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मकर संक्रान्ति

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मकर संक्रान्ति  भारत उत्सवधर्मी राष्ट्र है। मूल प्रकृति को आधार बना कर प्रत्येक दिन कोई न कोई व्रत, त्योहार पूरे वर्ष मनाये जाते हैं। कुछ उत्सव धार्मिक होते है कुछ प्राकृतिक कुछ ऐतिहासिक तथा कुछ राष्ट्रीय। अस्मिता को पुष्ट करने वाले यह हमारे शरीर, मन और जीवन में नई चेतना, उत्साह और उमंग भर देते हैं ऐसा ही पर्व है मकर संक्रांति।  पौष मास के इस दिन भगवान सूर्य नारायण धनु राशि में प्रवेश करते हैं तथा दक्षिणायन समाप्त हो कर उत्तरायण प्रारम्भ होता है। रात्रि का अहंकार धीरे- धीरे छोटी होने लगती है तथा प्रकाशमय दिन बड़ा होने लगता है। सूर्य की उष्मा प्रखर होने लगती है। हम अंधकार से प्रकाश की ओर, ज्ञान की ओर बढ़ने लगते है।  उत्तर भारत में इसे खिचड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक केरल तथा आन्ध्र तेलगांना में संक्रान्ति, कहीं- कहीं उत्तरायणी, हरियाणा, हिमाचल व पंजाब में माघी व लोहड़ी, असम में भोगली बिहु, कश्मीर घाटी में शिशुर सेंक्रान्त, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रान्ति के नाम इस उत्सव को पुकारा व मनाया जाता है। नेपाल, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, लाओस, म्यामार, कम्बोडिया और श्रीलंका में भी ...

विश्व विजेता : स्वामी विवेकानंद

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विश्व विजेता : स्वामी विवेकानंद  यदि कोई यह पूछे कि वह कौन युवा सन्यासी था, जिसने विश्व पटल पर भारत और सनातन धर्म की कीर्ति पताका फहराई, तो सबके मुख से निःसंदेह स्वामी विवेकानन्द का नाम ही निकलेगा। विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्र था। उनका जन्म कोलकाता में 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। बचपन से ही वे बहुत शरारती, साहसी और प्रतिभावान थे। पूजा-पाठ और ध्यान में उनका मन बहुत लगता था। नरेन्द्र के पिता उन्हें अपनी तरह प्रसिद्ध वकील बनाना चाहते थे, वे धर्म सम्बन्धी अपनी जिज्ञासाओं के लिए इधर-उधर भटकते रहते थे। किसी ने उन्हें दक्षिणेश्वर के पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस के बारे में बताया कि उन पर मां भगवती की विशेष कृपा है। यह सुनकर नरेन्द्र उनके पास जा पहुंचे। वहां पहुंचते ही उन्हें लगा, जैसे उनके मन मस्तिष्क में विद्युत  का सन्चार हो गया  हो। यही स्थिति रामकृष्ण की भी थी, उनके आग्रह पर नरेन्द्र ने कुछ भजन सुनाये। भजन सुनते ही परमहंस जी की समाधि लग गयी। वे रोते हुए बोले, नरेन्द्र मैं कितने दिनों से  मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में था। । तुमने आने में इतनी देर क्यों लगायी ? धीरे-धीरे ...

पानी पिएं, न कम न ज्यादा

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पानी पिएं, न कम न ज्यादा ठंड के दिनों में शरीर में पानी का स्तर बनाए रखना बेहद जरूरी है। कुछ लोग इस मौसम में पानी बहुत कम पीते है या फिर हर समय बहुत तेज गर्म पानी पीते है। दोनों ही आदते सेहत के लिहाज से ठीक नहीं। गर्मियों में पसीना आने की वजह से बार-बार प्यास लगती रहती है, इसीलिए पानी ज्यादा पिया जाता है। लेकिन सर्दियों में ऐसा नहीं होता, ठंड में पानी कम पिया जाता है। हमारे शरीर का लगनग 75 प्रतिशत हिस्सा पानी से बना है। शरीर के सभी अंग सही ढंग से काम करते रहे, इसके लिए शरीर में पानी का स्तर बने रहना बहुत जरूरी होता है। ठंड में भी पिए पर्याप्त पानी  सांस लेने, भोजन पचाने, पसीने और पेशाब के जरिये शरीर से लगातार पानी बाहर निकलता रहता है। यदि शरीर में पानी का स्तर सामान्य से 10 फीसदी नीचे चला जाए तो ठंड के मौसम में भी पानी की कमी हो जाती है। ऐसा होने पर शुष्क त्वचा, होठ फटना, सिर दर्द, चिड़चिड़ापन, सूखी खांसी, नाक बहना,जरूरत से ज्यादा भूख लगना और ब्लड प्रेशर हाई होना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। पानी की की होने पर विषैले तत्व मूत्र द्वारा बाहर नहीं निकल पाते, जो सक्रमण की आशंका को बढ़ाते...

स्वामी विवेकानन्द

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 युगद्रष्टा स्वामी विवेकानन्द  स्वामी विवेकानन्द जी को विदा हुए 118 साल हो चुके हैं, परन्तु आज भी उनका चित्र देश में सबसे आसानी से पहचाने जाने वाली छवियों में से हैं। एक बहुत ही बड़ी संख्या में युवा उन्हें अपना प्रेरणाश्रोत मानते हैं, उनकी छवि को अपनी पढ़ाई की मेज पर रखते हैं। मात्र 39 वर्ष जीने वाले इस सन्यासी का भारत पर इतना गहरा प्रभाव क्यों है? 12 जनवरी 1863 को जन्में स्वामी जी की 158वीं जयंती पर यदि हम इस प्रश्न का उत्तर तलाशने का प्रयास करें तो हमें यह ध्यान आता है कि स्वामी जी के विषय में  सामान्यतः सभी लोगों को यह तो पता ही है कि वे रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य थे और 1893 के शिकागो के विश्व सर्व धर्म सम्मलेन में उन्होंने हिन्दू धर्म की सनातन परंपरा को अपने ऐतिहासिक भाषण के माध्यम से प्रस्तुत किया था जिससे पूरा पश्चिमी विश्व चकित हुआ था।  लेकिन कम ही लोगों को यह मालूम होगा कि महाकवि रविंद्रनाथ टैगोर स्वामी जी के बारे में यह कहते थे कि, 'यदि भारत को जानना है तो स्वामी विवेकानंद को पढ़ो'। यह भी कम लोगों को ही मालूम होगा कि गाँधी जी ने कहा था कि, 'स्वामी विवेकानंद...