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मुंशी प्रेमचंद्र के प्रेरक कथन

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स्वार्थ की माया अत्यन्त प्रबल और शक्तिशाली होती है। केवल मनुष्य के मस्तिष्क के द्वारा ही मानव का  मनुष्यत्व प्रकट होता है। कार्यकुशल मनुष्य की सभी जगह अवश्यकता होती है। दया मानव का स्वाभाविक गुण है। सौभाग्य का गौरव उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल और निरंतर रहते हैं। कर्तव्य कभी अग्नि और जल की परवाह नहीं करता। कर्तव्य-पालन में ही चित्त, मन की शांति है। नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करते है, और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जातें है। अन्याय में किसी भी प्रकार का सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान ही है। आत्म सम्मान की रक्षा करना, हमारा सबसे पहला परम धर्म है। यश त्याग करने से मिलता है, धोखाधड़ी करने से नहीं। जीवन का वास्तविक सुख, दूसरों को सुख प्रदान में हैं, उनका सुख लूटने में नहीं। लगन को कांटों , यातनाओं और रास्तों कि परवाह नहीं होती। उपहार और विरोध तो इस संसार...

अल्बर्ट आंस्टिन के प्रेरक कथन

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जीवन जीने के दो तरीके है। पहला यह कि इस संसार में कुछ भी चमत्कार नहीं है, दूसरा यह कि दुनिया चमत्कारों से भरा है। दो चीजें इस ब्रह्माण्ड में अनंत हैं:पहला- ब्रह्माण्ड और  दूसरा मनुष्य कि  मूर्खता; और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में उतनी दृढ़ता से नहीं कह सकता। जिस व्यक्ति ने कभी गलती ही नहीं की, उसने जीवन में कभी कुछ नया करने की कोशिश ही नहीं की। प्रत्येक मनुष्य जीनियस है।  लेकिन यदि आप किसी मछली को उसकी पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से निर्णय करेंगे तो वो अपनी पूरी ज़िन्दगी यह सोच कर जी जायेगी की वो मुर्ख है। एक सफल व्यक्ति बनने का प्रयास न करें। बल्कि सिद्धान्तवादी इंसान बने।        ईश्वर के सम्मुख हम सभी एक बराबर ही बुद्धिमान प्राणी हैं-और एक बराबर ही मूर्ख भी हैं। अनुपात में अच्छा और बुरा का अनुभव,  यही सापेक्षता का सिद्धान्त है।      यदि आप प्रसन्नतापूर्वक जीवन जीना चाहते हैं, तो स्वयं को एक व्यक्ति या वस्तु के बजाय एक लक्ष्य से बांधे। ...

महात्मा गाँधी के प्रेरक कथन (2)

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> विश्वास को हमेशा तर्क के द्वारा तौलना चाहिए. जब विश्वास अँधा हो जाता है तो मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। > पहले वह सभी आप पर नहीं ध्यान  देंगे, फिर वह सभी आप पर हँसेंगे, फिर वह सभी आप से लड़ेंगे, और तब विजयी आप की ही होगी। > जब तक आप को गलती करने की स्वतंत्रता प्राप्त न हो, तब तक स्वतंत्रता का कोई भी अर्थ नहीं है। > ख़ुशी तब ही मिलेगी, जब आप जो सोेचा करतें हैं, जो कहा करतें हैं और जो किया करतें हैं, सभी सामंजस्य में हों। > मौन सबसे शक्तिशाली, प्रभावी, शाशाक्त भाषण है. धीरे-धीरे दुनिया आपको ही सुनेगी। > पूर्ण धारणा के साथ बोला गया शब्द ”नहीं” सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से निजात पाने के लिए बोले गए “हाँ” से  कहीं ज्यादा बेहतर है। > विश्व के सभी धर्म, भले ही अन्य चीजों में अन्तर रखते हों, लेकिन सभी इस बात पर एकमत हैं कि दुनिया में कुछ नहीं बस सत्य सदैव जीवित रहता है। > कोई भी त्रुटी, तर्क या वितर्क करने से सत्य नहीं बन सकता और ना ही कोई सत्य इसलिए त्रुटी नहीं बन सकता है क्योंकि कोई उसे संसार मे...

महात्मा गाँधी के प्रेरक कथन (1)

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अपने दोष हम देखना नहीं चाहते ,    दूसरों के दोषों को देखने में आनंद आता है ,    बहुत सारे दुःख तो इसी आदत से पैदा होते हैं। बुद्धिमान मनुष्य काम करने से पूर्व सोचतें है, और मूर्ख काम करने के पश्चात। भूल करना पाप तो नहीं है लेकिन इसे छिपाना उससे भी बड़ा पाप है। क्रोध एक प्रचंड अग्नि कि ज्वाला है , जो मनुष्य इस ज्वाला को वश में कर सकता है , वह उसे बुझा सकता है , जो मनुष्य अग्नि की ज्वाला को वश मैं नहीं कर सकता वह स्वयं को ही जला लेगा। बुराई से असहयोग करना मानव का मानवता के पवित्र कर्तव्य है। खादी, वस्त्र नही विचार है। जिस दिन प्रेम की शक्ति, शक्ति पर विजयी हो जाएगी, उस दिन विश्व में अमन और शांति का वातावरण होगा। शांति का कोई भी दूसरा रास्ता नही, एक मात्र शांति ही है। किसी कार्य को प्रेम से ही करें अथवा करें ही नहीं। चिंता चिता के समान है, यदि आप को ईश्वर पर विश्वास है तो आपके चिंतित होने पर स्वयं को शर्मिंदा होना चहिये। ...

महात्मा बुद्ध के प्रेरक कथन

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आप को जो कुछ भी प्राप्त हुआ है, उसका अधिक मूल्यांकन न करें और न ही दूसरों से द्वेष, ईर्ष्या करें। द्वेष और ईर्ष्या मन की अशांति का कारण होती है। घृणा , घृणा करने से कम नहीं होती , बल्कि प्रेम करने से घटती है , यही जीवन का शाश्वत नियम है। मोह का त्याग अपने सफल सोपान की तरफ पहला पद है। स्वास्थ्य, ईश्वर का सबसे महान उपहार है , और संतोष ही सबसे बड़ा धन तथा विश्वसनीयता जीवन का सबसे अच्छा संबंध है। गुस्से में रहना , किसी दूसरों पर फेंकने के इरादे से एक गर्म कोयला अपने हाथ में रखने की तरह ही है , जो स्वयं को ही जलती रहती है।   आप कितने भी पवित्र से पवित्र शब्दों को पड़ें या बोलें , लेकिन जब तक उन पर आप अमल नहीं कर लेते, तब तक उसका कोई लाभ नहीं होता। मनुष्य का मस्तिष्क ही मूल है , जो वह विचार करता है, वही वह बन जाता है। जिह्वा एक तेज चाकू की तरह ही बिना रक्त निकाले ही मार सकती है। सत्य के रास्ते पर दो ही गलतियाँ हो सकती हैं , या तो आप पूरा सफ़र नहीं कर पाते या सफ़र का आरम्भ नहीं कर पाते। करोणों दीप ...