माँ

तुम कल्पना आराधना और साधना हो ,
माँ ह्रदय की वेदना की तान हो ,
तुम स्नेह की कोमल एहसास हो ,
तुम शिशुओ के शौर्य का अभिमान हो ।

तुम ममता की मूरत हो करुणा की खान हो ,
माँ हमारे जीवन की मधुर मुस्कान हो ,
तुम्हारा श्राप भी बन जाये हमारे लिए वरदान ,
दिव्या चिंतन से दिला देती सम्मान ,
तुम अधियारे में उजाले का आवाह्न हो ,
माँ ह्रदय की वेदना की तान हो ।

तुम में ईश्वर की असीम शक्ति है ,
मांग लेती प्राण यम से तुम में ऐसी भक्ति है ,
तुम निराशा के पथ पर आशा की दीप हो ,
तुम रुढियो बेड़ियो के तोड़ने की गीत हो ।

तुम सादगी शालीनता की मूर्ति हो ,
भर दे तू अधूरेपन को माँ ऐसी स्फूर्ति हो ,
कभी तुम दुःख की बदली तो ,
कभी सुख की मीत हो ,
तुम शान्ति और सदभावना की दूत हो ।

तुम कल्पना आराधना और साधना हो ,
माँ ह्रदय की वेदना की तान हो।
   
                               शिल्पी पाण्डेय 'रंजन'







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