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नवंबर, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जिंदगी हो अमन चैन की

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जिंदगी हो अमन चैन की, ईश ऐसा ही वर दीजिये। कर सकें कुछ किसी के लिए, भावना ऐसी भर दीजिये। छोड़ वेदों पुराणों को हम, आज दर दर भटकने लगे, पा सकें कुछ कहीं रौशनी, बुद्धि ऐसी प्रखर दीजिये। कर सकें कुछ किसी के लिए, भावना ऐसा भर दीजिये। देवताओं की प्यारी धरा, यह समुंदर ,नदी, शैल ,वन, दें सकें इन पे क़ुर्बानियाँ, वह कालेज निडर दीजिये। कर सकें कुछ किसी के लिए, भावना ऐसी भर दीजिये। जिंदगी हो अमन चैन की, ईश ऐसा ही वर दीजिये।

प्रथम प्रयास

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पैर डगमगाते है , प्रथम प्रयास में। शिथिल हो जाते है, मन के उन्माद में। शितित हो जातें है, द्वितीय विकास में। कम्पित हो जाते है, अंतिम अहसास में। कृतियाँ नव गागर है, एक नव संचार में। पैर कम डगमगाते है, मन के आभास में। पैर डगमगाते है, केवल प्रथम प्रयास में।                        - विकास पाण्डेय

खोया हीरा

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मैंने आज एक हीरा देखा , खोज रहा था जो खुद को, नदी में बहता ,कूड़ो के साथ, मैंने एक जागीरा देखा । खिल खिलाता संभालता, अपने बोरों को, हीरों की खोज में जलता हुआ, मैंने एक कबीरा देखा । दुर्गम रास्तों को पाकर, खुश था वो जान कर । आज सोना मिलेगा, जीवन में एक खिलौना मिलेगा । मन भर खेलूँगा, एक जीवन पिरोलूँगा । जीवन फिर भर जायेगा, सुखद क्षण फिर आयेगा । चिंतित था जान कर, मुझे पहचान कर, सार्थक न हुआ आना, कृतियाँ मत बताना ! कल न आ पाउँगा, कल व्यस्त हो जाऊंगा, फिर वापस काम पर जाऊंगा । ढूढुंगा फिर से हीरा, आयेगा फिर वही सवेरा।                       - विकास पाण्डेय

खोज

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खोज है मुझे उनका, जिनका जीवन सत्य हो । कठिनाइयों से भरा जीवन, ज्ञान का प्रभुत्व हो । खोज सच्चा हो, मन एक बच्चा हो । कृत्रिमता न हो जिनमे, ऐसा उनका सत्व हो । जीवन दान दिया हो , ऐसा प्रभुत्व हो । संघर्षशील जीवन, वास्तविक कर्मठता हो । सजीवता हो जिनमे, ऐसी सरलता हो । कर दे प्रबुद्ध, ऐसा ,मन शुद्ध हो।                                    -विकास पाण्डेय

पर्यावरण

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फूलों ने मेरी आहत को , बचपन से पहचाना है। सब के जीवन का प्राण हूँ मैं, बगिया तक ने माना है। बैठे बैठे मेरे पंखों पर , फूल संदेशा कहते है। भेज भेज खुशबू की पाती , भ्रमर बुलाते रहते है। मेरी मीठी लोरी से ही , पुरवैया के गीत बने । बादल मेरा हाथ थाम, फसलों के प्यारे मीत बने। खुशबु भला कहाँ पाओगे, जब दम ही सब का घुट जायेगा। सासों में धुआं समाएगा, सासों में धुआं समाएगा। जहर घुलेगी बदली में जब, पपीहा कितना तरसेगा। जब धरती पर अमृत के बदले, विष का पानी बरसेगा। मैं हूँ पर्यावरण तुम्हारा, मिलकर मुझे सम्हालो तुम। दम घुट कर मरने से पहले, मिलकर मुझे बचालो तुम।

मुस्कान

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मैं   देख कर भावुक था   , आप   की मुस्कान पर   | निःस्चल निर्द्वंद  हंसी थी , मैं मोहित था जिस पर | इस दृढ़ समाज मे, चकित था मुस्कान पर | जन कुटिलता ने दी थी , वो अद्भुत मुस्कान पर ! मै बहुत चकित था , उस अभिनव मुस्कान पर | सम हृदयी स्वाभिमान था , उस बाहुल्य स्वरों पर | मेरा अपना भी स्वाभिमान था , व्यक्त न हो पाया पर | दर्शनीय मैं भी था , श्रवणीय न हो पाया पर |                     -     विकास पाण्डेय                      -     २/११/२०१४