रिच डैड पुअर डैड

रॉबर्ट कियोसाकी जोकि इस किताब के लेखक है, उनके दो पिता थे.

उनके एक पिता जो पढ़े-लिखे, पी.एच.डी होल्डर थे मगर जिंदगी भर गरीब ही रहे और गरीबी में ही मरे. इसलिए रॉबर्ट उन्हें Poor डैड कहते थे. वहीँ उनके दुसरे पिता बहुत पढ़े लिखे तो नहीं थे मगर काफी अमीर थे. उन्हें रॉबर्ट Rich डैड बुलाते थे. अब ये सोचने की बात है कि किसी भी इंसान के एक ही वक्त में दो पिता कैसे हो सकते है.

उनके गरीब पिता का बस एक ही सपना था कि रॉबर्ट खूब मेहनत से पढ़ाई करने के बाद किसी बड़ी सी कंपनी में नौकरी करके अपना भविष्य सुरक्षित कर ले. मगर रॉबर्ट के दुसरे पिता जो अमीर थे, वे दरअसल रॉबर्ट के दोस्त माइक के पिता थे. वे चाहते थे कि रॉबर्ट अपनी जिंदगी में कुछ चेलेन्ज ले. क्योंकि सारे सबक सिर्फ स्कूल में ही नहीं सीखे जाते. कुछ सबक ऐसे होते है जिन्हें इंसान अपनी जिंदगी के तजुरबो से ही सीखता है. स्कूली पढ़ाई सिर्फ अच्छे ग्रेड्स दिला सकती है मगर जिंदगी की पढ़ाई बहुत कुछ सिखाती है. बेशक पढ़ाई-लिखाई की अपनी अहमियत है मगर सिर्फ इसके भरोसे बैठकर ही सब कुछ हासिल नहीं किया जा सकता.

 Lesson 1: अमीर लोग पैसे के लिए काम नहीं करते

एक बार एक आदमी था जिसके पास एक गधा था. जब भी उसे अपने गधे से कुछ मेहनत करवानी होती थी तो वे एक गाजर को उसके सामने लटका देता था. उस गाज़र को देखते ही गधा उसे खाने के लालच में काम करता चला जाता था. उसे उम्मीद थी कि एक दिन वो उस गाज़र tak पहुँच ही जाएगा. अब ये उस आदमी के लिए तो एक अच्छी तरकीब बन गयी मगर बेचारे गधे को कभी भी वो गाज़र नहीं मिल पायी. क्यों? इसलिए कि वो गाज़र बस एक छलावा है. बहुत से लोग ठीक उस गधे की तरह ही होते है. वे मेहनत पर मेहनत किये चले जाते है, इस उम्मीद में कि एक दिन वे अमीर बन जायेंगे. मगर पैसा उनके लिए महज़ एक सपना बन के रह जाता है. इस sapne के पीछे भागने से आप उस तक कभी नहीं पहुँच सकते. तो पैसे के लिए काम करने के बजाये पैसे को अपने लिए काम करने दे.

जब आप अमीर बनना चाहते है तो सिर्फ पैसे कमाने के लिए काम ना करे. क्योंकि जैसे ही हम अमीर बनने की राह में कदम बढ़ाते है, हमारा डर और लालच हम पर हावी होने लगता है कि कहीं हम गरीब के गरीब ही ना रह जाये. इसी डर से हम और ज्यादा मेहनत करने में जुट जाते है. फिर हमारा लालच हम पर हावी होने लगता है. हम उन सारी खूबसूरत चीजों की कल्पना करने लगते है जो पैसे से हासिल की जा सकती है. अब यही डर और लालच हमें ऐसे चक्कर में उलझा देता है जो कभी ख़त्म नहीं होता. तो हम अब और मेहनत करते है कि और ज्यादा कमा सके और फिर हमारा खर्च भी उसी हिसाब से बढ़ने लगता है. इसको ही अमीर डेड “RAT RACE” कहते है. अब इसका नतीजा ये हुआ कि हम पैसे कमाने के लिए हद से ज्यादा मेहनत करते है, खर्च करते है. ये एक ट्रेप है. और आपको लालच और डर का ये ट्रेप अवॉयड करना है. क्योंकि हममें से अधिकतर लोग जो अमीर होना चाहते है, इसी ट्रेप का शिकार हो जाते है. पैसे के पीछे मत भागिए बल्कि पैसे को अपने पीछे भागने के लिए मजबूर कर दीजिए. आपकी नौकरी लगी है तो काम पर ये सोच कर मत जाईये कि हर महीने आपको एक पे-चेक lena hai. क्योंकि वो पे-चेक आपके सारे बिल्स मुश्किल से ही भर पाता है. ये हर महीने की कहानी बन जाती है. फिर तंग आकर आप कोई दूसरी नौकरी ढूंढकर और ज्यादा मेहनत करने लगते है. लेकिन तब भी आप पैसे के लिए ही काम कर रहे होते है. और यही वजह है कि आप कभी अमीर नहीं बन पाते.

सच का सामना कीजिये. आप खुद के लिए जवाबदेह है दुसरो के लिए नहीं. तो आपके जो भी सवाल है, खुद से पूछिए क्योंकि उनका जवाब सिर्फ आपके ही पास है. क्या आप सिर्फ इसलिए काम कर रहे है कि आपकी जिंदगी में सिक्योरिटी रहे ? एक ऐसी नौकरी जहाँ से आपको निकाले जाने का कोई डर न हो ? या फिर आप सिर्फ दो पैसे कमाने के लिए काम करते है ? और आपको लगता है कि एक दिन आप इस तरह अमीर हो जायेंगे. क्या बस यही आपको सेटीस फाई करने के लिए काफी है ? अगर आपका जवाब हां है तो मुझे आपकी सोच पर अफ़सोस है क्योंकि आपने जो अमीर बनने का सपना देखा है वो कभी पूरा नहीं होने वाला. आप हमेशा गरीबी में ही जियेंगे. लेकिन अगर आपका जवाब “ना” है तो आपका पहला कदम ये होगा कि सबसे पहले आप अपने मन से डर हटा दीजिये. क्योंकि ज्यादा पैसा ना कमा पाने का डर और लालच ही आपको बगैर सोचे-समझे काम करने के लिए मजबूर करता है. और हमारा यही कदम हमें नाकामयाबी की तरफ धकेलता है. बेशक हम सब के अन्दर डर और चाहत की भावना होती है लेकिन उन्हें खुद पर इतना हावी ना होने दे कि हम उनके बस में होकर उलटे-सीधे फैसले लेने लग जाए. बेहतर होगा कि हम जो भी करे पहले उसके बारे में खूब सोच ले. हमेशा दिल से नहीं बल्कि दिमाग से काम ले.

हर सुबह अपने आप से पूछिए क्या आप उतना कर पा रहे है जितना कि आपको करना चाहिए? क्या आप अपनी पोटेंशियल का पूरा इस्तेमाल कर पा रहे है ? आम लोगो की तरह सोचना छोड़ दीजिये जो काम सिर्फ और सिर्फ पैसे के लिए करते है. ये सोचना छोड़ दीजिये कि “ मेरा बॉस कम पैसा देता है, मुझे ज्यादा मिलना चाहिए, मै इससे ज्यादा कमा सकता हूँ”. याद रखिये, आपकी परेशानियों के लिए सिर्फ आप जिम्मेदार है, कोई और नहीं. बॉस आपकी सेलेरी Nahi बडाता तो उसे इल्जाम मत दीजिये, टैक्स को इल्जाम मत दीजिये. जब आप खुद की समस्याओं की जिम्मेदारी लेते है तब सिर्फ आप ही उसका हल निकाल सकते है. यही वो पहला सबक है जो अमीर डेड ने रॉबर्ट को सिखाया.

इस सबक का एक पार्ट ये भी था कि अमीर डेड ने उन्हें एक कंवीनीयेंस स्टोर में काम पर लगा दिया. उन्हें इस काम के कोई पैसे नहीं मिले. वे बस काम करते रहे. इसका फायदा ये हुआ कि वे अपने दिल से काम में लगे रहे और इस दौरान कई नये आइडिया उनके दिमाग में आते रहे. पैसे को अपने पीछे कैसे भगाया जाए इस बारे में उन्हें कई विचार मिले. उन्होंने देखा कि उस स्टोर की क्लर्क कोमिक्स बुक के फ्रंट पेज को दो हिस्सों में फाड़ देती थी. आधा हिस्सा वो रख लेती और आधा हिस्सा फेंक देती थी. देर शाम स्टोर में एक डिस्ट्रीब्युटर आया करता था. वो कोमिक्स बुक के उपरी आधे हिस्से को क्रेडिट के लिए लेता और बदले में नयी कोमिक्स बुक्स दे जाया करता. एक दिन उन्होंने उस डिस्ट्रीब्युटर से पूछा कि क्या वो पुरानी कोमिक्स बुक्स ले सकते है. वो इस शर्त पर मान गया कि वे उन कोमिक्स को बेचेंगे नहीं. ये उनके दिमाग में बिजनेस का एक नया आइडिया था. उन्होंने वे पुरानी कोमिकबुक्स अपने दोस्तों और बाकी बच्चो को पढने के लिए किराए पर देनी शुरू कर दी. बदले में वे हर किताब का 10 सेंट किराया वसूल करते थे. हर किताब सिर्फ दो घंटे के हिसाब से पढने के लिए दी जाती थी तो असल मायनों में वे उन्हें बेच नहीं रहे थे. उन्हें उस गेराज पर काम भी नहीं करना पड़ा जहाँ से वे कोमिक्स किराए पर देते थे. उन्होंने माइक की बहन को काम पर रखा जिसके लिए उसे हर हफ्ते 1 डॉलर दिया जाता. एक ही हफ्ते में उन्होंने 9.5 डॉलर कमाए. इस तरह उन्होंने सीखा कि पैसे को खुद के लिए काम करने दो ना कि आप पैसे के लिए काम करो.

 सबक 2: फिनेंसियल लीटरेसी क्यों सिखाई जाए ?

1923 में एजवाटर बीच होटल, शिकागो में एक मीटिंग हुई. दुनिया के बहुत से लीडर और बेहद अमीर बिजनेसमेन इस मीटिंग का हिस्सा बने. इनमे से थे एक बहुत बड़ी स्टील कंपनी के मालिक चार्ल्स शवाब और समुअल इंसुल उस वक्त की लार्जेस्ट यूटीलिटी प्रेजिडेंट और बाकी कई और बड़े बिजनेसमेन. इस मीटिंग के 25 साल बाद इनमे से कई लोग गरीबी में मरे, कुछ ने ख़ुदकुशी कर ली थी और कईयों ने तो अपना दिमागी संतुलन खो दिया था.

असल बात तो ये है कि लोग पैसे कमाने में इतने मशगूल हो जाते है कि वो ये ख़ास बात सीखना भूल जाते है कि पैसे को रखा कैसे जाए. आप चाहे जितना मर्ज़ी पैसा कमा ले, उसे बनाये रखना असली बात है. और अगर ये हुनर आपने सीख लिया तो आप किसी भी आड़े-टेड़े हालात का सामना आसानी से कर लेंगे. लॉटरी में मिलियन जीतने वाले लोग कुछ सालो तक तो मज़े से जीते है मगर फिर वापस उसी पुरानी हालत में पहुँच जाते है. अधिकतर लोगो के सवाल होते है कि अमीर कैसे बने? या अमीर बनने के लिए क्या करे ? इन सवालो के ज़वाब से अधिकतर लोगो को निराशा ही होती है. मगर इसका सही ज़वाब होगा कि पहले आप फानेंसियेली लिट्रेट बनना सीखे. देखिये ! अगर आपको एम्पायर स्टेट बिल्डिंग खड़ी करनी है तो सबसे पहले आपको एक गहरा गड्डा खोदना पड़ेगा, फिर उसके लिए एक मज़बूत नींव रखनी पड़ेगी. लेकिन अगर आपको एक छोटा सा घर बनाना हो तो एक 6 इंची कोंक्रीट स्लेब डालकर भी आपका काम चल जाएगा. मगर अफ़सोस तो इसी बात का है कि हम में से ज़्यादातर लोग 6 इंची स्लेब पर एक एम्पायर स्टेट बिल्डिंग खड़ी करना चाहते है. और वे ऐसा करते भी है तो ज़ाहिर है कि बिल्डिंग टूटेगी ही टूटेगी.

गरीब डेड रॉबर्ट से बस यही चाहते थे कि वे खूब पढ़ाई करे, लेकिन अमीर डेड उसे फिनेंसियेली लिट्रेट बनना चाहते थे. ज्यादातर स्कूल सिस्टम बस घर बनाना सिखाते है, मज़बूत फाउंडेशन नहीं. स्कूली शिक्षा और पढ़ाई की अपनी अहमियत है मगर असल जिंदगी में ये ही सब कुछ नहीं है.



रुल नो.1: लाएबिलिटीज़ और एस्सेट्स के बीच फर्क समझे और एस्सेट्स खरीदे.

सुनने में बड़ी आसान बात लगती है. लेकिन यही ek रुल है जो आपको अमीर बनाने में मदद करेगा. अक्सर गरीब और मिडल क्लास लोग लाएबिलिटज को एस्सेट समझ लेते है. मगर अमीर जानता है कि असल में एस्सेट्स होते क्या है और वो वही खरीदता है. अमीर डेड “KISS” प्रिंसिपल में यकीन रखते है जिसका मतलब है कीप इट सिंपल, स्टूपिड. उन्होंने लेखक और उसके दोस्त माइक को यही सिंपल बात सिखाई जिसकी बदौलत वे इतनी मज़बूत फाउंडेशन रखने में कामयाब रहे. इस सीख की यही सिंपल बात है ki लाएबिलिटीज़ और एस्सेट्स के बीच फर्क समझे और एस्सेट्स खरीदे ... Lekin अगर ये इतना ही सिंपल है तो हर आदमी अमीर होता. है ना? मगर यहाँ मामला उल्टा है. ये दरअसल इतना सिंपल है कि हर कोई इस बारे में सोचता तक नहीं है. लोगो को लगता है कि उन्हें लाएबिलिटीज़ और एस्सेट्स के बीच फर्क पता है मगर उन्हें सिर्फ लिट्रेसी के बारे में मालूम है फैनेंशियेल लिट्रेसी के बारे में नहीं.

PDF me kuch ड्राइंग्स दी गई है जिस्की मदद से अमीर डैड ने एस्सेट्स और लाएबिलिटीज़ के बीच का फर्क समझाया. 

इनकम स्टेटमेंट को “प्रॉफिट और लॉस” का स्टेटमेंट मानकर चलना चाहिए. इसका सिंपल सा मतलब है . Income hai कि आपके पास कितना पैसा आया और expense hai ki aapse कितना पैसा खर्च हुआ. बेलेंस शीट एस्सेट्स और लाएबिलिटीज़ के बीच बेलेंस बताती है. बहुत से पढ़े-लिखे एकाउंटेंट्स को भी ये पता नहीं होता कि आखिर बेलेंस शीट और इनकम स्टेटमेंट कैसे एक दुसरे से जुड़े है. 
अब ये चार्ट देखने में बहुत सिंपल है, इसे आसानी से लोगो को समझाया जा सकता है. एस्सेट्स वे चीज़े होती है जो आपके लिए पैसे कमाने का काम करती है. मान लो आप कोई घर खरीदकर उसे किराए पर देते है तो उसी किराए से आप वो लोन भी चूका सकते है जो आपने घर खरीदने के लिए लिया था. अब घर भी आपका हुआ और उससे मिलने वाला किराया भी. इसके उलट लाएबिलिटीज़ आपकी जेब से पैसे खर्च करवाती है. जैसे कि घर खरीदकर उसमे रहने से आपको कोई किराया नहीं मिलने वाला. तो अब आप समझ गए होंगे कि अगर अमीर बनना है तो एस्सेट्स खरीदिए और गरीब ही रहना है तो लाएबिलिटीज़.

अमीर लोगो के पास ज्यादा पैसा इसलिए होता है कि वे इस प्रिंसिपल पर यकीन करते है. वही दूसरी तरफ गरीब लोग इस प्रिंसिपल को ठीक से समझ ही नहीं पाते. इसीलिए इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि सिर्फ लिट्रेट नहीं बल्कि फिनेंशियेली लिट्रेट बनिए.

सिर्फ नंबर्स से कुछ नहीं होता, फर्क तो तब पड़ता है जब आप अपनी कहानी खुद लिखे. अधिकतर परिवारों में ये देखा गया है कि जो मेहनती होता है उसके पास पैसा भी ज्यादा होता है मगर उसका फायदा क्या जब सारा पैसा लाएबिलिटीज़ में ही खर्च हो जाए.

ये चार्ट दिखाता है कि मिडल क्लास आदमी अपना पैसा किस तरह खर्च करता है. और अगर यही उनका तरीका रहता है तो सारी जिंदगी वे मिडल क्लास ही बनकर रहते है. या क्या पता उससे भी नीचे चले जाए. क्योंकि आप देख सकते है कि उनका सारा पैसा लाएबिलिटीज़ में ही खर्च हो रहा है. कभी मोर्टेज, कभी रेंट, कार लोन, हाउस लोन, क्रेडिट कार्ड का बिल, फीस और भी ना जाने क्या-क्या. उनकी सारी कमाई इसीमे खर्च हो जाती है. 
दूसरी ओर गरीब लोग है जिनकी कोई लाएबिलिटी तो नहीं है मगर उनके कोई एस्सेट्स भी नही होते. वे भी पैसा कमाते है, सेलेरी पाते है मगर हर रोज़ के खर्चो में उनका सारा पैसा उड़ जाता है. माना एक गरीब आदमी हज़ार डॉलर कमाता है. उसमे से 300 डॉलर वो अपने छोटे से घर के किराए में खर्चता है, 200 डॉलर उसके आने-जाने का किराया, 200 डॉलर टैक्स और 200 डॉलर खाने और कपड़ो में खर्च हो जाता है. अब उसके पास बचा क्या ? कुछ भी नहीं. और कभी कभी तो उधार लेकर काम चलाना पड़ता है जिससे वो और गरीब हो जाता है.

इसके उलट अमीर एस्सेट्स खरीद कर रखते है. फिर उनके वो एस्सेट्स उन्हें और पैसा कमा कर देते है. उनकी कमाई इसी तरह दो से चार, चार से आठ होती जाती है. अधिकतर अमीर लोग दिमाग से काम लेते है. वे घर लोन पर लेकर उसे किराए पर लगा देते है. बिना मेहनत के हर महीने किराया मिलता है जिससे वे अपना लोन भी चुकता कर लेते है. Maniye ki लोन की इंस्टालमेंट 1 डॉलर है तो ये अपने घर का 2 डॉलर किराया वसूल करेंगे. 1 डॉलर बैंक को देंगे 1 डॉलर अपनी जेब में. तो हो गया ना ये बिना मेहनत के पैसा कमाना.

तो असल में अमीर डैड और गरीब डैड के बीच बस सोच का फासला है. अपना पैसा कैसे खर्चे सिर्फ यही मुद्दे की बात है और कुछ नहीं.

1960 के दिनों में अगर बच्चो से पुछा जाता था कि वे बड़े होकर क्या बनेगे तो सबके पास यही जवाब होता था कि वे अच्छे ग्रेड्स लायेंगे और डॉक्टर बनेंगे. तब सबको यही लगता था कि अच्छे ग्रेड्स लेकर वे बहुत पैसा कमा सकेंगे. हालांकि उनमे से बहुत बच्चे आज बड़े होकर डॉक्टर बन चुके है. बावजूद इसके उनमे से काफी लोग आज भी फैनेंशियेली स्ट्रगल करते नज़र आयेगे. क्योंकि उन्हें हमेशा यही लगा कि ज्यादा पैसा कमाने से उनकी सारी परेशानियां दूर हो जायेंगी. मगर आज के दौर में ऐसा नहीं है. आज बहुत से बच्चे फेमस एथलीट बनना चाह्ते है या फिर सीईओ, या फिर कोई मूवी स्टार या रॉक स्टार. क्योंकि उन्हें पता है कि सिर्फ अच्छी पढ़ाई और अच्छे ग्रेड्स के भरोसे बैठकर वे करियर में सक्सेस नहीं पा सकते. आजकल फैनेंशियेल नाईटमेयर बहुत आम हो गया है. अक्सर नए शादी-शुदा जोड़े ये सोचते है कि उनकी सेलेरी अब डबल हो जायेगी क्योंकि दोनों जने कमा रहे है. एक छोटे से घर में रहते हुए वे अब बड़े घर के सपने देखते है. इसलिए वे पैसा बचाना शुरू कर देते है. इसकी वजह से उनका सारा ध्यान सिर्फ अपना करियर बनाने पर होता है. उनकी कमाई बड़ने लगती है तो ज़ाहिर है उसी हिसाब से खर्चे भी. अब जब आप फैनेंशियेली लिटरेट हुए बिना पैसा बनाते है या बिना सोचे समझे उसे खर्च करते है तो होता ये है कि आप पहले से भी ज्यादा खर्च करने लगते है. ये एक ऐसा चक्कर है जो फिर चलता ही रहता है. नए जोड़े ने अब इतना पैसा कमा लिया कि वे एक बड़ा घर खरीद सके. उन्हें तो यही लगेगा कि वे अब थोड़े अमीर हो गए है. मगर असलियत तो ये है कि बड़े घर के साथ उन्होंने नयी लाएबिलिटीज़ भी खरीद ली है. उनके कैश फ्लो में अब प्रॉपर्टी टैक्स का खर्च बड गया. अब उन्हें एक नयी गाडी भी चाहिए, फर्नीचर भी, सब कुछ नया. उनकी लाएबिलिटीज़ बडती ही चली जा रही है. और ज़्यादातर होता यही है कि इनकम के साथ-साथ खर्चे भी बड़ने लगते है. फिर एक दिन अचानक इस सच्चाई का खुलासा होता है, मगर तब तक हम इस रेट रेस में बुरी तरह फंस चुके होते है.

फिर ऐसे ही लोग हमारे लेखक रोबर्ट के पास आकर पूछते है कि अमीर कैसे बना जाए ? अब यही सवाल तो मुसीबत की जड़ है क्योंकि सबको लगता है कि पैसा ही हर चीज़ का इलाज़ है. ये मानना ही एक बड़ी गलती है. उनकी समस्या ये नहीं है की वे ज्यादा नहीं कमा रहे. बल्कि ये है कि जो कुछ उनके पास है उसे हेंडल कैसे करे. एक कहावत है जो यहाँ पर लागू होती है “ जब तुम खुद को एक गहरे गड्डे में पाओ तो और खोदना छोड़ दो”

क्यों ज़्यादातर लोग पब्लिक स्पीकिंग से घबराते है ? मनोचिकित्सको का मानना है कि लोग इसलिए घबराते है क्योंकि उन्हें रिजेक्शन का डर होता है, औरो से अलग होने का भय होता है. लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे या हम पर कहीं हंस ना दे, यही सोच कर अधिकाँश लोग पब्लिक स्पीकिंग से दूर भागते है. वे वही करना पसंद करते है jo सब कर रहे होते है. वे खुद को भीड़ का हिस्सा बनाकर संतुष्ट हो जाते है. "आपका घर आपका सबसे बड़ा एस्सेट है”,“लोन लीजिए”, अब प्रमोशन हो गया है”, अब सेलेरी बड गयी है तो नया घर लो”,यही सब बाते हम लोगो से सुनते रहते है. और फिर हम भी उसी रास्ते पर चल पड़ते है क्योंकि जो सब कर रहे है वो ज़रूर सही होगा. है कि नहीं ? मगर नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है. अमीर डैड ने कहा था कि जापानीज़ लोग तीन चीजो की ताकत जानते थे. तलवार, कीमती जवाहरात और शीशा. तलवार बाजुओ की ताकत का प्रतीक है, कीमती जवाहरात पैसे की ताकत का और शीशा खुद के अंदर छुपी हुई ताकत को दिखाता है. और वही हमारी सबसे बड़ी ताकत है. जब आप खुद को जानते हो, शीशे के सामने अगर आप खुद से सवाल पूछ सकते हो कि मै सही हूँ या मुझे भी भीड़ का हिस्सा बनकर रहना चाहिए, तो जो जवाब आपको मिलेगा वही आपकी असली ताकत है.

गरीब और मिडल क्लास खुद को पैसे का गुलाम बनने देते है इसीलिए वो कभी अमीर नहीं बन पाते.

16 साल के रोबर्ट और माइक अमीर डैड के साथ हर उस मीटिंग में जाया करते थे जो वे अपने एकाउंटेंट, मेनेजेर्स, इन्वेस्टर और एम्प्लोयियों के साथ रखा करते. यहाँ एक ऐसे अमीर डैड देखने को मिलते है जो पढ़े-लिखे नहीं है, जिन्होंने 13 साल में ही स्कूल छोड़ दिया था मगर आज वो मीटिंग्स रखते है, अपने नीचे काम करने वाले पढ़े-लिखे लोगो को आर्डर देते है, उन्हें बिजनेस के टिप्स समझाते है. एक ऐसा इंसान जो भीड़ का हिस्सा नहीं बना, जिसने रिस्क लिया और जिसने लोगो की परवाह नहीं की. जिसे ये डर नहीं था कि लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे ? इन मीटिंग्स का नतीजा ये हुआ कि लेखक और उनका दोस्त दोनों ही स्कूली पढ़ाई में मन नहीं लगा पाए. जब भी उनकी टीचर कोई काम देती थी, उन्हें रूल्स के हिसाब से करना होता था. उन्हें एहसास हुआ कि स्कूली पढ़ाई किस तरह से बच्चो की प्रतिभा को निखरने नहीं देती. उनकी क्रियेटिविटी को मार कर उन्हें एक सांचे में ढाल कर इस समाज का एक मशीनी हिस्सा भर बना देती है. और उन्हें टीचर की इस बात से भी इंकार था कि अच्छे ग्रेड्स लाकर ही सक्सेसफुल और अमीर बना जा सकता है. एक दिन रॉबर्ट की अपने गरीब डैड से बहस हो गयी. उनके पिता का मानना था कि उनका घर उनके लिए सबसे बेस्ट इन्वेस्टमेंट है. मगर वो एक RAT RACE में भाग रहे थे. उनकी इनकम और खर्चे बराबर ही थे. उन्हें पूरा करने के लिए उनके पास एक पल की भी फुर्सत नहीं थी. यही बात रॉबर्ट उन्हें समझाना चाह रहे थे कि उनके पिता के लिए वो घर एस्सेट नहीं लाएबिलिटी है. घर पर उनके पैसे खर्च हो रहे थे बदले में मिल कुछ नहीं रहा था. ये बात उनके गरीब डैड समझ नहीं पा रहे थे और यही फर्क था गरीब और अमर डैड के बीच. खैर, उनकी बहस चलती रही. उन्होंने अपने गरीब पिता को बताया कि अधिकतर लोगो की जिंदगी लोन चुकाने में ही निकल जाती है. जिस घर को वे खरीदते है उसके लिए वे 30 साल तक लोन भरते है. फिर एक और बड़ा घर लेते है और पाना लोन रिन्यू करवाते है. अब घर की कीमत भी उसी हिसाब से बड़ेगी या नहीं ये निर्भर करता है. कुछ लोग ऐसे भी है जिन्होंने घर खरीदने के लिए एक बड़ी रकम ली थी. जितनी घर की कीमत नहीं थी उससे ज्यादा क़र्ज़ उनके सर पर चढ़ गया. इसका सबसे बड़ा नुकसान लोगो को ये होता है कि वे बाकी जगह इन्वेस्टमेंट नहीं कर पाते क्योंकि उनका सारा पैसा उस घर पर लगा है. उन्हें कभी इन्वेस्टमेंट करने का मौका ही नहीं मिल पाता और ना ही वे इस बारे में कुछ सीख पाते है. और इस तरह कई एस्सेट्स उनके हाथ से निकल जाते है. अगर इसके बदले लोग सिर्फ एस्सेट्स पर ध्यान दे तो उनका फ्यूचर कहीं ज्यादा बेहतर हो सकता है. 

अब उदाहरण के लिए रॉबर्ट की पत्नी के पेरेंट्स एक बड़े से घर में शिफ्ट हो गए. उनका सोचना था कि अपने लिए बड़ा और नया घर लेना एक सही फैसला है. क्योंकि बाकियों की तरह उन्हें भी घर लेना एक एस्सेट्स लगता था. मगर वे ये जानकर हैरान रह गए कि उस घर का प्रॉपर्टी टैक्स 1000 डॉलर था. ये उनके लिए एक बड़ी कीमत थी. और क्योंकि वे रिटायर हो चुके थे तो इतना पैसा टैक्स के रूप में भरना उनके रिटायर्मेंट बजट के बाहर था. बेशक हम ये नहीं कह रहे कि आप एक नया घर ना ले. बल्कि हम समझाना चाहते है कि जितने पैसे से आप एक बड़ा घर लेंगे उतने पैसे आप किसी एस्सेट में इन्वेस्ट करे तो बेहतर होगा. आपका एस्सेट आपके लिए कमाई करेगा और कुछ ही समय बाद आपके पास इतना पैसा होगा कि आप आसानी से मनपसंद घर ले पायेंगे वो भी बिना किसी लोन के.

अमीर और ज्यादा अमीर क्यों होते रहते है, वहीँ मिडल क्लास आगे क्यों नहीं बड पाते, इसके पीछे भी एक वजह है. कारण सीधा है, अमीर एस्सेट खरीदते है जो उनका पैसा दुगना करता रहता है. उस पैसे से उनके सारे खर्चे मजे में निपट जाते है. और मिडल क्लास क्या करते है ? वे तो बस महीने की एक तारीख का इंतज़ार करते है जब उनकी सेलेरी आये. सारी की सारी सेलेरी तो खर्चो को पूरा करने में खत्म हो जाती है तो इन्वेस्टमेंट कहाँ से होगा. और फिर जब सेलेरी बडती है तो उस पर टैक्स भी बड़ जाता है और उसी हिसाब से बाकी खर्चे भी. फिर अंत में वही RAT RACE चलती रहती है.

एक कर्ज में डूबा समाज, जहाँ हम रहते है:

अपने घर को एस्सेट समझना ही वो वजह है जो हमें कर्ज के बोझ तले दबाती है. आज यही अधिकतर लोगो की सोच है. अगर सेलेरी बड़ी है तो लोग सोचते है कि अब वे बड़ा सा घर ले सकते है क्योंकि उन्हें ये अपने पैसे का सही इस्तेमाल लगता है. इसके बदले अगर वही पैसा सही जगह लगाया जाए तो उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल सकती है. लेकिन ऐसा हो नहीं pata क्योंकि उनका सारा वक्त हाड़-तोड़ मेहनत करने में चला जाता है. अपनी नौकरी को सेफ ज़ोन समझ कर वे उससे अलग कुछ सोच ही nhi पाते. और साथ ही उनपर कर्ज का इतना बोझ होता है कि वे नौकरी छोड़ने का रिस्क ले ही नहीं सकते. अब ज़रा खुद से ये सवाल कीजिये कि आज आप नौकरी छोड़ कर बैठ जाते है तो कितने दिन आपका गुज़ारा चलेगा ? क्योंकि अगर आप फिनेंशियेली लिटरेट नहीं है, अगर आपने सारी उम्र सिर्फ सेलेरी के भरोसे ही काटी है, और एस्स्ट्स के बदले आपने लाएबिलिटीज़ ली है तो यकीनन आपकी जिंदगी एक कड़ी चुनौती है.

सिर्फ नेट वर्थ के भरोसे आपका काम नहीं चल सकता. नेट वर्थ बताता है कि आपके पास वाकई में कितना पैसा है चाहे वो एक गैराज में पड़ी पुरानी कार के रूप में ही क्यों ना हो. अब भले ही वो कार कुछ काम की नहीं हो. जबकि वेल्थ का मतलब है कि आपके पास जो पैसा है उससे आप कितना और पैसा कमा रहे है. जैसे कि मान लीजिये आपके पास कोई एस्सेट है जिससे हर महीने मुझे 3000 डॉलर की कमाई हो जाती है, और हर महीने आपके 6000 डॉलर खर्चे है तो मै सिर्फ आधे महीने ही अपना गुज़ारा कर पाऊंगा. तो सोल्यूशन ये होगा कि अपने एस्स्ट्स से मिलने वाला पैसा बड़ा दे. जब वो 6000 डॉलर मिलने लगेगा तो आप रातो रात अमीर नहीं हो जायेंगे मगर इस तरह आप वेल्थी होने लगेंगे. अब अगर आप अचानक नौकरी छोड़ते भी है तो आपके एस्सेट्स सारा खर्च कवर कर लेंगे. आप वेल्थी तभी बन पायेंगे जब आपके खर्च आपके एस्सेट्स की ग्रोथ से कम रहे.

तीसरा सबक 3: अपने काम से काम रखे

दुनिया की सबसे बड़ी फ़ूड चेन मैक डोनाल्ड के फाउंडर रे क्रोक ने एक एमबीए क्लास में एक स्पीच दी. ये 1947 की बात है. उनकी ये स्पीच बड़ी ही शानदार थी, लोगो को प्रेरित करने वाली. स्पीच के बाद जब एमबीए क्लास के छात्रो ने कुछ वक्त उनके साथ बिताने की गुजारिश की तो वे उनके साथ बियर पीने चले गए. बातो-बातो में रे ने अचानक एक सवाल किया “क्या आप लोग जानते है कि मै किस बिजनेस में हूँ?” अब ये बात तो सबको मालूम थी कि वे हेमबर्गर बेचते थे. इस बात पर वे हँसने लगे और बोले कि उनका असल बिजनेस तो रियल एस्टेट है. क्योंकि मैक डोनाल्ड के लिए हर लोकेशन का चुनाव सोच समझकर किया जाता है. जहाँ उसकी फ्रेंचाईजी बनाई जाती है, वो जमीन भी साथ ही बेचीं जाती है. तो इसका सीधा मतलब है कि मैक डोनाल्ड की फ्रेंचाईजी खरीदने वाले को वो जमीन भी खरीदनी पड़ती थी. तो इस तरह से ये एक रियल एस्टेट बिजनेस भी हुआ.

यही सबक अमीर डैड ने रॉबर्ट को सिखाया कि अक्सर लोग खुद के लिए छोड़कर बाकी सबके लिए काम करते है. वे टैक्स पे करके गवेर्मेंट के लिए काम करते है, उस कम्पनी के लिए काम करते है जहाँ वे नौकरी करते है, बैंक का मोर्टेज देकर उसके लिए काम करते है. और ये सब इसलिए क्योंकि हमारा एजुकेशन सिस्टम ही ऐसा है. स्कूल हमें एम्प्लोयी बनना सिखाता है नाकि एम्प्लायर. जो आप पढ़ते है वही आप बनते है. अगर आपने साइंस पढ़ी तो डॉक्टर. मेथमेटिक्स पढ़ी तो इंजीनियर, मतलब जो आपने पढ़ा वो आप बने. अब मुसीबत तो ये है कि इससे छात्रो का कोई भला नहीं हो पाता क्योंकि वे नौकरी और बिजनेस के बीच के फर्क में उलझ कर रह जाते है. जब कोई पूछता है कि आपका क्या बिजनेस है तो आपको ये नहीं बोलना चाहिये कि ,मै तो एक डॉक्टर हूँ या एक बैंकर हूँ, क्योंकि वो आपका प्रोफेशन है, बिजनेस नहीं. कहने का मतलब है कि आप जो करते है उसे अपना बिजनेस बनाईये, नौकरी नहीं. अपनी सारी उम्र दुसरो के लिए काम करके उन्हें अमीर करने में बर्बाद ना करे बल्कि खुद की जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए काम करे.

बहुत से लोगो को इस बात का एहसास बड़ी देर से होता है कि उनका हाउस Loan उनकी जान ले रहा है. और फिर उन्हें लगता है कि जिसे वे एस्सेट मानने की गलती कर रहे थे दरअसल कभी एस्सेट था ही नहीं. जैसे उन्होंने कार ली, तो उससे जुड़े तमाम खर्चे उनकी लाएबिलिटीज़ बन गए. उन्हें पूरा करने के लिए नौकरी ज़रूरी है और अगर कभी वो सेफ जॉब उनके हाथो से निकल गई तो उनकी मुसीबते शुरू हो जाती है. इसीलिए तो हम एस्सेट कॉलम पर इतना जोर दे रहे है ना कि आपकी इनकम कॉलम पर. और फिनेंशियेली सिक्योर होने का यही एक तरीका है.

आप कितने अमीर है, ये जानने का सही तरीका नेट वर्थ इसलिए नहीं है क्योंकि जब भी आप अपने एस्सेट्स बेचते है तो उनपर भी टैक्स लगता है. आपको उतना पैसा नहीं मिलता जितना कि आप सोचते है. आपके बेलेंस शीट के हिसाब से आपको जितना भी पैसा मिलेगा उस पर भी आपको टैक्स देना पड़ेगा. 

जो आप कर रहे है उसे एकदम मत छोडिये. ये किताब आपको कभी भी ये सलाह नहीं देगी. अपनी नौकरी करते रहिये पर साथ ही एस्सेट्स भी जमा कीजिये. और एस्सेट्स से मेरा मतलब है सही और असली मायने में एस्सेट्स. मै ये नहीं कहूँगा कि आप कोई कार लीजिये क्योंकि वे मेरी नज़र में एस्सेट नहीं है क्योंकि जैसे ही आप उसे चलाना शुरू करते है वो अपनी कीमत का 25% खो देती है. जितना हो सके खर्चे में कटौती करे और लाएबिलिटीज़ घटाए.

अब किस तरह के एस्सेट्स खरीदे जाने चाहिए ? यहाँ हम आपको कुछ उदाहरण देते है:

·         ऐसा बिजनेस जहाँ आपकी मौजूदगी ज़रूरी ना हो, जो दुसरे लोग आपके लिए चलाए.. क्योंकि आप वहां ज्यादा वक्त देंगे तो वो बिजनेस नहीं नौकरी होगी.

·         रियल एस्टेट में पैसा लगाये

·         स्टोक और बांड खरीदे

जब एस्सेट खरीदे तो अपनी पसंद की चीजों पर पैसा लगाए. क्योंकि आपका मन होगा तभी आप उसमें ध्यान दे पायेंगे. अगर उसमे आपकी रूचि होगी तो आप उसे बेहतर समझ पायेंगे. रॉबर्ट को रियल एस्टेट और स्टोक्स में रूचि थी खासकर छोटी कंपनियों में इन्वेस्ट करना. अपने अमीर डैड की सलाह पर उसने अपनी नौकरी कभी नहीं छोड़ी. वो जॉब करता रहा साथ ही अपने एस्सेट कॉलम को बड़ा और मज़बूत बनाता चला गया. एक पैसा भी जो आप कमाते है उसे बेकार ना जाने दे. अपने पैसे को अपना गुलाम मान कर चलिए जो आपके लिए काम करे. आप लक्ज़री खरीदना चाहते है ? शौक से खरीदे, कोई बड़ी बात नहीं. मगर ये ना भूले कि अमीर और मिडल क्लास में यही सोच का फर्क है. जहाँ मिडल क्लास पैसा आते ही पहले लक्ज़री में खर्च करेगा वहीँ अमीर आदमी उसे अंत में खरीदेगा. इतना समझ लेने के बाद अब अगले चेप्टर में आप अमीर लोगो के सबसे बड़े सीक्रेट के बारे में जानेगे.  

सबक 4: अमीर पैसा इन्वेंट करते है:

अलेक्जेंडर ग्रैहम बेल ने टेलीफोन इन्वेंट करने के बाद उसे पेटेंट कर दिया था. इनका बिजनेस बड़ा और सँभालने में मुश्किल होने लगी तो वे वेस्टर्न यूनियन गए और उन्हें अपना पेटेंट और छोटी सी कंपनी 100,000 डॉलर में बेचने की पेशकश की. उस वक्त के वेस्टर्न यूनियन के प्रेजिडेंट ने पेशकश ठुकरा दी. उन्हें ये दाम कुछ ज्यादा लग रहे थे. और फिर उसके बाद एक बड़ी कम्पनी AT&T का जन्म हुआ. रॉबर्ट 1984 से प्रोफेशनल तौर पर पढ़ा रहे है. एक चीज़ जो हजारो लोगो को पढ़ाने के बाद उन्होंने जानी वो ये कि उन सब लोगो में पोटेंशियल था. बल्कि हर एक इन्सान में पोटेंशियल है जो हमें महान बना सकती है. इसके बावजूद जो हमें रोकता है वो है, खुद पर डाउट रखन. स्कूल छोड़ने के बाद हमें पता चलता है कि जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए सिर्फ ग्रेड्स ही काफी नहीं होते. जैसे सिर्फ स्मार्ट लोग ही आगे नहीं बढ़ते बल्कि वे बढ़ते है जो बोल्ड भी होते है. ये सच है कि फैनेंशियेल जीनियस होने के लिए इसकी नोलेज भी होनी चाहिए मगर साथ ही हिम्मत और बोल्डनेस भी चाहिए. ज़्यादातर लोग पैसे के मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहते मगर अमीर होने के लिए आपको रिस्क लेने ही पड़ेंगे . क्योंकि हो सकता है आने वाले सालो में एक नया बिल गेट्स पैदा हो या अगला एलेक्जेंडर ग्राहम बेल और बाकी शायद दिवालिया बनकर गरीब हो जाए. अब ये आपकी मर्ज़ी है, आप इनमे से क्या बनना चाहते है. अगर आप अपना फिनेंशियेल आई क्यू बढ़ाते है तो बहुत कुछ हासिल कर सकते है. और अगर नहीं तो आने वाले साल और भी डरावने हो सकते है क्योंकि हर पुराना जाता है तो नया आता है. तो जो आज है वही सबसे खुशहाल वक्त है. आज के दौर में लोग ज्यादा फिनेंशियेली स्ट्रगल कर रहे है क्योंकि उनकी सोच अभी भी पुरानी है. फिर वे अपनी गलती ना मानकर या तो अपने बॉस को इल्जाम देंगे या नई टेक्नोलोजी को. जो कभी कल के दौर में एस्सेट था वही आज लाएबिलिटी बन चूका है. तो आपको अपडेट रहने की ज़रुरत है. रॉबर्ट ने एक गेम डीजाइन किया है जिसे वे “कैश फ्लो” कहते है. ये लोगो को sikhata hai ki पैसा कैसे काम करता है ? अमीर बनने की राह क्या है और रेट रेस से बाहर कैसे निकले ? ये सारी चीज़े इस गेम से समझाने की कोशिश की गयी. एक दिन एक औरत आई. गेम खेलने के दौरान उसने एक बोट कार्ड जीता जिसका मतलब था कि उसने उस गेम में एक बोट जीती. वो औरत बड़ी खुश हुई मगर जब उसे पता चला कि बोट लेने के लिए उसे एक बड़ी रकम टैक्स भरनी होगी तो उसकी ख़ुशी गायब हो गयी. वो बोट उसके लिए अब एस्सेट नहीं balki लाएबिलिटी बन गई. उसे अब पता चला कि ऐसे तो ये बोट उसकी जान ही ले लेगी. उसे ये आइडिया समझ नहीं आया और रिफंड की मांग की. उसे उसके पैसे वापस मिल गए और वो चली गई. मगर बाद में उसने फ़ोन करके बताया कि उसे अब गेम का आइडिया कुछ समझ आने लगा था. वो उस गेम से अपनी लाइफ को जोड़ कर देख पा रही थी. पैसा कैसे काम करता है इस बात को समझ ना पाने की वजह से उसका गुस्सा जायज था. हम भी अक्सर यही करते है. जो बात हमारी समझ से परे होती है, उस पर हमें गुस्सा आता है और हम जिंदगी की हर परेशानी के लिए उसे ब्लेम करना शुरू कर देते है. मगर अगर ठंडे दिमाग से सोचे तो ये तरीका एकदम गलत होगा. बेहतर होगा कि हम उन्हें समझने की कोशिश करे तो गेम ऑफ़ लाइफ जीत सकते है. 

बहुत से लोग कैश फ्लो गेम में खूब पैसा जीतते है. फिर उन्हें समझ नहीं आता कि उस पैसे का क्या करे तो वे हारने लगते है. इसकी वजह है उनकी पुरानी सोच जो आगे नहीं बढ़ने देती. और फिर वे बाद में सारा पैसा ही हार बैठते है. कुछ लोग कहते है कि वे हार गए क्योंकि उनके पास सही पत्ते नहीं थे. बहुत से लोग इसी तरह जिंदगी में सही मौको की तलाश में बैठे रहते है. कुछ लोगो तो सही मौका मिलता भी है तो उसका फायदा नहीं उठा पाते क्योंकि वे कहेंगे कि उनके पास पैसा ही नहीं था. अब कुछ ऐसे भी होते है जिन्हें पैसा और मौका दोनों मिले फिर भी वे कुछ हासिल नहीं कर पाए क्योंकि दरअसल वे समझ ही नहीं पाए कि ये एक अपोरच्यूनिटी है. फिनेंशियेल इंटेलीजेंस का मतलब है कि आप पैसे को लेकर कितने क्रिएटिव हो सकते है अगर आपको मौका मिलता है तो बगैर पैसे के आप क्या करेंगे, और अगर पैसा है मगर मौका नहीं तो उस सूरत में आप क्या करेंगे, ये सब आपकी फिनेंशियेल इंटेलीजेंस पर निर्भर करता है . ज़्यादातर लोग इस बात का एक ही सोल्यूशन जानते है कि खूब मेहनत करके खूब पैसा कमाया जाए. लेकिन आपको सीखना है कि अपने लिए मौका कैसे पैदा किया जाए ना कि उसके इंतज़ार में बैठे रहे. सबसे ख़ास बात अमीरों की जो है वे ये कि उन्हें पता है पैसा असल चीज़ नहीं है, असल चीज़ है इसका सही मतलब जानना. ये जान लेना कि जो हमें चाहिए वो हम इससे बना सकते है. हमारा दिमाग हमारे लिए सबसे बड़ा एस्सेट होता है. यही हमें सुपर रिच बना सकता है या सुपर पुअर निर्भर करता है कि हम कैसे इसका इस्तेमाल करे. जो लोग सफल है उनके साथ कदम मिलाकर चलना है तो आपको ये सीखना पड़ेगा कि पैसा बढाने करने की चाहत खुद में कैसे पैदा करे. आपको अपने सबसे बड़े एस्सेट यानि आपके दिमाग को इन्वेस्ट करने की ज़रुरत है. आपको फिनेंशियेली इंटेलीजेंट होना पड़ेगा. आइये इसका एक उदाहरण समझे. 1990 के दशक में एरिज़ोना और फोनिक्स के आर्थिक हालात बुरे चल रहे थे. वहां के लोगो को हर महीने 100 डॉलर बचाने की सलाह दी जा रही थी. बुरे वक्त के लिए पैसा बचाने का विचार कुछ हद तक सही भी है. मगर उस पैसे का क्या फायदा जो आप जमा करते जाते है. इससे तो अच्छा है उसका कुछ hissa इन्वेस्ट किया जाए जो आगे चलकर आपको फायदा दे. खैर, बात करते है एरिज़ोना और फोनिक्स के लोगो की जो आर्थिक तंगी झेल रहे थे. ऐसे में इन्वेस्टर को ये एक बढ़िया मौका लगा. लोग जो अपनी प्रॉपर्टी अपने-पौने दामो में बेच रहे थे वो कई इन्वेस्टर्स ने हाथो हाथ खरीद ली.

रॉबर्ट ने भी 75,000 डॉलर की कीमत वाला एक घर सिर्फ 20,000 डॉलर में खरीद लिया. इसके बाद उन्होंने अटॉर्नी के ऑफिस में एक एड दिया. 75,000 डॉलर वाला घर सिर्फ 60,000 डॉलर में लेने के लिए ग्राहकों टूट पड़े. रॉबर्ट का फ़ोन बजना बंद ही नहीं हो रहा था. ये पैसा उनको उस एस्सेट से मिलने जा रहा था जो उन्होंने प्रोमिसरी नोट के रूप में ग्राहक से लिया था. और उन्हें ये पैसा कमाने में केवल 5 घंटे लगे. उन्होंने जो 40,000 रूपये इन्वेंट किये वो उनके कॉलम ऑफ़ एस्सेट में क्रियेट हुए थे. और बगैर टैक्स के उन्होंने अचानक ही मिले एक मौके का फायदा उठाकर ये पैसे क्रियेट अपने इनकम कॉलम में एड कर लिए. 

कुछ सालो बाद ही उनके इस बिजनेस ne इतना पैसा क्रियेट किया कि उनकी कम्पनी की कार, गेस, इंश्योरेंस, क्लाइंट्स के साथ डिनर, ट्रिप और बाकी चीज़े सब कवर हो गयी. जब तक गवर्नमेंट उन खर्चो पर टैक्स लगाती, इनमे से ज़्यादातर चीज़े प्री टैक्स एक्स्पेंसेस में खर्च हो चुकी थी. कुछ सालो बाद ही जो घर 60,000 डॉलर में बिका था अब वो 110,000 डॉलर का था अभी भी उनके पास कुछ मौके थे मगर वे इतने कम थे कि उनके लिए रॉबर्ट को एक वैल्युएबल एस्सेट लगाना पड़ता और अपना वक्त भी.... तो वे आगे बड़ गए. उन्हें अब नये मौको की तलाश करनी थी. अब आप एक सवाल खुद से कीजिये. मेहनत करना भी बहुत मेहनत का काम है. 50% टैक्स भरिये और बाकी बचाइये. अब वो सेविंग्स आपको 5% इंटरेस्ट देंगी और फिर उस पर भी आप और टैक्स भरे ? इससे तो अच्छा होगा कि अपना पैसा और टाइम अपने सबसे पावरफुल एस्सेट यानी अपने दिमाग par इन्वेस्ट करे और फिनेंशियेली इंटेलीजेंट बने.

ये दुनिया कभी एक सी नहीं रहती. जो आज है कल नहीं होगा. कभी मंदी तो कभी तेज़ी का दौर चलता रहेगा. वक्त के साथ टेक्नोलोजी और बेहतर होती जाएगी. आज मार्केट ऊपर है तो कल नीचे होगा खासकर स्टोक मार्केट तो हर रोज़ बदलता है मगर इससे आपको क्या फर्क पड़ेगा अगर आप फिनेंशियेल इंटेलिजेंट है तो ? क्योंकि आप तो हर हालात के लिए तैयार रहेंगे. आपको जिंदगी में बेशुमार मौके मिलेंगे जहाँ आप अपनी फिनेशियेल इंटेलिजेंट का फायदा उठा सकते है, ज़रुरत है तो बस उन मौको को लपकने की.

अमूमन हम दो तरह इन्वेस्टर देख सकते है. पहले वो जो पैकेज इन्वेस्टमेंट खरीदते है. और ये काफी आसान और बगैर झन्झट का काम है. दुसरे इन्वेस्टर अपने लिए खुद ही इन्वेस्टमेंट क्रियेट करते है. इनको आप प्रोफेशनल भी कह सकते है. जितना ये इन्वेस्ट करते है उससे कई गुना ज्यादा पैसा बना लेते है. अब अगर आप इस तरह के इन्वेस्टर बनना चाहते है तो आपको खासतौर पर इन तीन स्किल्स को समझने की ज़रुरत है:

1.      ऐसी अपोर्च्यूनिटी ढूंढिए जो बाकी न ढूंढ सके हो:

याद रहे आपकी दिमाग वो देख सकता है जो बाकियों की आँखे भी न देख पाए

2.      पैसा बड़ाइये:

जब पैसे की ज़रुरत पड़े, मिडल क्लास केवल बैंक जाता ह मगर दुसरे टाइप के इन्वेस्टर पैसा बड़ा कर केपिटल रेज करते है. उन्हें हमेशा बैंक की ज़रुरत नहीं पड़ती.

3.      स्मार्ट लोगो को ओर्गेनाइज़ कीजिये:

इंटेलीजेंट लोग वे होते है जो अपने से ज्यादा स्मार्ट लोगो के साथ मिलकर काम करते है इसलिए इन्वेस्ट करने से पहले अपने इन्वेस्टमेंट एडवाइज़र को चुने.

मुझे मालूम है कि ये सब आपके लिए कुछ ज्यादा है मगर इसके रिवार्ड्स शानदार है. जिंदगी में रिस्क बहुत है लेकिन उन्हें हैंडल करना सीख कर ही आप अमीर बन पायेंगे.

सबक 5: सीखने के लिए काम करे, पैसे के लिए नहीं

एक बार एक जर्नलिस्ट ने रॉबर्ट का इंटरव्यू लिया था. रॉबर्ट उसके अर्टिकल पहले भी पढ़ चुके थे और उस जर्नलिस्ट के लिखने की स्टाइल से बेहद प्रभावित थे. इंटरव्यू जब पूरा हुआ तो उस जर्नलिस्ट ने रॉबर्ट को बताया कि वो एक मशहूर लेखिका बनकर उनकी ही तरह एक दिन फेमस होना चाहती है.रॉबर्ट ने उससे पुछा “तो ऐसा क्या है जो उन्हें मशहूर होने से रोक रहा है’ इस सवाल के ज़वाब में उस जनर्लिस्ट ने कहा”उनकी जॉब आगे नहीं बड पा रही”. इस पर रॉबर्ट ने सुझाव दिया कि उस जनर्लिस्ट को कोई सेल्स क्लास ज्वाइन कर लेनी चाहिए. जर्नलिस्ट ने बताया कि उनकी एक दोस्त उन्हें पहले ही ये ऑफर दे चुकी है मगर उन्हें ये छोटा काम लगता है. वे ये भूल गयी थी कि रॉबर्ट खुद कभी सेल्स स्कूल जा चुके थे.

इस बात का पॉइंट ये है कि अगर आपके पास कोई टेलेंट है जिसके दम पर आप कुछ पैसा कमाना चाहते है तो आपका टेलेंट काफी नहीं होगा क्योंकि उस टेलेंट को कैसे भुनाया जाए जब तक आप ये बात नहीं जानते आपका टेलेंट यूँ ही बेकार है. जब तक आप उसे लोगो के सामने पेश करने का हुनर नहीं सीख जाते, आप कुछ नहीं कमा सकते. तो बेचने की कला सीखने में कोई शर्म की बात नहीं है. किसी भी सेल्समेन को इसके लिए शर्मिंदा नहीं होना चाहिए.

एक जो सबसे बड़ा फर्क अमीर डैड और गरीब डैड के बीच था वो ये कि गरीब डैड हमेशा नौकरी की चिंता करते थे कि जॉब हमेशा सिक्योर रहे. क्योंकि एक सेफ जॉब ही उनके लिए सब कुछ थी. जबकि अमीर डैड हमेशा सिर्फ और सिर्फ कुछ सीखने पर जोर देते थे. अमीर बनने के लिए आपको बहुत कुछ सीखना पड़ेगा. इसके अलग पहलु को देखे तो स्कूल हमें रिवार्ड करते है किसी एक ही ख़ास चीज़ में महारत के लिए. इसका एक उदाहरण देखिये. जब डॉक्टर मास्टर की डिग्री लेते है उसके बाद किसी एक स्पेशल फील्ड में डॉक्टरेट करते है जैसे कि पीडियाट्रिक या कुछ और. मतलब एक छोटे से विषय पर उन्हें बहुत पढना पड़ता है उस फील्ड में महारत के लिए. और यही उनका रिवार्ड होता है. ऐसे ही बहुत कुछ जानने के लिए जो थोडा बहुत आप सीखते है वो नॉलेज तभी आएगी जब आप अलग-अलग कंपनीयों के लिए काम करेंगे, दुनिया की अलग-अलग चीजों को जानेगे, चीज्रे कैसे काम करती है ये सभी बाते अनुभव करेंगे तभी आपकी नॉलेज बड़ेगी. शायद यही वजह थी कि अमीर डैड छोटे रॉबर्ट और माइक को अपने साथ लेकर जाते थे जब वे अपने डॉक्टर, एकाउंटेंट्स, लॉयर या किसी प्रोफेशनल से मिलने जाते. जब रॉबर्ट ने मेरिन कोर्प्स ज्वाइन करने के लिए अपनी हाई पेईंग जॉब छोड़ी तो उसके गरीब मगर पढ़े-लिखे पिता समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर रॉबर्ट ने ऐसी शानदार नौकरी क्यों छोड़ी. वे एक तरह से इस फैसले से सख्त निराश हुए. रॉबर्ट ने उन्हें समझाने की हरमुमकिन कोशिश की कि उनका ऐसा करना क्यों ज़रूरी था मगर उन्हें ये बात हज़म नहीं हो रही थी. रॉबर्ट ने उन्हें कहा कि वे सीखना चाहते है कि खुले आसमान में कैसे उड़े. उन्हें जानना था कि वर्कर्स की टीम को कैसे हैंडल किया जाए, किसी bhi कम्पनी को अपने बलबूते पर चलाना कितना मुश्किल काम है, रॉबर्ट ये सब सीखना चाहते थे. वियतनाम से लौटने के बाद रॉबर्ट ने अपनी जॉब से रिजाइन कर दिया और Xerox कोर्प्स को ज्वाइन कर लिया. उन्हें ये नौकरी किसी फायदे के लिए नहीं चाहिए थी. वो इतने शर्मीले थे कि किसी को कुछ भी बेचने के ख्याल से ही उन्हें पसीना आ जाता. अपनी इसी कमी को दूर करने के लिए उन्होंने Xerox के सेल्स ट्रेनिंग प्रोग्राम की शिक्षा ली. इसके बाद रॉबर्ट ने खुद अपनी कंपनी की शुरुवात की और अपना पहला शिपमेंट भेजा. वे अगर इसमें नाकामयाब रहते तो पक्का दिवालिया हो जाते. लेकिन उन्होंने ये रिस्क लिया और अपने अमीर डैड की सीख को याद रखा कि बेशक आप 30 की उम्र से पहले दिवालिया होने का रिस्क ले सकते हो क्योंकि इस उम्र में आपको रिकवर होने का मौका भी मिल जाता है. ज्यादातर एम्प्लोयी अपने वर्कर्स को इतना तो पे करते है कि वे काम छोड़ kar ना जाए और ज्यदातर वर्कर भी जी फाड़ कर इसलिए मेहनत करते है कि वे काम से निकाले ना जाए. इसलिए तो उन्हें सिर्फ अपनी सेलेरी और कंपनी से मिलने वाले फायदों से ही मतलब होता है. इस सोच के साथ उनके कुछ साल तो बढ़िया गुज़रते है मगर ये लम्बे समय तक काम नहीं करता. तो क्यों ना आप वो सब कुछ अभी सीखे जो आप सीखना चाहते है इससे पहले कि आप कोई एक ख़ास प्रोफेशन अपने लिए चुने क्योंकि अगर एक बार आपने अपना प्रोफेशन चुन लिया तो आप हमेशा के लिए उसी से बंध कर रह जायेंगे.

Source- GIGL

टिप्पणियाँ