मुंशी प्रेमचंद्र के प्रेरक कथन

स्वार्थ की माया अत्यन्त प्रबल और शक्तिशाली होती है। केवल मनुष्य के मस्तिष्क के द्वारा ही मानव का मनुष्यत्व प्रकट होता है। कार्यकुशल मनुष्य की सभी जगह अवश्यकता होती है। दया मानव का स्वाभाविक गुण है। सौभाग्य का गौरव उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल और निरंतर रहते हैं। कर्तव्य कभी अग्नि और जल की परवाह नहीं करता। कर्तव्य-पालन में ही चित्त, मन की शांति है। नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करते है, और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जातें है। अन्याय में किसी भी प्रकार का सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान ही है। आत्म सम्मान की रक्षा करना, हमारा सबसे पहला परम धर्म है। यश त्याग करने से मिलता है, धोखाधड़ी करने से नहीं। जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख प्रदान में हैं, उनका सुख लूटने में नहीं। लगन को कांटों , यातनाओं और रास्तों कि परवाह नहीं होती। उपहार और विरोध तो इस संसार...