भगत सिंह के प्रेरक कथन





जन्म : 28 सितम्बर 1907, 
गाँव बावली,  जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान क्षेत्र)
मृत्युस्थल : लाहौर जेल, पंजाब (अब पाकिस्तान क्षेत्र)
आन्दोलन : भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
प्रमुख संगठन : नौजवान भारत सभा,  हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन, अभिनव भारत
शहीद : 23 मार्च 1931 को  7 बजकर 33 मिनट पर फांसी दे दी गयी




  • प्रेमी, पागल  और कवि एक ही पेड़ के जड़ होते हैं।




  • राख का हर एक-एक कतरा मेरी गर्मी से गतिमान है, मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आज़ाद रहता हूँ।




  • यदि बहरों को सुनना है तो हमें आवाज़ को बहुत तेज़ करना चाहिए, जब हमने बम गिराया तो हमारा उद्देश्य किसी को मारना नहीं था, हमने अंग्रेजी राज पर बम गिराया था, अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए, और उसे आज़ाद करना चहिये।




  • किसी को  क्रांतिशब्द की व्याख्या, शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो भी लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं, उनके फायदे के हिसाब से ही इसे अलग-अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते है।




  • आवश्यक नहीं था की क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का रास्ता नहीं था।




  • साधारणतया लोग चीजें जैसी हैं उसके ही आदि हो जाया करतें हैं और बदलाव के विचार से ही डरने लगते हैं। हमें इसी भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की आवश्यकता है।




  • जो व्यक्ति भी विकास के पथ पर खड़ा और उसके लिए अग्रसर है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमे अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी के लिए हिम्मत रखनी होगी।




  • मैं इस बात पर दृढ़ हूँ कि मैं महत्त्वाकांक्षा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ, पर मैं आवश्यक पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ,  और वही सच्चात्याग और बलिदान हो सकता है।





  • अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है, जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है, लेकिन तब क्या हो ? जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं ? तभी हमें आत्म-बल को शारीरिक बल से जोड़ने की आवश्यकता पड़ती है, ताकि हम अत्याचारी और क्रूर शत्रुओं के रहमोकरम पर ना निर्भर करें।

टिप्पणियाँ