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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हमरी जिन्दगी का एक ही मक़सद है कि हमार बिटवा पेड़ पर चढ़ेगा।

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पिता बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता था। बेटा इतना मेधावी नहीं था कि NEET क्लियर कर लेता। इसलिए  दलालों से MBBS की सीट खरीदने का जुगाड़ किया । ज़मीन, जायदाद, ज़ेवर सब गिरवी रख के 35 लाख रूपये दलालों को दिए, लेकिन अफसोस वहाँ धोखा हो गया। अब क्या करें...? लड़के को तो डॉक्टर बनाना है कैसे भी...!! फिर किसी तरह विदेश में लड़के का एडमीशन कराया गया, वहाँ लड़का चल नहीं पाया। फेल होने लगा.. डिप्रेशन में रहने लगा। रक्षाबंधन पर घर आया और घर में ही फांसी लगा ली। सारे अरमान धराशायी.... रेत के महल की तरह ढह गए.... 20 दिन बाद माँ-बाप और बहन ने भी कीटनाशक खा कर आत्म-हत्या कर ली। अपने बेटे को डॉक्टर बनाने की झूठी महत्वाकांक्षा ने पूरा परिवार लील लिया। माँ बाप अपने सपने, अपनी महत्वाकांक्षा अपने बच्चों से पूरी करना चाहते हैं ... मैंने देखा कि कुछ माँ बाप अपने बच्चों को Topper बनाने के लिए इतना ज़्यादा अनर्गल दबाव डालते हैं कि बच्चे का स्वाभाविक विकास ही रुक जाता है।  आधुनिक स्कूली शिक्षा बच्चे की Evaluation और Gradening ऐसे करती है, जैसे सेब के बाग़ में सेब की खेती की जा...

धन-दौलत की तीन गतियां

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एक गांव में धर्मदास नामक एक व्यक्ति रहता था।  बातें तो बड़ी ही अच्छी- अच्छी करता था पर था एकदम कंजूस।  . कंजूस भी ऐसा वैसा नहीं बिल्कुल मक्खीचूस।  . चाय की बात तो छोड़ों वह किसी को पानी तक के लिए नहीं पूछता था।  . साधु-संतों और भिखारियों को देखकर तो उसके प्राण ही सूख जाते थे कि कहीं कोई कुछ मांग न बैठे।  . एक दिन उसके दरवाजे पर एक महात्मा आये और धर्मदास से सिर्फ एक रोटी मांगी।  . पहले तो धर्मदास ने महात्मा को कुछ भी देने से मना कर दिया, . लेकिन तब वह वहीं खड़ा रहा तो उसे आधी रोटी देने लगा। आधी रोटी देखकर महात्मा ने कहा कि अब तो मैं आधी रोटी नहीं पेट भरकर खाना खाऊंगा।  . इस पर धर्मदास ने कहा कि अब वह कुछ नहीं देगा। . महात्मा रातभर चुपचाप भूखा-प्यासा धर्मदास के दरवाजे पर खड़ा रहा। . सुबह जब धर्मदास ने महात्मा को अपने दरवाजे पर खड़ा देखा तो सोचा कि अगर मैंने इसे भरपेट खाना नहीं खिलाया और यह भूख-प्यास से यहीं पर मर गया तो मेरी बदनामी होगी। . बिना कारण साधु की हत्या का दोष लगेगा। . धर्मदास ने महात्मा से कहा कि बाबा तुम भी क्या याद कर...