छठ पूजा- आस्था का महापर्व

 

उगते हुए  सूर्य को सब प्रणाम करतें है, अस्त होते हुए सूर्य को कौन पूजता है! परंतु पूर्वांचल संस्कृति में अस्त होते हुए सूर्य की भी पूजा होती है, ऐसा माना जाता है कि सूर्य भगवान ही एक मात्र ऐसे भगवान है जिनके हम सजीव दर्शन कर सकतें है, और जिनके कारण हम सब जीवित है , हम सबका अस्तित्व है और हम सबको यह चाहिए कि हम सब उनके प्रति कृतज्ञ रहें। छठ पूजा इसी कृतज्ञता को व्यक्त करने का माध्यम है।


छठ पूजा का आरंभ

 

एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता


हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थीतब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया थाइसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायीकहा जाता हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया

         भारत में सूर्योपासना ऋगवेद काल से होती रही हैसूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गयी हैमध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो अभी तक चला रहा है

 

आधिकारिक नाम  छठ पूजा


अन्य नाम

छठ, सूर्य व्रत, उषा पूजा, छठी प्रकृति माई के पूजा, छठ पर्व, डाला छठ, डाला पूजा, सूर्य षष्ठी

अनुयायी

हिन्दूबिहारी, उत्तर भारतीय, भारतीय प्रवासी

प्रकार

Hindu

उद्देश्य

सर्वकामना पूर्ति

अनुष्ठान

सूर्योपासना, निर्जला व्रत

तिथि

दीपावली के छठे दिन

समान पर्व

ललही छठ, चैती छठ, हर छठ

 

बिहार मे हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे जाते हैंधीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया हैछठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी म‌इया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन के देवताओं को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाएछठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है

 

कैसे मनाया जाता है?

 

त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैंइनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल हैपरवातिन नामक मुख्य उपासक (संस्कृत पर्व से, जिसका मतलब 'अवसर' या 'त्यौहार') आमतौर पर महिलाएं होती हैंहालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष इस उत्सव का भी पालन करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं हैछठ महापर्व के व्रत को स्त्री - पुरुष - बुढ़े - जवान सभी लोग करते हैं कुछ भक्त नदी के किनारों के लिए सिर के रूप में एक प्रोस्टेशन मार्च भी करते हैं

 

पर्यावरणविदों का दावा है कि छठ  सबसे पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्यौहार हैयह त्यौहार नेपाली और भारतीय लोगों द्वारा अपने डायस्पोरा के साथ मनाया जाता है

 

यह पर्व चार दिनों का हैभैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता हैपहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती हैअगले दिन से उपवास आरम्भ होता हैव्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैंतीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैंअंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैंपूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्जित होता हैजिन घरों में यह पूजा होती है, वहाँ भक्तिगीत गाये जाते हैंअंत में लोगो को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं

 

कब और कहाँ मनाया जाता है?

 

छठ पर्व, छठ या षष्‍ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व हैसूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता हैकहा जाता है यह पर्व बिहारीयों का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति हैछठ पर्व बिहार मे बड़े धू धाम से मनाया जाता हैये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैंयहा पर्व बिहार कि वैदिक आर्य संस्कृति कि एक छोटी सी झलक दिखाता हैंये पर्व मुख्यः रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार मे यहा पर्व मनाया जाता हैं

 

 

नामकरण कैसे हुआ?

 

छठ, षष्ठी का अपभ्रंश हैकार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के बाद मनाये जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती हैकार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा

 

       छठ पूजा साल में दो बार होती है एक चैत मास में और दूसरा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. षष्ठी देवी माता को कात्यायनी माता के नाम से भी जाना जाता हैनवरात्रि के दिन में हम षष्ठी माता की पूजा करते हैं षष्ठी माता कि पूजा घर परिवार के सदस्यों के सभी सदस्यों के सुरक्षा एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए करते हैं षष्ठी माता की पूजा,सूर्य भगवान और मां गंगा की पूजा देश में एक लोकप्रिय पूजा है

 

          यह प्राकृतिक सौंदर्य और परिवार के कल्याण के लिए की जाने वाली एक महत्वपूर्ण पूजा हैइस पुजा में गंगा स्थान या नदी तालाब जैसे जगह होना अनिवार्य हैं यही कारण है कि छठ पूजा के लिए सभी नदी तालाब कि साफ सफाई किया जाता है और नदी तालाब को सजाया जाता है प्राकृतिक सौंदर्य में गंगा मैया या नदी तालाब मुख्य स्थान है।

 

 

आस्था का महापर्व छठ एवं इसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण

 

भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व हैमूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया हैयह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता हैपहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक मेंचैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता हैपारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता हैस्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैंछठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखातब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिलालोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का हैलोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी

 

छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता हैपर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव हैपृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है

 

सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैंसूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता हैवायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता हैपराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता हैइस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता हैपृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता हैसामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती हैअत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है

 

छठ जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैंवायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती हैज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के : दिन उपरान्त आती हैज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है

 

व्रत एवं व्रत में प्रयोग होने वाली शब्दावली

 

छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव हैइसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती हैइस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैंइस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते

 

नहाय खाय

छठ पर्व का पहला दिन जिसेनहाय-खायके नाम से जाना जाता है,उसकी शुरुआत चैत्र या कार्तिक महीने के चतुर्थी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता हैसबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता हैउसके बाद व्रती अपने नजदीक में स्थित गंगा नदी,गंगा की सहायक नदी या तालाब में जाकर स्नान करते हैव्रती इस दिन नाखनू वगैरह को अच्छी तरह काटकर, स्वच्छ जल से अच्छी तरह बालों को धोते हुए स्नान करते हैंलौटते समय वो अपने साथ गंगाजल लेकर आते है जिसका उपयोग वे खाना बनाने में करते हैवे अपने घर के आस पास को साफ सुथरा रखते हैव्रती इस दिन सिर्फ एक बार ही खाना खाते हैखाना में व्रती कद्दू की सब्जी ,मुंग चना दाल, चावल का उपयोग करते है .तली हुई पूरियाँ पराठे सब्जियाँ आदि वर्जित हैं. यह खाना कांसे या मिटटी के बर्तन में पकाया जाता हैखाना पकाने के लिए आम की लकड़ी और मिटटी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता हैजब खाना बन जाता है तो सर्वप्रथम व्रती खाना खाते है उसके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य खाना खाते है

 

खरना और लोहंडा

छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है,चैत्र या कार्तिक महीने के पंचमी को मनाया जाता हैइस दिन व्रती पुरे दिन उपवास रखते है . इस दिन व्रती अन्न तो दूर की बात है सूर्यास्त से पहले पानी की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करते हैशाम को चावल गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग कर खीर बनाया जाता हैखाना बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता हैइन्हीं दो चीजों को पुन: सूर्यदेव को नैवैद्य देकर उसी घर मेंएकान्त' करते हैं अर्थात् एकान्त रहकर उसे ग्रहण करते हैंपरिवार के सभी सदस्य उस समय घर से बाहर चले जाते हैं ताकी कोई शोर हो सकेएकान्त से खाते समय व्रती हेतु किसी तरह की आवाज सुनना पर्व के नियमों के विरुद्ध है

 

पुन: व्रती खाकर अपने सभी परिवार जनों एवं मित्रों-रिश्तेदारों को वहीखीर-रोटी' का प्रसाद खिलाते हैंइस सम्पूर्ण प्रक्रिया को 'खरना' कहते हैंचावल का पिठ्ठा घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती हैइसके बाद अगले 36 घंटों के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते हैमध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ बनाती है

 

संध्या अर्घ्य

 

छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है,चैत्र


या कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता हैपुरे दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारिया करते हैछठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसेठेकुआ, चावल के लड्डू जिसे कचवनिया भी कहा जाता है, बनाया जाता हैछठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुयी टोकरी जिसे दउरा कहते है में पूजा के प्रसाद,फल डालकर देवकारी में रख दिया जाता हैवहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल,पांच प्रकार के फल,और पूजा का अन्य सामान लेकर दउरा में रख कर घर का पुरुष अपने हाथो से उठाकर छठ घाट पर ले जाता हैयह अपवित्र हो इसलिए इसे सर के ऊपर की तरफ रखते हैछठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में प्रायः महिलाये छठ का गीत गाते हुए जाती है

 

नदी या तालाब के किनारे जाकर महिलाये घर के किसी सदस्य द्वारा बनाये गए चबूतरे पर बैठती हैनदी से मिटटी निकाल कर छठ माता का जो चौरा बना रहता है उस पर पूजा का सारा सामान रखकर नारियल चढाते है और दीप जलाते हैसूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा का सारा सामान लेकर घुटने भर पानी में जाकर खड़े हो जाते है और डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करते है

 

सामग्रियों में, व्रतियों द्वारा स्वनिर्मित गेहूं के आटे से निर्मित 'ठेकुआ' सम्मिलित होते हैंयह ठेकुआ इसलिए कहलाता है क्योंकि इसे काठ के एक विशेष प्रकार के डिजाइनदार फर्म पर आटे की लुगधी को ठोकर बनाया जाता हैउपरोक्त पकवान के अतिरिक्त कार्तिक मास में खेतों में उपजे सभी नए कन्द-मूल, फलसब्जी, मसाले अन्नादि यथा गन्ना, ओल, हल्दी, नारियल, नींबू(बड़ा), पके केले आदि चढ़ाए जाते हैंये सभी वस्तुएं साबूत (बिना कटे टूटे) ही अर्पित होते हैंइसके अतिरिक्त दीप जलाने हेतु,नए दीपक,नई बत्तियाँ घी ले जाकर घाट पर दीपक जलाते हैंइसमें सबसे महत्वपूर्ण अन्न जो है वह है कुसही केराव के दानें (हल्का हरा काला, मटर से थोड़ा छोटा दाना) हैं जो टोकरे में लाए तो जाते हैं पर सांध्य अर्घ्य में सूरजदेव को अर्पित नहीं किए जातेइन्हें टोकरे में कल सुबह उगते सूर्य को अर्पण करने हेतु सुरक्षित रख दिया जाता हैबहुत सारे लोग घाट पर रात भर ठहरते है वही कुछ लोग छठ का गीत गाते हुए सारा सामान लेकर घर जाते है और उसे देवकरी में रख देते है

 

उषा अर्घ्य

 

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया


जाता हैसूर्योदय से पहले ही व्रती लोग घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा हेतु पहुंच जाते हैं और शाम की ही तरह उनके पुरजन-परिजन उपस्थित रहते हैंसंध्या अर्घ्य में अर्पित पकवानों को नए पकवानों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है परन्तु कन्द, मूल, फलादि वही रहते हैंसभी नियम-विधान सांध्य अर्घ्य की तरह ही होते हैंसिर्फ व्रती लोग इस समय पूरब की ओर मुंहकर पानी में खड़े होते हैं सूर्योपासना करते हैंपूजा-अर्चना समाप्तोपरान्त घाट का पूजन होता हैवहाँ उपस्थित लोगों में प्रसाद वितरण करके व्रती घर जाते हैं और घर पर भी अपने परिवार आदि को प्रसाद वितरण करते हैंव्रति घर वापस आकर गाँव के पीपल के पेड़ जिसको ब्रह्म बाबा कहते हैं वहाँ जाकर पूजा करते हैंपूजा के पश्चात् व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं जिसे पारण या परना कहते हैंव्रती लोग खरना दिन से आज तक निर्जला उपवासोपरान्त आज सुबह ही नमकयुक्त भोजन करते हैं और इन सब के बाद अंत मे सभी श्रेष्ठ जनों का आशीर्वाद ले कर यह पर्व सम्पन्न हो जाता है।

 

छठ पूजा में गाये जाने वाले गीत

 

लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति-भाव से पूर्ण लोकगीत गाये जाते हैं

 

'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय

काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए'

सेविले चरन तोहार हे छठी मइयामहिमा तोहर अपार

उगु सुरुज देव भइलो अरग के बेर

निंदिया के मातल सुरुज अँखियो खोले हे

चार कोना के पोखरवा

हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी

इस गीत में एक ऐसे तोते का जिक्र है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा हैतोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी जो तुम्हें नहीं माफ करेंगे, पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता हैपर उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी? कैसे सहे इस वियोग को? अब तो सूर्यदेव उसकी कोई सहायता नहीं कर सकते, उसने आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट की है

 

केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेड़राय

 

जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से सुगा देले जुठियाए

 

जे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरछाये

 

जे सुगनी जे रोये ले वियोग से आदित होइ ना सहाय देव होइ ना सहाय

 

काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाए... बहँगी लचकति जाए... बात जे पुछेले बटोहिया बहँगी केकरा के जाए? बहँगी केकरा के जाए? तू आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाए... बहँगी छठी माई के जाए... काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाए... बहँगी लचकति जाए...

 

केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेंड़राय... ओह पर सुगा मेंड़राय... खबरी जनइबो अदित से सुगा देले जूठियाय सुगा देले जूठियाय... जे मरबो रे सुगवा धनुष से सुगा गिरे मुरछाय... सुगा गिरे मुरछाय... केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेंड़राय... ओह पर सुगा मेंड़राय...

 

पटना के घाट पर नारियर नारियर किनबे जरूर... नारियर किनबो जरूर... हाजीपुर से केरवा मँगाई के अरघ देबे जरूर... अरघ देबे जरुर... आदित मनायेब छठ परबिया वर मँगबे जरूर... वर मँगबे जरूर... पटना के घाट पर नारियर नारियर किनबे जरूर... नारियर किनबो जरूर... पाँच पुतर, अन, धन, लछमी, लछमी मँगबे जरूर... लछमी मँगबे जरूर... पान, सुपारी, कचवनिया छठ पूजबे जरूर... छठ पूजबे जरूर... हियरा के करबो रे कंचन वर मँगबे जरूर... वर मँगबे जरूर... पाँच पुतर, अन, धन, लछमी, लछमी मँगबे जरूर... लछमी मँगबे जरूर... पुआ पकवान कचवनिया सूपवा भरबे जरूर... सूपवा भरबे जरूर... फल-फूल भरबे दउरिया सेनूरा टिकबे जरूर... सेनूरा टिकबे जरुर... उहवें जे बाड़ी छठी मईया आदित रिझबे जरूर... आदित रिझबे जरूर... काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाए... बहँगी लचकति जाए... बात जे पुछेले बटोहिया बहँगी केकरा के जाए? बहँगी केकरा के जाए? तू आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाए... बहँगी छठी माई के जाए..

 

 

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