जीवन को सकारात्मक बनाने की कला (कहानी)
जीवन को सकारात्मक बनाने की कला (कहानी)
एक स्थान पर बड़ी सी इमारत का निर्माण
कार्य चल रहा था, और वहाँ काफी दिन से इमारत का काम चल रहा था। उस जगह रोज़ रोज़ सभी मजदुरों के छोटे छोटे बच्चे एक दुसरों की शर्ट पकडकर रेल-रेल का खेल खेला करते थे।
उन बच्चों में रोज कोई इंजिन बनता था और बाकी बच्चे इंजिन के डिब्बे बनते थे।
इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे प्रायः रोज बदल जाते थे, लेकिन केवल चङ्ङी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखे हरे रंग का रखा कपड़ा घुमाते हुए गार्ड बनता था।
उनको रोज़ रोज़ देखने वाले एक व्यक्ति ने कौतुहल से हमेशा गार्ड बनने वाले बच्चे को बुलाकर पूछा, "बच्चे, तुम रोज़ गार्ड बन जाते हो। तुम्हें कभी इंजिन, कभी डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती क्या?"
इस पर वह छोटा सा बच्चा बोला...
"बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई भी शर्ट नहीं है। तो मेरे पिछले वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे? और मेरे पीछे कौन खड़ा रहेगा?
इसलिये मैं रोज गार्ड बनकर खेल में हिस्सा लेता हूँ।
"ये बोलते समय उसके आँखों में पानी दिखाई दिया।
आज वो बच्चा जीवन में सभी को एक बहुत बड़ी शिक्षा दे गया।
किसी का जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उसमें कोई न कोई कमी जरुर रहेगी।
वो एक छोटा सा बच्चा माँ-बाप से नाराज़ होकर रोते हुए बैठ सकता था। वैसे न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूंढा और अपने जीवन को उसने सकारात्मक ढंग से देखा।
हम लोग अपने जीवन में कितना रोते है!
उन बच्चों में रोज कोई इंजिन बनता था और बाकी बच्चे इंजिन के डिब्बे बनते थे।
इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे प्रायः रोज बदल जाते थे, लेकिन केवल चङ्ङी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखे हरे रंग का रखा कपड़ा घुमाते हुए गार्ड बनता था।
उनको रोज़ रोज़ देखने वाले एक व्यक्ति ने कौतुहल से हमेशा गार्ड बनने वाले बच्चे को बुलाकर पूछा, "बच्चे, तुम रोज़ गार्ड बन जाते हो। तुम्हें कभी इंजिन, कभी डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती क्या?"
इस पर वह छोटा सा बच्चा बोला...
"बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई भी शर्ट नहीं है। तो मेरे पिछले वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे? और मेरे पीछे कौन खड़ा रहेगा?
इसलिये मैं रोज गार्ड बनकर खेल में हिस्सा लेता हूँ।
"ये बोलते समय उसके आँखों में पानी दिखाई दिया।
आज वो बच्चा जीवन में सभी को एक बहुत बड़ी शिक्षा दे गया।
किसी का जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उसमें कोई न कोई कमी जरुर रहेगी।
वो एक छोटा सा बच्चा माँ-बाप से नाराज़ होकर रोते हुए बैठ सकता था। वैसे न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूंढा और अपने जीवन को उसने सकारात्मक ढंग से देखा।
हम लोग अपने जीवन में कितना रोते है!
कभी अपने साँवले से रंग के लिए, कभी छोटे से क़द के लिए, कभी पडोसी की कार, कभी पड़ोसन के गले का हार, कभी अपने परीक्षा में मिले काम नंबर, कभी अंग्रेज़ी, कभी पर्सनालिटी, कभी नौकरी की मार तो कभी काम धंधे में मार... हमें इससे बाहर आना पड़ता है।
🔴 ये जीवन है... अपने जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण दे कर देखिये, अपने परेशानियों को अपना शिक्षक मान कर देखिये, ज़रूर आपके जीवन की दशा और दिशा दोनों सकारात्मक हो जायेगी।
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