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प्रसन्न रहना जीवन का वास्तविक उद्देश्य

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हर घड़ी एक किसान की भांति, हम सभी अपने जीवन की बगिया में कुछ न कुछ बोते भी रहते हैं , और काटते भी रहते हैं। कभी गम की फसल काटते हैं, तो कभी खुशियों की। कभी आंसू के बीज बोते हैं, तो कभी हास्य की। जीवन की सरिता को हर कोई इंसान गम खुशी के किनारों के बीच ही जीता है। हर कोई ऐसा मानता भी है कि- जीवन है एक नदिया, सुख दुख दो किनारे हैं। ना जाने कहां जाएं हम, बहते धारे हैं। शायद आपका भी यही विश्वास हो कि - यहां सुख और दुख तो लगे ही रहेंगे, किंतु ऐसा है नहीं। हमारा कहना है कि सुख और दुख दोनों ही अपने अपरिपक्व मानसिक दशा के उत्पाद है, यानी कि बाय प्रोडक्ट है। जीवन का सच्चा स्वरुप इनमें नहीं है। वह तो हर हाल में प्रसन्न रहने में है। हर हाल में अपने साथ खुश से जीने में है। एक ऐसी प्रसन्नता जिनके प्राण अपने से बाहर किसी अन्य हालातों में ना बसते हो, वही सच्ची प्रसन्नता है।          यह सच है कि हमारे से जब कुछ अच्छा होता है, तो हमें प्रसन्नता होती है। जब कोई हमसे सार्थकता पाता है, सहयोग विश्वास और प्रेम पाता है, तो हमें खुशी होती है। परंतु इन सब म...

कैसे बचें आकाशीय बिजली से

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कई बार आकाश में बादल गरजतें हैं तो साथ में बिजली भी देखने को मिलती है। ऐसे में मन में सवाल उठते हैं। आखिर आकाशीय बिजली कैसे बनती है? और यह क्यों पैदा होती है? लेकिन यह बड़ी अजीब बात है कि इस पहेली को बड़े से बड़े वैज्ञानिक आज तक समझा नहीं पाए हैं। बहुत ही फेमस वैज्ञानिक फ्रैंकलिन ने उस तथ्यों को उजागर करने में सफलता प्राप्त की थी। उनका यह निष्कर्ष एकदम सही था कि बिजली कड़कना वास्तव में एक प्राकृतिक इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज है। अक्सर देखने को मिलता है कि बिजली के साथ हुई बारिश से कई बकरियां , कई व्यक्ति मौत के मुख में समा जातें है। बिजली के गिरने से कई व्यक्तियों उसकी चपेट में आ जातें है । एक घटना राजस्थान की है- उस समय खेतो में दो चरवाह लड़कियां बकरियों को चरा रही थी, और वह अपनी जान बचाने के लिए एक पेड़ के नीचे जा छिपी। बरसात के शुरु होते ही वह पेड़ के नीचे बकरियों को लेकर छुप गई। उसी समय पेड़ पर आसमान से आकाशी बिजली गिरने से बकरियों के साथ साथ उन दोनों की भी मौत हो गई। ऐसे ही कई घटनाएं आये दिन देखने को मिलती है, और कई लोगों को अपनी चपेट में ले लेती है ऐसे में बरसात में बिजली ...

कुछ होनहार जो आज भी गांव में ज्ञान की लौ जलाते हैं।

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शिक्षा ना केवल हमारे नैतिक विकास में मददगार होती है, बल्कि हमारी भौतिक और आर्थिक प्रगति के लिए भी जरूरी है। गांव में अनेक लोग ज्ञान की लौ जलाने के लिए आगे आ रहे हैं । ऐसे अनेक उदाहरण हैं । जिनमें युवा तथा अनुभवी बुजुर्ग गांव में रहने वाले निर्धन वंचित और उपेक्षित परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा का उपहार दे कर उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए अनुकरणीय कार्य कर रहे हैं । कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है । इसी कहावत के अनुरूप उत्तर प्रदेश में गोरखपुर से 15 किलो मीटर दूर भोरापार गांव में एक विशाल पुस्तकालय बन गया है । जहां रखी 11 हजार किताबें है आस-पास के गांव के उन विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित हो रही हैं , जिनके मां बाप महंगी पाठ्य पुस्तके खरीदने की हालत में नहीं है । दो कमरों में चलने वाला यह पुस्तकालय असल में गांव के एक ही व्यक्ति श्याम लाल शुक्ल के 50 साल पहले देखे सपने को साकार रुप है। श्यामलाल 1962 में इंटर में पढ़ रहे थे , तो उनके पास पाठ्य पुस्तके खरीदने के लिए पैसे नहीं थे , और ऐसा कोई स्रोत नहीं था जहां से वह किताबें ले सकें । श्याम लाल शुक्ल ने अ...

गरीबी और नेत्रहीनता के बावजूद भावेश भाटिया ने खड़ी की करोड़ों की कम्पनी

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दोस्तों हमारा एक हिंदी आर्टिकल acchikhabar पर प्रकाशित हुआ,  acchikhabar का हार्दिक धन्यवाद, आइये पढ़तें हैं पूरा आर्टिकल- Sunrise Candles founder Bhavesh Bhatia  (भावेश चंदू भाई भाटिया) , एक blind entrepreneur  हैं। इन्होने अपनी अक्षमता को अपनी शक्ति का साधन बनाया और सन राइज कैंडल कंपनी की स्थापना की, जो आज 25 करोड़ की कम्पनी है। यह कंपनी Visually Disabled लोगो द्वारा ही चलायी जाती है। आइये जानते हैं भावेश भाटिया की कहानी। Sunrise Candles Founder Bhavesh Bhatia Biography in Hindi Bhavesh Bhatia का जन्म retina muscular deterioration बीमारी के साथ हुआ। जन्म के साथ ही इनकी आँखों की दृष्टि कमजोर थी। इनकी माता एक गृहणी थी, और भावेश की बाल्य अवस्था से ही कैंसर से पीड़ित थी। इनके पिताजी एक गेस्ट हाउस में केयर टेकर का कार्य करते थे। भावेश जब अपनी mid twenties में थे तो उनपर तीन भारी विपत्तियाँ आ गयीं – उनकी आँखों की रौशनी पूरी तरह से चली गयी इसी  वजह से उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया गया, और उनकी कैंसर ग्रस्त माँ भी कुछ समय बाद चल बसीं। मा...

भला है देना ( डॉ कलाम का एक संस्मरण)

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डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम  के बड़े भाई, ए पी जे मुथु मीरा लेबाई मरासयर इस समय 98 साल के हैं, और रामेश्वरम में अपने पैतृक मकान में रहते हैं। हर शुक्रवार वे नोटों की एक छोटी सी गड्डी लेकर जाते हैं, यही कोई 1000 रुपए के करीब और यह रुपए मस्जिद और मंदिर के आसपास के गरीब लोगों में बांट देते हैं। गरीब लोग चाहते हैं कि उनके हाथ से उन्हें कुछ रूपए मिल जाएं, इसलिए नहीं की उनसे उनकी जिंदगी में कोई बहुत बड़ा फर्क पड़ जाएगा, बल्कि इसलिए क्योंकि लोगों को उनके हाथ से लेने में महज़ लेने और देने के ऊपरी काम से कुछ अलग महसूस होता है, कुछ गहरा कुछ गंभीर।      मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का शरीर के तंत्रिका तंत्र और प्रतिरक्षा तंत्र पर जो पारस्परिक प्रभाव होता है, उसका अध्ययन साइको नूरो इम्युनोलॉजी के तहत किया जाता है। डॉ कलाम के दोस्त विलियम्स सेल्वामूर्ति ने इस क्षेत्र में हो रहे ताजा शोध के बारे में डॉ कलाम को संक्षेप में बताया। ऐसे भरोसेमंद शोध जिनसे पुष्टि होती है कि देने से ना सिर्फ लेने वाले को फायदा पहुंचता है, बल्कि इससे देने वाले की सेहत पर अच्छा असर पड़ता है और और इससे उसे खुशी...

स्मार्ट सिटी की परिकल्पना और हमारे गाँव

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आज हमारे देश में स्मार्ट सिटी की चर्चा ज़ोरों पर हैं। इसी प्रतीक्षा में है,आखिर कैसी होगी हमारी स्मार्ट  सिटी ?            क्या जैसा हमें समाचार-पत्र, न्यूज़ चैनल, मैगज़ीन इत्यादी में दिखाया जा रहा है वैसी ही होगी हमारी स्मार्ट सिटी । जैसा हमें बताया गया है या फिर जैसी हम सब ने कल्पना की है की हमारे घर, स्कूल, अस्पताल,ऑफिस और परिवहन के साधन इत्यादि सभी डिजिटल होंगें ।     सन २००५ में जे एन एन यू आर एम ( जवाहर लाल नेहरु राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन ) आरम्भ हुआ, जिसे १० साल बाद २०१५ में स्मार्ट सिटी मिशन और अमृत (अटल मिशन फॉर रिजुवनेशन एंड अर्बन ट्रांस्फोर्मेशन ) जैसे कार्यक्रमों में बदल दिया गया ।     स्मार्ट सिटी मिशन २०१५-१६ से २०१९-२० के बीच १०० से अधिक शहरो को दायरे में लेगा ।   स्मार्ट सिटी मिशन एवं अमृत पर क्रमशः ४८००० करोड़ रूपये और ५०००० करोड़ रूपये खर्च करने हैं ।       मिशन में स्मार्ट सिटी की परिभाषा नहीं दी गयी है, लेकिन इस मिशन का लक्ष्य स्मार...