प्रसन्न रहना जीवन का वास्तविक उद्देश्य
हर घड़ी एक किसान की भांति, हम सभी
अपने जीवन की बगिया में कुछ न कुछ बोते भी रहते हैं, और काटते भी रहते हैं। कभी गम की फसल काटते हैं, तो कभी खुशियों
की। कभी आंसू के बीज बोते हैं, तो कभी हास्य की। जीवन की सरिता को हर कोई इंसान गम
खुशी के किनारों के बीच ही जीता है। हर कोई ऐसा मानता भी है कि-
जीवन है एक नदिया,
सुख दुख दो किनारे हैं।
ना जाने कहां जाएं
हम, बहते धारे हैं।
शायद आपका भी यही विश्वास हो कि - यहां सुख और दुख तो लगे ही रहेंगे, किंतु ऐसा है नहीं। हमारा कहना है कि सुख और दुख दोनों ही अपने अपरिपक्व मानसिक दशा के उत्पाद है, यानी कि बाय प्रोडक्ट है। जीवन का सच्चा स्वरुप इनमें नहीं है। वह तो हर हाल में प्रसन्न रहने में है। हर हाल में अपने साथ खुश से जीने में है। एक ऐसी प्रसन्नता जिनके प्राण अपने से बाहर किसी अन्य हालातों में ना बसते हो, वही सच्ची प्रसन्नता है।
यह सच है कि हमारे से जब कुछ अच्छा होता है, तो हमें प्रसन्नता होती है। जब
कोई हमसे सार्थकता पाता है, सहयोग विश्वास और प्रेम पाता है, तो हमें खुशी होती है।
परंतु इन सब में खुशी प्रसन्नता का एहसास हमें तब ही हो पाता है, जब वह हमारे भीतर
भी हो। अगर हमारे भीतर आनंद नही है, तो वह वातावरण में नहीं रह सकेगा और दूसरों तक
प्रवाहित नहीं हो पाएगा।
जो उधार है, जिंदा दिल है, वह किसी की सहायता कर
पाते हैं, तो सामने वाला तो कृतार्थ महसूस करता ही है,और साथ में जिंदा दिल आदमी स्वयं को भी
कृतार्थ महसूस करता है। उसमें भी धन्यता कि महसूसी जागृत होती है। यह महसूस प्रतिपल
होती है, और होती रहे, यही इस जीवन का वास्तविक उद्देश्य है। आनंद बिना अपेक्षा के
आलस्य जीने का नाम है। यह प्रसन्नता का एहसास किसी भी बाहरी तत्व पर निर्भर नहीं
करता।
अगर कोई यह सोचे कि मेरी वार्षिक आय बढ़ जाएगी,
तब मैं प्रसन्न हो जाऊंगा, तो वह गलत सोच रहा है। बहुत संभव है कि उसकी आय बढे, तब
वह यह सोच कर परेशान हो जाएगा कि - मेरे से कम एक सहकर्मी की आय मुझसे अधिक क्यों
बढ़ा दी गई? वह इस चिंतन से अप्रसन्नता ही पाएगा। हम में से वही व्यक्ति समझदार है,
जिसे हर हाल में प्रसन्न रहना आता है, चाहे मित्र कम हो या ज्यादा, वेतन कम हो या
ज्यादा। जिनकी प्रसन्नता कम अधिकता पर निर्भर है, उसको अभी जीने का सही सलीका नहीं
आया।
प्रसन्न रहना जीवन का वास्तविक उद्देश्य है, किंतु इस उद्देश्य से भी सभी
परिचित नहीं है। अधिकांश लोग को स्वार्थ पूर्ति ही जीवन का उद्देश्य प्रतीत होता
है। उन्हें लगता है कि मेरी इच्छाएं पूरी होती रहें, तो मेरा जीवन सार्थक है,
अन्यथा निरर्थक। इच्छाएं स्वभाव से ही ऐसी है, चीर शांति उसी को संभव है जो
निस्वार्थ होकर जीना जानता है। बाकी तो सभी लोग तनाव में ही जीते हैं। तनाव सभी को
है, चाहे वह किसी भी उम्र का है, किसी भी देश या विदेश में रहा है। तनाव मुक्ति तो
उसी को संभव है, जिसमें तृष्णा नहीं है, जिसमें महत्वाकांक्षा की बीमारी नहीं लगी
है। जो प्राप्त में संतुष्ट है, उसी का आभारी है। उसी का अधिकाधिक उपयोग करना
चाहता है, वही प्रसन्न रह सकता है। प्रसन्नता खुद का खुद को दिया गया वरदान है
जिसे हर किसी को देना भी नहीं आता है जो आत्मा प्रेम व आत्मविश्वास से लबरेज है वे
ही प्रसन्न रह सकते हैं। जिसमें से शिकायती वृत्ति निकल गई है, वह भी प्रसन्न रह
सकते हैं।
प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हम सभी जानते हैं, फिर भी प्रसन्न नहीं रह पाते हैं। हम क्या करें कि हम प्रसन्न रह सकें?
प्रसन्नता किसी भी व्रत जप तप का
परिणाम नहीं है, ना ही इसे खरीदा या बेचा जा सकता है, कि इसे कहीं से मोल लें आए
और सदा प्रसन्न रहा करें। कई लोग अपने घर में लाफिंग बुद्धा लगाते हैं, ताकि वह
उसे देख देकर प्रसन्न रहना जाने, किंतु हकीकत यह है कि मानव मन पर कभी भी किसी भी
बाहरी चीज का स्थाई प्रभाव नहीं रहता है। हर आया हुआ और छाया हुआ प्रभाव कभी न कभी
खत्म हो जाता है, इसमें बाहरी वातावरण निमृत या माहौल के बदल
जाने से प्रसन्नता नही पा सकते। प्रसन्नता परिणाम है हमारी आतंरिक योग्यताओं के
खिलावट का, हम लोग जो बनने आयें हैं, अपने भीतर जो संभावनाएं ले कर आयें हैं, जब
हम अपनी संभावित योग्यताओं को पूर्णता उजागर कर देते हैं, तब ही सदा प्रसन्न रह
सकते हैं। इसलिए हमारा कहना तो यह है कि -
"अगर आप सदा प्रसन्न रहना चाहते हैं तो
अपने आप को जानिए, अपनी योग्यताओं को पहचानिए और उसे पहचान कर उसे दक्ष बनाइए।
अपनी बाहरी सोच को, सच मत मानिए। हमारे हालात हम नहीं है, हम वह हैं जो स्वयं को
अपने भीतर महसूस करते हैं। हमारा होनापन हमारे भीतर है। जिसे बाहरी हालातों से
तोला या आकां नहीं जा सकता।"
हमारा जीवन किसी और प्रमाण पत्र पाने के लिए नहीं है।
हमारी प्रसन्नता भीतरी एहसास है जिसे अनुकूल वातावरण में प्रकट होने का, खेलने का
मौका जरूर मिलता है, किंतु वह कभी प्रतिकूलता में विचलित नहीं होता है। जिसे एक
बार खुद के वास्तविक स्वरुप की प्रतीति हो गई, उसे फिर कोई भी हरा नहीं सकता। जीवन
की वास्तविक सफलता खुद से खुद को जान लेने व स्वयं के मानसिक विकारों को जीत लेने
में है। ऐसी सफलता व प्रसन्नता पाने के लिए मात्र स्वयं को योग्य बनाते जाइए, सबमें
प्रेम बांटे जाइए सभी के लिए दुआ फैलाते जाइये।
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