छोटी छोटी तीन कहानियाँ
दुनिया ऐसी बावरी
संत टॉलस्टॉय सुबह 5:00 बजे चर्च गए। सोचा वहां शांत वातावरण में
प्रार्थना सुन सकूंगा, किंतु उन्हें यह देख आश्चर्य हुआ कि उनसे पहले भी एक व्यक्ति वहां पहुंच गया है, और कह रहा है - हे ! परमात्मा मैंने इतने अधिक पाप किए हैं कि मुझे कुछ कहने मे शर्म आ रही है। अतः हे भगवान मुझ पापी को क्षमा करना।
टॉलस्टॉय ने सुना तो सोचने लगे कि यह आदमी सचमुच ही कितना महान है कि सच्चे दिल से अपने अपराधों को स्वीकार कर रहा है यदि किसी अपराधी को अपराधी कहें तो वह आग बबूला हो कर मारने दौड़ता है और एक यह है कि स्वयं ही अपने को अपराधी मान रहा है।
निकट जाने पर टॉलस्टॉय उस व्यक्ति को पहचान। गए वह नगर का एक लखपति सेठ था ज्यों ही उसकी दृष्टि उन पर गई वह घबरा कर बोला आपने मेरे शब्द सुने तो नहीं । टॉलस्टॉय ने कहा हां सुने तो थे मैं तो तुम्हारी स्वीकारोक्ति सुनकर धन्य हो गया , वह व्यक्ति बोला लेकिन तुम यह बात किसी दूसरे से ना कहना क्योंकि यह बातें मेरे और परमेश्वर की बीच की हैं । मैं तुम्हें सुनाना नहीं चाहता था फिर अकस्मात कुछ नाराजगी से बोला लेकिन अगर तुमने यह बात किसी को बताई तो मुझसे बुरा कोई ना होगा।
टॉलस्टॉय तो यह सुनकर दंग रह गए और बोले अरे अभी अभी तो तुम कह रहे थे कि .... उनकी बात काटते हुए वह व्यक्ति बीच में ही बोल उठा - हां मगर मैंने जो कुछ कहा था वह परमात्मा के लिए कहा था दुनिया के लिए नहीं।
वह हैरान होकर सोचने लगे यह दुनिया कितनी मूर्ख है कि लोगों से डरती है मगर भगवान से नहीं जो आदमी लोगों के सामने अपनी सच्चाई प्रकट नहीं कर सकता वह भला परमात्मा के समक्ष कैसे सच्चा हो सकता।
साधुता
गुरु देश की रानी बड़ी ही दुष्ट प्रकृति की थी। जब उसे पता चला कि
भगवान बुद्ध उनके प्रदेश में आ रहे हैं तो उसने नौकर-चाकरों को आज्ञा दी कि वह उनका अनादर करें। महात्मा बुद्ध के नगर प्रवेश करते ही लोगों ने उन्हें चोर, मूर्ख, गधा आदि शब्दों से बोलना शुरु कर दिया, पर महात्मा बुद्ध शांत ही रहे आखिर उनके प्रिय शिष्य आनंद से ना रहा गया। वह उनसे बोले - भगवन हमें यहां से चले जाना चाहिए।
बुद्ध देव ने पूछा कहां जाना चाहिए?
आनंद ने उत्तर दिया -किसी दूसरे नगर में , जहां हमें कोई अपशब्द ना कहें।
बुद्धदेव और वहां भी यदि कोई दुर्व्यवहार करने वाला मिले तो?
आनंद किसी और स्थान को चले जाएंगे ।
महात्मा बुद्ध - "नहीं जहां दुर्व्यहार दुर्व्यवहार हो रहा हो। उस स्थान को तब तक नहीं छोड़ना चाहिए। जब तक वहां शांति स्थापित ना हो। क्या तुमने यह नहीं देखा कि मेरा व्यवहार संग्राम में बढ़ते हुए हाथी की तरह होता है ? जिस प्रकार हाथी चारों ओर के तीरों को सहता रहता है। उसी तरह हमें दुष्ट पुरुषों के अपशब्द को सहन करते रहना चाहिए। याद रखो आनंद- लोग तो वश में किए हुए खच्चरों , सिंधु देश के घोड़ों तथा जंगली हाथियों को उत्तम मानते हैं किंतु सबसे उत्तम तो यह है जो स्वयं को वश में रखें कभी उत्तेजित ना हो।"
कृषक महात्मा बुद्ध
कृषक महात्मा बुद्ध
एक बार महात्मा बुद्ध भिक्षा मांगते हुए एक कृषक के घर गए। कृषक ने
उन्हें देखा तो कहा - तुम तो हठ्ठे कट्ठे दिखाई देते हो। जब मैं कृषि करके अपने परिवार का पोषण कर सकता हूं तब तुम कृषि करके स्वयं का पेट क्यों नहीं भर सकते! इस पर महात्मा बुद्ध बोले - मैं भी तो कृषि करता हूं। कृषक ने पूछा मगर तुम्हारे हल ,बैल कहां है?
उन्हें देखा तो कहा - तुम तो हठ्ठे कट्ठे दिखाई देते हो। जब मैं कृषि करके अपने परिवार का पोषण कर सकता हूं तब तुम कृषि करके स्वयं का पेट क्यों नहीं भर सकते! इस पर महात्मा बुद्ध बोले - मैं भी तो कृषि करता हूं। कृषक ने पूछा मगर तुम्हारे हल ,बैल कहां है?
महात्मा बुद्ध बोले- " मैं कृषि करता हूं , मगर मेरी खेती आत्मा या हृदय की होती है, जिसमें ज्ञान के हल से श्रद्धा के बीज बोता हूं और तपस्या के जल का सिंचन करता हूं विनय मेरे हल्का हरीश , विचारशीलता फल और मेरा मन नवेली है दिन-रात परिश्रम करता हूं , जिसमें अमरता की फसल लहलहाती है और बहुत अनाज पैदा होता है । इस पैदावार को मैं सब में बांटता फिरता हूं, फिर भी मेरा भंडार खाली नहीं होता यदि तुम अपनी खेती का कुछ हिस्सा मुझे दोगे तो बदले में मैं कुछ हिस्सा तुम्हें दे दूंगा ! क्या तुम्हें या सौदा पसंद है। बात किसान की समझ में आ गई । वह उनके चरणों में गिर पड़ा और उसने उन्हें भिक्षा ला कर दी।
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