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हिंदी तुझे प्रणाम

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हिंदी तुझे प्रणाम, हिंदी तुझे प्रणाम.... जन जन की भाषा, मन की भाषा, करते हैं तुझे सलाम . हिंदी तुझे प्रणाम ...... *तुझसे ही सीखा है हमने , गिर कर उठना उठ कर चलना -2   तुझसे ही सीखा है हमने , अपनी संस्कृतियों में पलना-2 अपने मूल्यों की है रक्षक , भारत की पहचान .... हिंदी तुझे प्रणाम ......हिंदी तुझे प्रणाम..... *वीर शिवा जी की गाथा में  हर जन जन मन की कथा में -2 तेरे ही तो तान ............. हिंदी तुझे प्रणाम ....हिंदी तुझे प्रणाम ....... * भारत की गौरव गान है तू  हम सब का अभिमान है तू -2  हर भाषा की वरदान ...... हिंदी तुझे प्रणाम ....हिंदी तुझे प्रणाम *मिला सहारा सम्बल तुझसे  और मिला अवलम्बन तुझसे -2 सब गायें तेरा गान ....... हिंदी तुझे प्रणाम .....हिंदी तुझे प्रणाम...... * हिंदी तुझमे बहती रसधार   भारत की तू जीवन आधार -2   तुझको ही पाया है सबने , गए जो चारों धाम     हिंदी तुझे प्रणाम .... हिंदी तुझे प्रणाम........             ...

हिंदी की महत्ता

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यह सर्वविदित है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है । यह बताने की आवश्यकता भी नही है कि मातृभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्ज़ा भी प्राप्त है। राजभाषा होने के साथ साथ हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा दिलाने हेतु हमारे देश के अनेक महापुरुषों ने अथक प्रयास किया है । जैसे - पंडित मदन मोहन मालवीय , बाल गंगाधर तिलक , राजाराम मोहन राय , महात्मा गांधी इत्यादि। इनके अटूट विश्वास और अथक परिश्रम के फलस्वरूप आज हिंदी हमारी मातृभाषा , राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है।    संविधान में जब इस मुद्दे पर चर्चा चल रही थी कि कौन सी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा देना उचित होगा?? उस समय महात्मा गांधी जी का यह मन्तब्य था कि - हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो राष्ट्रभाषा हो सकती है। कोई भी राष्ट्र तब तक उन्नति नही कर सकता जब तक कि उसकी कोई एक राष्ट्रभाषा न हो। हिंदी हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली तथा जन जन की भाषा है । इसलिए हिंदी को ही राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा मिलनी चाहिए। 1924 में कांग्रेस के 39वें अधिवेशन के सभापति गांधी जी ने कांग्रेस के कार्यक्रमों के लिए हिंदी के प्रचार कार्य को ...

लड़की हूँ....

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पी रही हूँ सारे अश्कों को भुला रही हूँ सारे ज़ख्मो को दम घुटते रीति रिवाजो को अधरों पर सी रही हूँ...... लड़की हूँ ....बस जी रही हूँ........। उलझकर रस्म रिवाजो में  खोखली संस्कारी इरादों में घुटती संस्कृतियों को पी रही हूँ लड़की हूँ......बस जी रही हूँ.........। जब देखा अतीत के पन्नों को बचपन के प्यारे सपनोँ को  कुछ ने दी उदासी , तो कुछ से  खुशियां चुन रही हूँ  लड़की हूँ......बस जी रही हूँ........। मिली भर्त्सना प्रताड़ना ही जिससे ऐसी ब्यथा कहू किससे ?? इस निर्मम समाज की गाथा  अल्फाज़ों  में सी रही हूँ..... लड़की हूँ ..... बस जी रही हूँ.........। देवी रूप दे बना दिया महान  क्षम्य नही कोई त्रुटि मान लिया जहान त्रुटियाँ जो हुई मुझसे  गरल रूप में पी रही हूँ...... लड़की हूँ ....बस जी रही हूँ..........। शिल्पी पाण्डेय लखनऊ ( यू. पी.)

गुरू (कविता), शिक्षक दिवस पर विशेष

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निस्वार्थ भाव से जल कर जो    देता है सबको दिव्य प्रकाश  उनकी चरणों में वंदनवार  करते हैं ये धरती आकाश मन के कोरे कागज़  अंकित कर दे जो अमिट छाप ऊर्जा का भर अद्भुत सागर  करे दूर अज्ञान का अभिशाप बचपन के बगिया का माली  करता जीवन की रखवाली  रस सींच सींच कर पौधों को  कर देता सबका प्रिय आलि ऐसे शिक्षक की वंदना  करता ये तन मन प्राण है भू पर गुरू के रूप में  जो मिला हमे भगवान है ।               भारत के सभी शिक्षकों को मेरा शत शत नमन ।।। शिल्पी पाण्डेय लखनऊ  यू. पी. 

समाज में शिक्षकों की भूमिका ( शिक्षक दिवस पर विशेष)

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सर्वपल्ली राधाकृष्णन (भारत के दूसरे राष्ट्रपति) जन्म : 5   सितम्बर 1888,  तिरुत्तनि ( चेन्नई  से ६४ कि मी उत्तर-पूर्व) राजनैतिक पार्टी : स्वतन्त्र जीवन संगी   :  शिवकामु व्यवसाय   :  राजनीतिज्ञ , दार्शनिक , शिक्षाविद , विचारक देहावसान : 17  अप्रैल 1975   प्रसिद्ध कथन    " मानव की जाति एक होनी चाहिये। मानव इतिहास का सम्पूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है। यह तभी सम्भव है जब समस्त देशों की नीतियों का आधार विश्व-शान्ति की स्थापना का प्रयत्न करना हो।" "मात्र जानकारियाँ देना शिक्षा नहीं है। यद्यपि जानकारी का अपना महत्व है और आधुनिक युग में तकनीक की जानकारी महत्वपूर्ण भी है तथापि व्यक्ति के बौद्धिक झुकाव और उसकी लोकतान्त्रिक भावना का भी बड़ा महत्व है। ये बातें व्यक्ति को एक उत्तरदायी नागरिक बनाती हैं। शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरन्तर सीखते रहने की प्रवृत्ति। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान और कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका...