दीपावली का उपहार (कहानी)
दीपावली का उपहार
एक डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर
आ कर कहा,"चिट्ठी ले लीजिये।" अंदर से एक लड़की की आवाज आई - "आ रही हूँ।" लेकिन तीन-चार मिनट तक कोई भी अंदर से नहीं आया तो डाकिये ने फिर से कहा-"अरे भाई! इस घर में कोई है कि नहीं, अपनी चिट्ठी ले जाओ।
लड़की की फिर अंदर से आवाज आई-"भईया, दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए, मैं आ रही हूँ। डाकिये ने कहा-"नहीं, मैं खड़ा हूँ, तुम्हारी पंजीकृत (रजिस्टर्ड) पत्र है, इस पर तुम्हारे साइन चाहिये।"
लगभग छह-सात मिनट बाद दरवाजा खुला। डाकिया इस देरी के लिए झल्लाया हुआ तो था ही और उस पर अब वह चिल्लाने वाला था ही था कि दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया, सामने एक अपाहिज लड़की जिसके पांव नहीं थे, उसके सामने खड़ी थी।
डाकिया चुपचाप उसको पत्र देकर और उसके साइन लेकर चला गया। सप्ताह, दो सप्ताह में जब कभी उस लड़की के लिए कोई डाक आती तो डाकिया एक आवाज देता और जब तक वह लड़की न आती तब तक वह बाहर ही खड़ा रहता।
एक दिन उस लड़की ने डाकिये को नंगे पैर खड़ा देखा। इससे पहले उसने कभी डाकिये के पैरों पर ध्यान नहीं दिया था। दीवाली का त्यौहार भी नजदीक आ रही थी। उसने सोचा डाकिये को क्या उपहार दूँ।
एक दिन जब पोस्टमैन डाक देकर चला गया, तब उस लड़की ने, जहां मिट्टी में पोस्टमैन के पाँव के निशान बने थे, उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया। अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवा लिये। दीपावली आई और उसके अगले दिन पोस्टमैन ने गली के सब लोगों से तो ईनाम माँगा और सोचा कि अब इस बिटिया से क्या इनाम लेना? पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ।
डाकिये ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से आवाज आई- "कौन? "डाकिया, उत्तर मिला। लड़की हाथ में एक गिफ्ट पैक लेकर आई और कहा-"अंकल, मेरी तरफ से दीपावली पर आपको यह भेंट है। "डाकिये ने कहा- "तुम तो मेरे लिए बेटी के समान हो, तुमसे मैं उपहार कैसे ले सकता हूँ?" लड़की ने आग्रह किया कि मेरी इस उपहार के लिए मना नहीं करें। "ठीक है! कहते हुए पोस्टमैन ने वह पैकेट ले लिया।
लड़की ने कहा,"अंकल इस पैकेट को कृपया घर ले जाकर ही खोलियेगा। घर जाकर जब उसने पैकेट खोला तो अचंभित रह गया, क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते थे। उसकी आँखें भर गयीं।
अगले दिन वह ऑफिस पहुंचा और पोस्टमास्टर से प्रार्थना की कि उसका तबादला तुरन्त कर दिया जाए।पोस्टमास्टर ने कारण पूछा, तो पोस्टमैन ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखों और रुके कंठ से कहा-"आज के बाद से मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा। उस अपाहिज बच्ची ने तो मेरे नंगे पाँवों को तो जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा सर?"
दोस्तों संवेदनशीलता का यह उत्कृष्ट उदाहरण है। संवेदनशीलता यानि, दूसरों के दुःख-दर्द को समझना, अनुभव करना और उसके दुःख-दर्द में भागीदार बनना, उसमें शामिल होना। यह ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अपने आप में अधूरा है।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह हम सभी को संवेदनशीलता रूपी आभूषण प्रदान करें ताकि हम सभी एक दूसरों के दुःख-दर्द को कम करने में योगदान कर सकें। ताकि संकट की घड़ी में कोई यह नहीं समझे कि वह अकेला है, अपितु उसे एहसास हो कि सारी मानवता उसके साथ खड़ी है।
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