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निकल पड़े हैं अकेले मंजिल की ओर -कहानी एक बावले की

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  निकल पड़े हैं अकेले मंजिल की ओर -कहानी एक बावले की खादी कुर्ता पहने बगल में खादी का झोला और उसमें कुछ किताबें और टॉफी का पैकेट और साइकल पर ढेर सारे फलदार पेड़ लिए पहुच जातें है गरीब बच्चों के पास ।  बच्चे उन्हें खादी वाले बाबा कहतें है, कई बच्चे उन्हें पेड़ वाले बाबा कहतें है ।  दिमाग में कौन सा ऐसा बावरापन था कि सरकारी नौकरी छोड़कर आज अधिकतम समय मलीन बस्तियों में गरीब बच्चों के बीच ही व्यतीत करतें है । ऐसा क्या था उनके मन में जो वे आज जगह जगह बस प्रकृति का सन्देश लिए फिरतें है । आइये पढतें हैं ऐसे ही एक बावरे की सच्ची कहानी ।      आचार्य चंद्रभूषण तिवारी     आचार्य चंद्रभूषण तिवारी का जन्म 1 जुलाई 1969 में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में  हुआ। माता श्रीमती कान्ति देवी पिता श्री मिथिला बिहारी तिवारी व पत्नी डॉ  सुशीला तिवारी, जो कि डॉ राजेंद्र प्रसाद डिग्री कालेज में राजनीति शास्त्र की  प्रवक्ता हैं।               आपका बचपन से ही पेड़ - पौधे लगाने, गरीब बच्चों को पढ़ाने और दीन दुखियों  की सेवा करने के प्रति समर्पण का भाव रहा।        तिवारी जी ने जीवन में द