यदि आपको खुशी खुशी जीना है, तो ये सब छोड़ दें।


यदि आपको खुशी खुशी जीना है, तो ये सब छोड़ दें।

अहम 

यानी ‘मैं’ भाव। हमारी वही हमारी सबसे बड़ी समस्या है। जो न हमें हमारी गलती को मानने देती है, न ही इस बात को स्वीकार करने देती है कि - सामने वाला हमसे अच्छा वह समझदार है, न हम झुकना चाहते हैं। हमारा अहंकार, हमारी झूठी अकड़ ही हमें ठीक से जीने नहीं देती। जिसके कारण न केवल छोटी-छोटी बातें हमें चुभती हैं, बल्कि बने-बनाए सारे कार्य एवं संबंध, तहस-नहस हो जाते हैं। जिसके कारण हमारा विकास रुक जाता है, और हम अपने आसपास एक नरक निर्मित कर लेते हैं।



ईर्ष्या

ईर्ष्या एक ऐसी समस्या है, जो इंसान को अंदर से खोखला कर देती है। ईर्ह्या सदा हमें दूसरों से उकसाती है तथा जोह्मरे पास है, जो हमें मिला हुआ है उसे देखने नहीं देती। हमारा मन सदा कुढ़ता रहता है तथा दूसरे के सुकून में, आनंद में विग्न डालने की योजनाएं बनाता रहता है। हम स्वयम को हीन समझने लगते हैं। और जो कुछ भी हमारे पास है, हम ऐसे ही गवां बैठते हैं। एक दिन यही जलन हमें जला देती है और दुख होने लगता हैं।


क्रोध- 
क्रोध यानि गुस्सा जिसकी अग्नि में जल कर इंसान स्वयं को नष्ट कर लेता है। किसी क्रोध के चलते वह अपना आपा खो बैठता है, और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेता है। क्रोध में आदमी सही-गलत, अच्छे- बुरे, अपने- पराए आदि का भी ध्यान भूल जाता है, और यह कुछ का कुछ कर जाता है। जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। क्रोध, इंसान के पतन की जड़ है इसे जितना हो सके बचकर रहना चाहिए।

 

आलस्य

आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। जो लोग आज के काम को कल पर टालतें  हैं, वह कभी सुखी वह कामयाब नहीं हो पाते, क्योंकि कल कभी नहीं आता । हाथथ कुछ भी नहीं आता कुछ आता है, तो वह है अफसोस और पछतावा। जो मेहनत से डरते हैं, वही आलसी होते हैं। एक दिन यही आलस्य इंसान को नाकाम और निकम्मा बना देती है।


जिद्दी स्वभाव

किसी चीज के लिए जुनून होना अलग बात है, और स्वभाव से जिद्दी होना अलग बात है। हमारा जिद्दी स्वभाव ही हमें नए लोग नए विचार आदमी को स्वीकार करने नहीं देता। स्वभाव में लचीलापन होगा, तभी चीजें, संबंध एवं परिस्थितियां आदि संतुलित रहेंगी। वरना जिद्दी आदमी का वही हाल होता है जो तूफान में सूखे पेड़ का होता है। सदा अपनी चलाने या हांकने वाला कभी भी स्वयं का विस्तार नहीं कर पाते, वह अपनी कमियों और गलतियों के साथ कुएं का मेंढक बनकर रह जाते हैं।


बदले की भावना

जो हो गया सो हो गया। जिसने जैसा कर दिया उसने उसकी करनी पर छोड़ दो। जीवन के प्रति हमारी यह सोच रहती है, लेकिन हम बदलते की भावना में जीते हैं जब तक हम अपने अपमान व हानि का मुंहतोड़ जवाब नहीं दे देते तब तक हम चैन से नहीं बैठते। जो समय, जो शक्ति हम अपने को बनाने संवारने में लगा सकते थे, उसे हम दूसरे को बर्बाद करने की योजनाओं में लगा देते हैं। और दूसरा हमारे बदले का हिसाब देने में जुट जाता है। बैर शांति  होने की बजाए और घना हो जाता है, और हम अपने जीवन को तबाह कर लेते हैं।


प्रतिस्पर्धा

सामने वाले को देखकर प्रेरित होना कुछ सीखना, व  उससे आगे निकलना गलत नहीं लेकिन उसकी होड़ करना या उस को हराने के लिए गलत मार्ग निर्मित करना या फिर उसकी तरक्की से जलने लगना गलत बात है। दूसरे के सुख से या उपलब्धि से जलना गलत है। अपने कार्य से ज्यादा दूसरे के मकसद पर नजरें रखना तथा दूसरे से कुछ ग्रहण करने की बजाय, उसमें हस्तक्षेप करना,  सदा सुकून को छीनता है व चिंताओं को जन्म देता है।

 
चुगली करना

चुगली करना ना केवल दुर्गुण है, बल्कि व्यक्तित्व विकास में सबसे बड़ी बाधा है, इधर की उधर करना, पीठ पीछे बुराई करना, शिकायत लगाना तथा बातों को बड़ा-चढ़ा कर बताना आदि, मात्र आपके चुगलखोर या शिकायत ही स्वभाव को ही नहीं दर्शाता बल्कि यह भी दर्शाता है कि आप को दूसरों में कितना कितना इंटरेस्ट है। आप अपने बारे में कम लोगों के बारे में अधिक सोचते हैं। आप की शक्ति पूरे दिनभर सामने वाले की कमी या बुराई आदि में ही व्यय होती है। जो इंसान दूसरे के जीवन में ताक झांक करता है, उनका घर, संबंध या योजनाओं आदि को खराब करने का जाल बुनता रहता है। वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से अपने लिए ही समस्याएं उत्पन्न करता है इसलिए इसे बचें तभी जीवन सुंदर बन पाएगा।


चिंता

चिंता, चिता का मार्ग है तो चिंतन मुक्ति का मार्ग है। चिंता को इंसान स्वयं पैदा करता है। तभी तो जितने लोग हैं उतनी चिंताएं हैं। हर इंसान की अपनी अवधी एवं विषय है, चिंता एक संकल्पबद्ध समस्याओं की निरंतरता का नाम है। विचार जब चिंता से गुजरते हैं, तो जीवन चिंता तुल्य हो जाता है, और विचार जब चिंतन से होकर गुजरता है तो इंसान के चिंतन मुक्त जीवन की नींव बनती है, इसलिए किसी भी विचार को पाले मत। क्योंकि विचार चलते ही चिंता बनने लगती है। विषय पर इतनी गहराई से सोचें मनन करें तथा तब तक करें, जब तक कि उस विषय से मुक्त नहीं हो जाते। चिंतन के जरिए आप पाएंगे कि जीवन में चिंता जैसा कुछ भी नहीं। सारी खराबी हमारे विचारों और सोचने का ढंग में है
 

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