कटोरे का मोह ( बोधकथा )
कटोरे का मोह ( बोधकथा )
पुराने समय की बात थी। एक स्थान पर बहुत ही मशहूर सूफी संत हुआ
करते थे । उनका नाम उमर था, और वह बगदाद के निवासी थे।
उनके पास बहुत ही
ज्यादा संख्या में लोग मिलने आया करते थे। वह सभी से बड़े प्रेम से बात करते,
और उचित सत्कार भी करते थे। एक समय की बात थी, दरवेश उनके पास घूमते - घूमते
पहुंचा।
वह उन्हें देखकर आश्चर्य में पड़ गया। वह सोचने लगा यह संत तो फकीर
है, लेकिन इनके पास इतनी धन-दौलत कहां से आई, और वह इस समय जिस आसन पर बैठे
हैं, वह सोने का बना हुआ है। चारों ओर सुगंध ही सुगंध है। जरी के पर्दे लटके हुए
है। ढेर सारे सेवक हैं। विभिन्न प्रकार की सजावट हुई है, उस सजावट में सोने
के घुंघरु भी बने हुए हैं, जो जमीन तक लटके हुए हैं। जब हवा चलती है घुंघरू
बजने लगते हैं।
कुल मिलाकर चारों तरफ विलास और सुख का ही साम्राज्य था। दरवेश
देख कर भोचक्का हो गया। उमर उनसे कुछ कहने वाले थे, कि इससे पहले ही
दरवेश बोला - आपकी प्रसिद्धि सुनकर मैं दर्शन करने आया था। लेकिन यहां
देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है, कि आप तो भौतिक संपदा के बीच मजे कर रहे हैं।
उमर ने कहा आपको एतराज है, तो मैं इसी समय यह सब छोड़कर आपके साथ चल दूंगा।
दरवेश ने हामी भरी, और कुछ ही समय में वह सब कुछ त्याग कर, दोनों साथ चल दिए।
कुछ दूर पैदल जाने के बाद दरवेश को कुछ भूला हुआ याद आया, और अचानक दरवेश
पीछे मुड़ा और वापस चल दिया। उमर ने इसका कारण पूछा तो बताया कि- वह गलती से वहां अपना एक कटोरा भूल आया है, और उसे लेना बहुत जरुरी है, इसलिए उसे
लौटना होगा।
तब उम्र हंसते हुए बोले - बस यही छोटी सी बात है, मैंने तुम्हारी एक आवाज़ पर अपनी लाखों की भौतिक संपत्ति और साम्राज्य पल भर में ठोकर मर कर आ गया, लेकिन तुम एक कटोरे का मोह भी अपने ह्रदय से न निकाल पाए। मेरे ठिकाने कि रेशमी रस्सियाँ तो धरती की मांटी तक धंसी थी, लेकिन यह कटोरे का मोह तुम्हारे मन तक धंसा हैं। जब तक मन में किसी भी चीज़ का मोह है तब तक सत्य को पाना कठिन है। यह सुन कर दरवेश लज्जित हो गया, उनसे क्षमा मांगी और उन्हें ह्रदय
से मानने लगा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें