प्रसन्न रहना जीवन का वास्तविक उद्देश्य
हर घड़ी एक किसान की भांति, हम सभी अपने जीवन की बगिया में कुछ न कुछ बोते भी रहते हैं , और काटते भी रहते हैं। कभी गम की फसल काटते हैं, तो कभी खुशियों की। कभी आंसू के बीज बोते हैं, तो कभी हास्य की। जीवन की सरिता को हर कोई इंसान गम खुशी के किनारों के बीच ही जीता है। हर कोई ऐसा मानता भी है कि- जीवन है एक नदिया, सुख दुख दो किनारे हैं। ना जाने कहां जाएं हम, बहते धारे हैं। शायद आपका भी यही विश्वास हो कि - यहां सुख और दुख तो लगे ही रहेंगे, किंतु ऐसा है नहीं। हमारा कहना है कि सुख और दुख दोनों ही अपने अपरिपक्व मानसिक दशा के उत्पाद है, यानी कि बाय प्रोडक्ट है। जीवन का सच्चा स्वरुप इनमें नहीं है। वह तो हर हाल में प्रसन्न रहने में है। हर हाल में अपने साथ खुश से जीने में है। एक ऐसी प्रसन्नता जिनके प्राण अपने से बाहर किसी अन्य हालातों में ना बसते हो, वही सच्ची प्रसन्नता है। यह सच है कि हमारे से जब कुछ अच्छा होता है, तो हमें प्रसन्नता होती है। जब कोई हमसे सार्थकता पाता है, सहयोग विश्वास और प्रेम पाता है, तो हमें खुशी होती है। परंतु इन सब म...