राजा और गुरू (कहानी)
राजा और गुरू (कहानी) एक समय की बात थी। भारतवर्ष में आस-पड़ोस के दो राज्य हुआ करते थे । दोनों राज्यों के राजा आपस में एक दूसरे के शत्रु थे । परंतु यह दोनों ही राजा, एक व्यक्ति को गुरु मानते थे अर्थात दोनों के एक ही गुरू थे । दोनों के बीच युद्ध का बिगुल बजा । अगले ही दिन वह दोनों अलग अलग समय पर अपने गुरु के पास, आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच गए । गुरु ने पहले वाले राजा को यह आशीर्वाद दिया कि- "आप की विजय निश्चित है ।" राजा के ख़ुशी का कोई ठिकाना ना रहा, और अपने राज्य में जाकर आमोद प्रमोद के साथ विजय उत्सव मनाना आरंभ कर दिया । और वहीं कुछ समय बाद दूसरा राजा, उसी गुरु के पास आया और उन्हें प्रणाम करके जाने लगा । उस गुरु ने उसे यह कहा कि- "आपकी पराजय निश्चित है । " यह सुनकर राजा दुखी हुआ, परंतु हार न माना, और अपने राज्य में जाकर पूरी सेना को दिनरात अभ्यास करने की आज्ञा दी । वह राजा दिन-रात अभ्यास करता, और युद्ध की छोटी-छोटी बारीकियों को जानने लगा । उसने युद्ध की बारीकियों को अपनाने की पूरी योजना बना ली । अगले ही दिन युद्ध आरंभ हु