व्यक्तित्व विकास की वाणी - वेदों से
ईश्वरीय ज्ञान को
वेद कहतें है। वेद विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ है। वेद चार हैं-
- ऋग्वेद (अग्नि ऋषि)
- यजुर्वेद (वायु ऋषि)
- अथर्वेद ( अंगिरा ऋषि)
- सामवेद (आदित्य ऋषि)
वेद में मानव के व्यक्तित्व विकास सम्बंधित जो बातें कही गयी है, वे उस काल में जितनी उपयोगी थी, आज भी उतनी ही उपयोगी है। दोस्तों, आज मैं आपके सामने इसका संक्षिप्त भावार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ -
ऋग्वेद-
हे
प्रभो! अपने ज्ञान के प्रकाश से हमारे अज्ञान को नष्ट करो।
हे
प्रभो! हम कुटिलता रहित हो कर शक्ति को प्राप्त करें।
प्रभात
बेला में जागने वाला ऐश्वर्यवान होता है।
उपासक को
शत्रु नहीं दबा सकता।
प्रभु की
संगति से हमारी मति कल्याणी होती है।
सहनशील
पुरुषार्थियों से द्वैषियों को ईश्वर दूर कर देता है।
हे जीव !
यज्ञ ही तुझे बढ़ाने वाला है।
यज्ञकर्ता
को, देव गण भी चाहतें है।
यज्ञ
कर्ता को, ईश्वर बार बार धन देता है।
याज्ञिक
को महाबलि भी नहीं मार सकता।
ईश्वर
यज्ञकर्ता को देव बना कर शक्तियुक्त कर
देता है।
वाणी, धन
और शरीर से परोपकार करो।
हम दैविक
मार्ग से विचलित न हों।
दानी का
धन घटता नही।
हम
श्रेष्ठ सामर्थ्य प्राप्त करें।
मित्र की
सहायता न करने वाल मित्र नहीं होता।
कर्म
करते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा रखें।
तत्व
दर्शी विद्वान् ही जन नायक हो।
उपदेशक
विद्वान चुप रहने वाले से श्रेष्ठ है।
हे !
विद्वानों गिरे हुओं को ऊपर उठाओ।
सत्य के
पथिक की रक्षा ईश्वर करता है।
बिना
परिश्रम किये देवों की मित्रता नहीं मिलती।
जिसने
शरीर को नहीं तपाया वह सुख नहीं पा सकता।
भाइयों
की मित्रता कल्याणप्रद होती है।
लोकोपकारहीन
कंजूस को शोक घेर लेता है।
हे
प्रभो! हम किसी के ऋणी न हों।
हम
विद्वानों का संग करें।
हे
प्रभो! हंम सदा पुष्प क एस्मान बनें।
यजुर्वेद-
हे
सर्वज्ञ प्रभो! आप मेरे जीवन को पवित्र कीजिये।
सत्य और
सदाचार के मार्ग पर चलें।
महान
सौभाग्य के लिए पुरुषार्थ करें।
हे प्रभो!
हम सौ वर्ष तक अदीन हो कर जियें।
हे
प्रभो! मेरा मन शुभ संकल्प करने वाला हो।
उस
परमात्मा की कोई प्रतिमा नही है।
अथर्वेद-
यज्ञकर्ता उत्तम सुख को पता है।
हे
प्रभो! हम सब ऐश्वर्यशाली हों।
देवों को
यज्ञ से जागरूक बना।
हे प्रभो।
हमारे माता पिता सुखी रहें।
हे
प्रभो! हमारे घर में पवित्र कमाई हो।
जहाँ
परमेश्वर की ज्योति है, वहाँ कल्याण ही कल्याण है।
संतान को
मर्यादा में रहना सिखाएं।
हजार
हाथों से कमायें औ सैकड़ों हाथों से दान करें।
धुन के
धनि अपने लक्ष्य को प्राप्त करतें है।
हे
प्रभो! हमारे शरीर पत्थर के सामान दृढ़ हो।
पुत्र
पिता का अनुवर्तन करने वाला हो।
आपस में
लड़ने वाले नाश को प्राप्त होतें है।
हे
प्रकाश स्वरुप प्रभो! हमें तेजस्वी बना दो।
अपने से
श्रेष्ठ को नमन करो।
अतिथि को
खिला कर ही स्वयं भोजन करो।
सामवेद-
हे प्रभो! मै सूर्य के समान बन जाऊँ।
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