गिरवी की आँख

गिरवी की आँख


 गौनू झा की कुशाग्र बुद्धि के कारण राजदरबार में उसका सम्मान बढ़ता जा रहा था। राजा


सभी कामों में उससे सलाह लेता था। उसका वेतन भी अन्य दरबारियों से अधिक हो गया था, इसके कारण अन्य दरबारी गौनू झा से जलने लगे और हमेशा नीचा दिखाने का अवसर खोजते रहते थे।


भूखन दास भी गौनू झा के गाँव का ही रहने वाला था और दरबार में पुराना कर्मचारी था। उसकी एक आँख बचपन में खेलते हुए फूट गई थी। एक दिन अन्य दरबारियों के साथ भूखन दास कहीं बैठा था तो एक दरबारी ने चर्चा करते हुए कहा, “भूखन दास! आप दरबार में गौनू से बहुत पुराने हो, परन्तु आप के ही गाँव से आया गौनू का सम्मान और वेतन आपसे ज्यादा है?'' भूखन ने आह भरते हुए कहा, "सब किस्मत का खेल है भैया।"


एक कर्मचारी ने भड़काते हुए कहा, "बुद्धि में तो आप भी कम नहीं हो, मगर धूर्तता में गौनू आगे है।"


दूसरा कर्मचारी बोला, "अगर आप थोड़ी सी भी बुद्धि लगाओ, तो गौनू को नीचा दिखा सकते हो।"


भूखन दास की ईर्ष्या और भी बढ़ गई। “हाँ, कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा" कहकर वह चल दिया।


दो दिन बाद दरबार लगा था, मौका देखकर भूखन दास बोला, "महाराज एक संकट है, जिसे आप ही दूर कर सकते हैं।" "हाँ, हाँ, कहो क्या है?” महाराज ने पूछा।


"महाराज, गौनू झा और हम एक ही गाँव के हैं। गौनू झा के परिवार में ब्याज पर पैसा देने का काम होता है। एक बार रुपये की आवयकता थी और मेरे पास गिरवी रखने को कुछ नहीं था तो मैंने एक आँख गिरवी रखकर 500 रुपये लिये थे। अब मैं ब्याज सहित पूरा पैसा लौटा रहा हूँ, परन्तु गौनू मान नहीं रहा है।"


सभी दरबारियों ने भूखन का पक्ष लेते हुए कहा, "महाराज यह तो सरासर बेईमानी है।" महाराज को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि आँख कैसे गिरवी रखी जा सकती है। उन्होंने गौनू झा की तरफ देखा ।


गौनू झा सारा किस्सा समझ चुके थे। उसने कहा, "महाराज यह सही है। लेकिन भूखन यदि ब्याज सहित सारा पैसा देने को तैयार है तो मैं भी आँख लौटा दूंगा। भूखन कल पूरा पैसा ले आये और मैं भी घर से आँख ले आता हूँ।" महाराज ने कहा "ठीक है, कल फैसला होगा।"


अगले दिन दरबार लगा था। भूखन रुपयों की थैली लेकर उपस्थित था। परन्तु गौनू झा की प्रतीक्षा हो रही थी बहुत देर बाद गौनू झा एक चिमटा लेकर दरबार में पहुँचा। "क्या हुआ? देर कैसे हो गई और आँख कहाँ है?" महाराज ने बेसब्री से पूछा।


"महाराज, गिरवी का काम बहुत पुराना है, बहुत सारे लोगों की आँखें रखी हैं, पहचान मुश्किल हो रही है।" "तो अब क्या होगा?" महाराज ने पूछा।


महाराज यह हमारा खानदानी आँख निकालने वाला चिमटा है। मैं भूखन की आँख निकाल कर ले जाता हूँ। मिलाकर दूसरी ढूँढ लाऊँगा।"


राजा ने कहा, "हाँ, ये ठीक है, कहीं गलती से दूसरे की आँख ना आ जाये।" अब तो भूखन का सिर चकराने लगा। उसने दौड़कर गौनू के पैर पकड़ लिये, “भैया आज बचा लो, अब आगे से कोई गलती नहीं करेंगे।



महाराज भी मुस्कारने लगे। वो जानते थे भूखन झूठ बोल रहा है। और उन्हें गोनू झा की बुद्धि पर भी पूरा विश्वास था कि वह कोई ना कोई उपाय जरूर कर लेगा । गौनू झा ने भूखन को उठाकर गले से लगा लिया। महाराज ने एक बार फिर गौनू झा की बुद्धि और महानता की प्रशंसा की ।


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