ONE REQUEST


यह सर्वविदित है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है । यह बताने की आवश्यकता भी नही है कि मातृभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्ज़ा भी प्राप्त है। राजभाषा होने के साथ साथ हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा दिलाने हेतु हमारे देश के अनेक महापुरुषों ने अथक प्रयास किया है । जैसे - पंडित मदन मोहन मालवीय , बाल गंगाधर तिलक , राजाराम मोहन राय , महात्मा गांधी इत्यादि। इनके अटूट विश्वास और अथक परिश्रम के फलस्वरूप आज हिंदी हमारी मातृभाषा , राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है।
   संविधान में जब इस मुद्दे पर चर्चा चल रही थी कि कौन सी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा देना उचित होगा?? उस समय महात्मा गांधी जी का यह मन्तब्य था कि - हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो राष्ट्रभाषा हो सकती है। कोई भी राष्ट्र तब तक उन्नति नही कर सकता जब तक कि उसकी कोई एक राष्ट्रभाषा न हो। हिंदी हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली तथा जन जन की भाषा है । इसलिए हिंदी को ही राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा मिलनी चाहिए। 1924 में कांग्रेस के 39वें अधिवेशन के सभापति गांधी जी ने कांग्रेस के कार्यक्रमों के लिए हिंदी के प्रचार कार्य को शामिल किया । 1925 में कानपुर अधिवेशन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि सारे कार्यालयी कार्य हिंदी में ही किये जायेंगे ।
     बहरहाल यह बहुत लम्बी कहानी है कि हिंदी को राजभाषा राष्ट्रभाषा और मातृभाषा का दर्ज़ा कब कैसे और क्यों दिया गया ?? यहाँ हमारा उद्देश्य यह बताना है कि हिंदी को ही क्यों ?? या फिर हिंदी ही क्यों ?????
                
     मित्रों ! हिंदी हमारी मातृभाषा है। मातृभाषा का अर्थ है- माँ की भाषा अर्थात बच्चा जो जन्म के उपरांत अपनी माँ से सिखने लगता है । इसलिए हिंदी हमारी माँ की भाषा है या कह सकते है कि माता तुल्य है। तो इसका आदर और सम्मान करना हमारा परम् कर्तब्य है । जिस प्रकार हम अपनी माँ का सम्मान करते है ठीक वैसे ही हमारी भाषा का सम्मान आवश्यक है । भारतेंदु जी ने कहा है – 


"निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल 
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल ।"


अब जब तक अपनी मातृभाषा का ज्ञान हमे नही होगा तब तक उन्नति सम्भव नही है। हमे अन्य भाषाओँ को सीखना चाहिए किन्तु अपनी भाषा की गरिमा तथा अस्मिता को बनाये रखने के साथ ।जो बच्चा अपने ही घर में रहकर अपनी माँ का आदर न करे और बाहर के लोगों का सम्मान दिखावे के लिए करे  उसका पतन निश्चित है ।
           आज बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है  कि अपने ही घर में रहकर हमारी भाषा को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। यह अपने ही घर में दीन हीन अवस्था में पड़ी है । ऐसे में देश की उन्नति की बात दिवास्वप्न है और इसका एक प्रमुख कारण पाश्चात्य सभ्यता को अपनाने की होड़ है। आज भारत का हर नागरिक अंग्रेजी बोलना चाहता है भले ही उसे शुद्ध हिंदी बोलनी न आये। आज लोग यह कहते हुए अपने आप को ऊचा दिखाते है कि उन्हें हिंदी समझ में नही आती या बोलनी नही आती। 

    ऐसे लोग समाज में सम्मानित अवस्था में होते है क्यों कि उन्हें हिंदी भले ही न आती हो, किन्तु अंग्रेजी बहुत अच्छी बोल लेते हैं। आज हर ब्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा देने को आतुर दिखाई देता है, वो अपने बच्चों को हिंदी परिवेश से दूर रखना चाहता है । सिर्फ़ इसलिए कि हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले आगे नही बढ़ सकते। कुछ समय उपरांत यही अंग्रेजी पढ़ने वाले बच्चे  बड़े होकर अपने माता पिता का आदर करना भूल जाते हैं और अपने संस्कारों, संस्कृतियों की अवहेलना करने लगते हैं ।
                   
     मैं क्षमा चाहता हूँ ...... मेरा उद्देश्य किसी भाषा या समुदाय को ठेस पहुँचाना या किसी की भावनाओं को आहत करना नही है। मेरा उद्देश्य सिर्फ़ यह है कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाये जिससे लोगों में हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता आये ??
      
     लोग अन्य भाषाओँ को सीखे किन्तु प्राथमिकता अपनी भाषा को दें। हमारी भाषा को अपने ही घर में रहने के लिए  संघर्ष न करना पड़े। आधुनिक समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नितांत आवश्यक है किन्तु इसका यह मतलब तो नही कि हिंदी भाषा की बलि चढ़ा दी जाये ।


          
हिंदी भाषा ही क्यों ?????

मित्रों ! हमारी भाषा  पूर्णतः शुद्ध और परिष्कृत है । इसकी लिपि देवनागरी पूर्णतः वैज्ञानिक है । इसलिए इसको समझना , बोलना, लिखना तथा पढ़ना अत्यंत सरल है । इसमें कोई भ्रामक तत्व नही हैं । हिंदी में एक ध्वनि के लिए एक ही चिन्ह का प्रयोग होता है ।

  

     उदाहरणतः - हिंदी में क से कबूतर ही होता है  जबकि अगर हम रोमन लिपि की बात करे तो उसमे K को भी क तथा c को भी क ,स च इत्यादि पढ़ते हैं । हिंदी हमारी पहचान है , शान है , हमारी मर्यादा की रक्षक है । हमारे नैतिक मूल्यों का आदर करने वाली भाषा हिंदी को अग्रणी बनाने हेतु हमारा यह एक छोटा सा प्रयास है। 

     आज जो लोग हिंदी की उपेक्षा करते हैं उसको नीरस और उद्देश्यहीन बताते हैं उनसे मेरा नम्र निवेदन है कि वे कभी अपनी मातृभाषा से प्रेम करें उसका आदर  करे, इसका इतिहास जानने का प्रयत्न करें । मेरा विश्वास है कि जब उनका साक्षात्कार हिंदी से होगा तब वे इस भ्रम से दूर हो जायेंगे । कितना रस , आनंद और अपनापन मिलता है अपनी मातृभाषा से यह बताने की आवश्यकता नही रहेगी । यहाँ मुझे भारतेंदु जी की एक और पंक्ति याद आ रही है -

 

" अंग्रेजी पढ़कर यद्यपि सब गुण होत प्रवीण 
बिन निज भाषा ज्ञान के रहत हीन के हीन ।"

          आइये सब मिलकर अपनी भाषा का उत्थान करें उसे सम्मान दिलाये । हम यह नही कहते के हिंदी को सम्मान प्राप्त नही है आज भी उतना ही सम्मान है पर यह विलुप्त होती जा रही है इसका खेद है । दूसरे देशों में भी हमारी हिंदी भाषा का अध्ययन अध्यापन किया जा रहा है यह हमारे लिए गर्व की बात है । किन्तु अपने ही देश में अपनी भाषा के प्रति ये उदासीनता हमे व्यथित करती है ।

             हमे खेद है यह बताते हुए कि आज की युवा पीढ़ी में हिंदी पढ़ने और पढ़ाने वालों को हेय दृष्टि से देखा जाता है ऐसे लोगो को समाज में उतनी सम्मानजनक स्थिति से नही देखा जाता जितनी अंग्रेजी माध्यम पढ़ने और पढ़ाने वालों को ।
इस अपमानजनक स्थिति की पराकाष्ठा तब और हो जाती है जब हिंदी भाषी रोजगार हेतु साक्षात्कार को जाता है , वहाँ उन्हें हिंदी बोलने को उनकी कमज़ोरी बताई जाती है और उन्हें उचित वेतन नही मिलता ।

    एक हिंदी शिक्षक को ही देख ले अंग्रेजी शिक्षक की तुलना में में कम वेतन देते है विद्यालय वाले यह बोलकर कि हिंदी सरल है इसको पढने में कम ऊर्जा व्यय होती है । ऐसी विकृत मानसिकता के लोग मात्र आडम्बर में विश्वास करते है । हमे इससे ऊपर उठकर हमारी भाषा को उचित सम्मान देने के लिए अथक परिश्रम करना होगा ।

    हिंदी के प्रति श्रद्धा एवं प्रेम की भवना रखनी होगी। हिंदी के प्रति आदर एवं श्रद्धा रखने वालों का मेरा शत शत नमन है और हमे गर्व है कि हम हिन्द के निवासी हैं तथा हिंदी हमारी राष्टभाषा, राजभाषा एवं मातृभाषा है।

    
    आप सभी से एक निवेदन है आप कम से कम एक हिंदी लेख (प्रेरणादायक कहनियाँ, कवितायेँ, प्रेरक कथन, या जो भी  आप की सदैव प्रेरणा प्रदान करतीं हो) अवश्य भेजें।  
    
अंत में मै बस यही कहना चाहता हूँ...

हिंदी ही भारत माँ के ,
माथे की बिंदी है।
हुई बहुत सी भाषायें,
पर आगे हिंदी है।



मीरा महादेवी तुलसी सब,
 हुए प्रखर हिंदी से।
सूर केशव कबीर तुलसी सब,

 चमक उठे हिंदी से।
अब तक का इतिहास यही है ,
भारत माँ की शान हिंदी है।


हिंदी ही भारत माँ के ,
माथे की बिंदी है।
हुई बहुत सी भाषायें ,

पर आगे हिंदी है।


शब्द शब्द हर अक्षर में ,
भरा है प्यार।
हर सुख से संपन्न है ,

हिंदी का संसार।
है मर्यादा हिन्द की ,
पहचान हिंदी है।
हिंदी ही भारत माँ के ,
माथे की बिंदी है।


गयी जहाँ अपनी भाषा ,
सब प्रणत हुए है लोग।
नन्द विवेका ने भी इसको,

कर दिया सुयोग।
हम भारत के वीर सपूतो की,
तकदीर हिंदी है।
हिंदी ही भारत माँ के ,
माथे की बिंदी है।


है वैज्ञानिक लिपि हमारी,
और सरल समर्थ ।
हो जाये संज्ञान सभी को,

समझ सके सब अर्थ।
है संस्कृति धरोहर अपनी,
प्राण हिंदी है।
हिंदी ही भारत माँ के ,
माथे की बिंदी है।




"हम हिन्दू हैं हम हिन्दू हैं हिंदुत्व हमारी शान हैं 
   हम हिन्द देश के रहने वाले हिंदी ही पहचान है।"


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