगर किसी का काम ही मजेदार हो और रुचिकर हो तो लोग और भी मन लगाकर काम 
करते है. और उन्हें किसी और चीज़ की ज़रुरत नहीं पड़ती प्रोत्साहित होने के लिए. और साथ ही साथ अपने
 आप को और ज्यादा निखारने के लिए लोग खुद मेहनत करते है ताकि वो मुकाबले में भी बने रहे और 
अपने आप को और निखार सके. क्योंकि जहां बात चेलेंज की आती है तो लोग चेंलेंज़ में बने रहने को और
 अपने आप को साबित करने के लिए जी जान से मेहनत करते है. 


एक लीडर बनना एक बड़ी खासियत है होती है. जिसकी समझ की हर व्यक्ति को ज़रुरत है. तो चलिए जानते

 है कि लोगो को बिना भड़काए या नाराज़ किये हम किस तरह बदल सकते है. 

उसूल 1 – पूरी ईमानदारी के साथ लोगो की तारीफ करे. 

तारीफ़ और प्रशंसा के साथ अगर हम अपने दिन की शुरुवात करते है तो इससे हम किसी भी इन्सान के बर्ताव में 
अलग ही चमक देखते है. जैसे हम अपने ऑफिस में सुबह-सुबह जाते है और अपने सहकर्मियों से मिलते है और
 अगर उनके साथ बड़ी ही गर्मजोशी के साथ मिलना होता है तो फिर दिन भर आपके साथ-साथ उनका मूड भी 
ठीक बना रहता है. अगर हम किसी की तारीफ में कुछ बात करते है तो ये बात काफी लम्बे अरसे तक याद 
रहती है और इससे आपके और उस इंसान के रिश्ते को और भी ज्यादा मजबूती देती है. 
उदाहरण के तौर पर अगर आप किसी से पहली बार मिल रहे है और आपको ये नहीं पता कि उनसे बात
 कैसे करे या किस विषय में करे, तो सबसे पहले तो आपको उस इंसान को ध्यान से देखने के बाद 
उनकी किसी खास चीज़ या काम की तारीफ करनी चहिये.ऐसा करने से वो इंसान ना सिर्फ आपके साथ
 सहज महसूस करने लगता है बल्कि आपको पसंद भी कर लेता है. यानी एक तीर से दो निशाने.

उसूल 2 – गलतियां सबसे होती है, आप उनकी गलतियाँ बताओ लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से जिससे की उन्हें बुरा ना लगे. 

मुश्किलें तब बड जाती है जब हमें किसी को उनकी खामियां बतानी हो, या फिर जब हमें किसी की आलोचना करनी हो. 
इस उसूल से हम ये सीखते है कि जब कभी हमें ऐसा करना हो तो, ये बात हमेशा याद रखे कि किसी भी इन्सान की 
आलोचना करने से पहले उनकी तारीफ करना ज़रूरी है. उस इंसान को पहले ये बताए कि उसकी खूबियाँ क्या है. 
ऐसा करने से वो इंसान कम बुरा मानता है. अगर हम किसी की बुराई या उसकी खामियां सीधा-सीधा बताते है तो 
ऐसे में उसका बुरा मानने की संभावना बड जाती है. 

मसलन, जॉन अपनी स्टील की कंपनीज़ में से एक के पास से गुज़र रहे थे, और तभी उन्होंने वहां कुछ मजदूरों को नो
 स्मोकिंग बोर्ड के ठीक नीचे धूम्रपान करते देखा. लेकिन जॉन ने उन्हें सीधे-सीधे डांठने के बजाय उन मजदूरों को 
एक-एक सिगार पकड़ा दी और कहा” मुझे अच्छा लगेगा अगर आप सभी ये सिगार पिए लेकिन बाहर जाकर”. उन 
मजदूरों को समझ आ गया था कि उनकी गलती क्या थी. भई, ऐसे इंसान को आखिर कौन नहीं पसंद करेगा? 

उसूल 4 – सीधे-सीधे आदेश देने से बेहतर है कि सवाल पूछे जाए. 

अगर वाकई में हम चाहते है कि अपनी एक अलग पहचान बनाये और लोगों के बीच अपने आप को भीड़ में सबसे 
अलग दिखाना चाहते है तो ये उसूल बहुत ज्यादा मायने रखता है. क्योंकि इस उसूल की मदद से हम ये सीख सकते
 है कि किस तरह से हम अपने आप को एक लीडर के तौर पर उभार सकते है. इसमें सबसे अहम् बात ये है कि
 हम किसी को सीधे आदेश देने से बेहतर उनसे सवाल कर सकते है जैसे कि इस उदाहरण में. एक बार एक छोटी
 सी फैक्ट्री के मैनेज़र को इस बात की चिंता सता रही थी कि वो और उनकी फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारी
 वक्त पर अपने ग्राहकों के ऑर्डर्स को पूरा कैसे करेंगे. तो ऐसे नाज़ुक वक्त पर उस मैनेज़र ने अपने कर्मचारीयों 
को ज्यादा मेहनत के साथ काम करने का आदेश देने के बजाय सभी कर्मचारियों को बुलाया और उनसे मीटिंग की. 
और सभी से कुछ सवाल किये, जिसके बाद जो परिणाम सामने आया वो वाकई काबिले तारीफ था. मैनेज़र ने 
कर्मचारियों से सवाल किया” हम इस आर्डर को किस तरह से संभाल सकते है ?” इसके बाद मैनेज़र ने कुछ और
 सवाल किये जैसे” क्या कोई कुछ सुझाव दे सकता है कि इस आर्डर को इस आर्डर को कैसे पूरा किया जा सकता है ?

“क्या कोई तरीका है जिससे हम समय को मेनेज कर आर्डर को पूरा करे?
अब एक के बाद एक सभी कर्मचारियों से अलग-अलग तरह के सुझाव आने शुरू हो गए जिससे काम को पूरा 
करने में काफी ज्यादा आसानी हुई. जहाँ पहले आर्डर को पूरा करने की चिंता सिर्फ मैनेज़र को थी अब वहां सब 
कर्मचारीयों ने मिलकर इस जिम्मेदारी को अपना बना लिया था और सभी का रवैया “हम मिलकर ये पूरा कर 
सकते है” में बदल गया था. और हुआ भी कुछ ऐसा ही. आर्डर को समय पर पूरा कर लिया गया. अब इसमें 
समझने वाली बात ये है कि अगर मैनेज़र ने शुरुवात में ही अपने कर्मचारियों को आदेश दिया होता कि काम 
को किसी भी हाल में समय पर पूरा करना है तो शायद ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं होता लेकिन मैनेज़र ने 
समझदारी दिखाते हए अपने कर्मचारियों से मीटिंग कर कुछ सवाल किये और नतीजा सामने था. इसी तरह से 
आप भी इस उसूल को अपनाते हुए लीडर बनने की एक अहम् खासियत को अपने अन्दर पैदा कर सकते है. 

उसूल 5 – दुसरो का आत्मसम्मान बढाना 

अगर कोई इंसान कभी अपनी ही नजरो से गिर जाता है तो ये उस इंसान के लिए सबसे ज्यादा निराशा जनक होता
 है और इससे बाहर निकलने के लिए उस इन्सान को काफी समय लगता है. किसी इन्सान को छोटा महसूस कराना 
उस इंसान का आत्मविश्वास तहस-नहस करने जैसा है. क्योंकि आखिर में किसी इंसान के लिए ये मायने नहीं
 रखता कि कौन उसके बारे में क्या सोचता है बल्कि हर इंसान के लिए ये ज्यादा ज़रूरी है कि वो खुद अपने 
बारे में क्या सोचता है. मसलन एक 10 साल के बच्चे को गाने का शौक था, लेकिन उसकी अध्यापक ये कहकर
 उसे डीमोटीवेट कर देते है कि उसे गाना नहीं गाना चाहिए क्योंकि उसकी आवाज़ भद्दी है. पर उस 10 साल 
के बच्चे की माँ हार नहीं मानती. वो उसे प्रोत्साहित करती है, उसकी हर कोशिश पर उसे शाबाशी देती है. ये
 वही बच्चा था जो एक दिन ओपेरा सिंगिंग का बादशाह कहलाया गया, जिसका नाम था एनरीको कारूसो.

उसूल 6 – एक छोटा सा सुधार भी तारीफ का हक़दार है 

इस उसूल को असल जिंदगी में ढालने से आप किसी इंसान को सिर्फ सुधार ही नहीं सकते बल्कि उस इंसान को पूरी तरह
 से बदल सकते है, उस इंसान का पूरा कायाकल्प कर सकते है. और इसकी शुरुवात होती है एक बेहद छोटे से सुधार 
और उसकी सराहना से. अगर हम किसी इंसान की खूबियों को भांप कर उसकी सराहना करते है तो ये काफी हद तक
 उस इन्सान के लिए और भी ज्यादा सुधार में मदद करता है. एक बात समझना बहुत ज़रूरी है आलोचन यानी 
क्रिटीज्म से ज्यादा लोग अपनी सराहन से प्रभावित होते है. क्योंकि उन में वो विश्वास जगता है कि वो वाकई में 
ऐसा कर सकते है. 
टॉमी नाम के स्कूल के सबसे शरारती विद्यार्थी को इसी उसूल की मदद से 4th ग्रेड की अध्यापिका श्रीमती होप्स्किन
 ने सुधारा. कक्षा के पहले ही दिन, श्रीमती होप्स्किन ने सभी बच्चो की तारीफ की और जैसे ही टॉमी की बारी आई, 
श्रीमती होप्स्किन ने टॉमी से कहा “ टॉमी तुम एक पैदाइशी लीडर हो और तुम ही इस कक्षा को सबसे अच्छी कक्षा
 बनाने में इस साल मेरी मदद करोगे”.
उस वक्त से ही टॉमी मानो बदल ही गया हो. हर सुधार के साथ वो एक बेहतर विद्यार्थी बनता जा रहा था जिसका 
सारा श्रेय जाता श्रीमती होप्स्किन को. 

उसूल– लोगो को प्रोत्साहित करे. उन्हें प्रेरित करे..




अगर आप किसी से सीधा-सीधा ये कहते है कि उनमे काम करने की क्षमता नहीं है और ना ही आपको उनपर भरोसा है, तो आप उस इंसान में कभी सुधार नहीं देखेंगे क्योंकि आप खुद ऐसा कहकर सारी संभावनाओं का गला घोंट देंगे. लेकिन अगर उस इसनान को ये दर्शाते है कि आप उनपर पूरा भरोसा करते है और आपको ये विश्वास है कि वो अपने आपको सुधार भी सकते है तो आप उस इन्सान में गज़ब का बदलाव देखेंगे क्योंकि वो इन्सान पहले ये मानने पर मजबूर हो जाएगा की वाकई में उसमे कुछ काबिलियत है और दूसरा वो पूरी कोशिश में जुट जाएगा कि वो आपको निराश ना करे.



स्टोर के मालिक श्रीमान गोम्स ने ये बताया कि उनके स्टोर में एक ऐसा ही कर्मचारी था जो कभी भी प्राइस टेगिंग का काम ठीक से नहीं करता था जिस वजह से काफी ज्यादा उलझन होती थी और ग्राहको की शिकायते भी काफी बड जाती. जब बार –बार बताने पर भी उस कर्मचारी पर कोई असर नहीं हुआ तो एक दिन श्रीमान गोम्स ने उसे केबिन में बुला कर पूरे स्टोर की प्राइस टेगिंग का सुपरवाईज़र बना दिया. अब भले ही ये आपको बचकाना लगे लेकिन उस कर्मचारी ने उस के बाद ज़बरदस्त सुधार दिखाया और अपनी ज़िमीदारियों को बखूबी निभाया भी. तो देखा आपने कि किस तरह किसी को प्रेरित करने का ये एक कारगर तरीका है जिससे आपके भीतर लीडरशिप का गुण और भी ज्यादा निखर कर सामने आता है.





उसूल 9 – ध्यान रहे, कोई भी व्यक्ति जब आपके कहे हुए काम को करे तो खुश होकर करे और पूरा मन से करे. 



अगर आपको किसी से कोई काम करवाना है तो आप अपने काम को पहले उसकी मर्ज़ी से करवाए और ध्यान रखें कि उसे ये 

काम करने में ख़ुशी हो..
इस किताब के लेखक डेल कार्निज खुद इस बात को मानते है. एक बयान में उन्होंने कहा था “ इस बात में दो राय नहीं कि 
इन्सान सही अप्रोच और 
सही नीयत से अपने आस पास के लोगो को बड़ी ही आसानी से प्रभावित कर सकता है और ढेर सारे दोस्त भी बना सकता है.. 
लेकिन किसी भी इंसान से उसकी मर्ज़ी के खिलाफ अपना काम निकलवाना किसी भी अच्छे इंसान की पहचान बिलकुल नहीं है.”

तो दोस्तों, ये मानना एक हद तक गलत होगा कि इन सभी उसूलो और अप्रोच को आजमाने के बाद आपको वही परिणाम मिलेगा 
जिसकी आप कामना करते है, क्योंकि आप ये कभी माप नहीं सकते कि कौन इंसान किस तरह का बर्ताव करेगा, क्योंकि हर इंसान 
अपने आप में अलग है. लेकिन ज़्यादातर लोगो के अनुभवों को ध्यान में रख कर ये कहना भी गलत नहीं होगा कि आप इन सभी
 उसूलो और अपनी इस अप्रोच से लोगों के हावभाव में बदलाव ला सकते है. अगर आप इन सभी उसूलो का प्रयोग करने में 10% भी 
कामयाब होते है तो आप एक बहुत अच्छे लीडर बन सकते है. दोस्तों इस किताब में और भी ऐसे उसूल है और हम आपको रेकमंड करते है 
कि आप ये पूरी किताब ज़रूर पड़े.


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