चिंता छोड़ें सुख से जियें- डेल


परिचय

 ऐसी क्या चीज़ है जो अभी आपको तंग कर रही है ? वो चाहे जो भी चीज़ हो

मगर आपकी ये टेंशन आपको जीने नहीं दे रही, आपके अपनों से दूर कर रही है, आपकी सक्सेस और खुशियाँ आपसे छीन रही है. तो क्या आप जिंदगी भर टेंशन में रहना चाहते है ? या फिर खुलकर अपनी ज़िन्दगी जीना चाहते है?
इस किताब में आपको ऐसे इफेक्टिव तरीके मिलेंगे जो आपको हर प्रॉब्लम से छुटकारा दिला देंगे. क्या आपकी आदत है कि आप हमेशा पुरानी बातो का पछतावा करते रहते है या फिर हमेशा फ्यूचर की चिंता में डूबे रहते है ? कभी-कभी लोग इतनी टेंशन लेते है कि वे अपने प्रेजेंट को ही भूल जाते है. क्या आपको लगता है कि आप एक भरपूर जिंदगी जी रहे है ?
हर दिन को भरपूर जिए
स्प्रिंग के सुहाने दिन में एक जवान मेडिकल स्टूडेंट अपने फ्यूचर के बारे में सोच रहा था. क्या वो फाइनल एक्जाम्स पास कर पायेगा? स्कूल खत्म होने के बाद उसे कहाँ जाना चाहिए? कैसे वो अपने करियर शुरू करेगा ? वो लड़का यही सब सोच रहा था. उसके हाथ में एक किताब थी जिसे वो उस टाइम पढ़ रहा था कि तभी उसे उसमें लिखे ऐसे 21 वर्ड्स मिले जिन्हें पढ़कर वो इंस्पायर हो गया.
आने वाले टाइम में वो मेडिकल स्टूडेंट अपने जेनेरेशन के सबसे सक्सेसफुल डॉक्टर्स में से एक था. उसने फेमस जॉन होपकिंस मेडिकल स्कूल को लीड किया और ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी का एक बहुत ही रिस्पेक्टेड प्रोफेसर बना. और वो नौजवान था सर विलियम ओसियर.
जो 21 वर्ड्स सर विलियम ने पढ़े वे थे” दूर जो धुंधला दिखाई दे रहा है, उसे देखना हमारा मेन काम नहीं है बल्कि जो क्लीयरली हमारे हाथ में है उसे देखना है”
इसका मतलब है कि हम उन कामो या टास्क पर ज्यादा फोकस करे जो हमें अभी करने है बजाये इसके कि हम फ्यूचर के बारे में टेंशन ले. सर विलियम ने येल युनिवर्सिटी में एक स्पीच दी थी जिसमे उन्होंने स्टूडेंट्स को डे-टाईट कम्पार्टमेंट में रहने के लिए एंकरेज किया. सोचो कि आप अपने पास्ट के दरवाजे लॉक कर सकते हो. फिर आप अपने फ्यूचर के दरवाजे भी लॉक कर लेते हो तो अब आपके हाथ में जो बचेगा वो है आपका प्रेजेंट यानी आज और अभी.
डे टाईट कम्पार्टमेंट का मतलब है हर एक दिन के हिसाब से जीना. खुद को allow करे कि आप सिर्फ उस चीज़ के बारे में सोचे जो उस वक्त आपके सामने मौजूद है. अपने दिमाग को पास्ट या फ्यूचर में ना भटकने दे. सर विलियम का ये मतलब नहीं था कि आप फ्यूचर के लिए बिलकुल भी प्रीपेयर ना हो. मगर उसको लेकर फ़िक्र करने के बजाये अपनी सारी एनर्जी आज के टास्क में लागाये तो ज्यादा फायदेमंद है. जो भी करे उसे पूरे दिल से करे, अपना बेस्ट दे. बस यही आपको करना है फिर तो आपका फ्यूचर बढ़िया होगा ही होगा.
रेट (sand) का एक दाना एक टाइम में, एक टास्क एक दिन में” हम अपने पास्ट और फ्यूचर के बीच में खड़े रहते है. पास्ट एक लम्बी हिस्टरी है और फ्यूचर बहुत बड़ा है. किसी ने इसे नहीं देखा. और हो सकता है कि हम इतनी लंबी जिंदगी ना जी पाए. तो फिर क्या फायदा कि गुज़रे हुए और आने वाले टाइम के बारे में सोच-सोच के परेशान हो. हमें फिर्क करनी चाहिए तो सिर्फ आज की.
दिन-रात फ़िक्र करने से बहुत से लोग बीमार भी पड़ जाते है. ऐसे लोग नर्वस ब्रेकडाउन या फिर एक्सट्रीम बॉडी पेन के शिकार होते है.
इससे तो अच्छा है कि उन कामो पर ध्यान दिया जाए जो हमें आज करने है. सुबह उठने से लेकर रात सोने तक हमें बस अपने आज में जीना चाहिए. इससे नींद भी अच्छी आएगी और आने वाली सुबह भी फ्रेश होगी.
मिशिगन की मिसिज ई.के. शील्ड्स के सुसाइड करने तक की नौबत आ गयी थी कि तभी उन्होंने अपने आज में जीने की इम्पोर्टेंस समझी. अपने पति की मौत के बाद वो गरीबी झेल रही थी और काफी डिप्रेस्ड हो गई थी.
मिसिज शील्ड्स किताबे बेचने के अपने पुराने धंधे पर लग गई. उसे लगा काम करने से उनका मन बहल जाएगा. मगर अकेलापन एक बिमारी की तरह होता है जो धीरे-धीरे आता है. अकेले खाना, अकेले ड्राइव करना, यही अकेलापन उसे अंदर ही अंदर खा रहा था. ऊपर से कोई स्कूल उसकी किताबे खरीदने को तैयार नहीं था. उसे कहीं भी सक्सेस नज़र नहीं आ रही थी.
जब जीने की कोई वजह ना लगे तो इंसान टूट जाता है. मिसिज शील्ड्स पूरी तरह होपलेस हो चुकी थी. तंग आकर उसने अपनी जान देने की ठान ली. मिसिज शील्ड्स को कार पेमेंट और रूम रेंट का भी इन्तेजाम करना था. उसे लगने लगा कि शायद उसे खाने के भी लाले पड़ जायेगे अगर बिमाग पड़ी तो डॉक्टर की फीस कहाँ से लाएगी? जो एक चीज़ मिसिज शील्ड्स को सुसाइड करने से रोक रही थी वो ये कि अगर वो मर जाएगी तो उनकी बहन को बेहद दुःख होगा और वो बेचारी फ्युनरल का खर्चा नहीं उठा पाएगी.
फिर एक मिसिज शील्ड्स ने एक आर्टिकल देखा. इसे पढ़कर उन्हें जीने की हिम्मत मिली. उस आर्टिकल में लिखा था” समझदार आदमी के लिए हर एक दिन नया होता है” उसने वो आर्टिकल वहां टांग दिया जहाँ रोज़ उस पर नज़र पढ़ सके. उसने अब अपने पास्ट को भूलकर और आने वाले कल की फ़िक्र छोड़कर जीना सीख लिया था. मिसिज शील्ड्स रोज सुबह उठकर खुद को रीमाइंड कराती थी” आज एक नयी जिंदगी की शुरुवात है”.
मिसिज शील्ड्स अपनी गरीबी और अकेलेपन के डर से बाहर आ पाई. उसने खुशहाल और पोजिटिव तरीके से जीना सीख लिया था. उसका हर दिन अब बेहतरीन गुजरने लगा क्योंकि वो बस अपने आज को जीने लगी थी. बस एक बात उसने दिमाग में रखी” समझदार आदमी के लिए हर दिन नयी जिंदगी है”
हम क्यों अपने प्रेजेंट से दूर भागते है ? क्यों हम हमेशा फ्यूचर के सुहाने सपने देखते है और आज की खुशियों को नज़रंदाज़ कर देते है ?
जब हम बच्चे थे तो जल्दी से बड़े होना चाहते थे. और जब बड़े हो जाते है तो शादी करने के सपने देखते है. फिर एक दिन हमारी शादी भी हो जाती है तब हम रिटायर्मेंट के सपने देखने लगते है. और जब फाइनली रिटायर्मेंट का दिन आता है तो हमें मह्सूस होता है कि हमने कितना कुछ खो दिया. जिंदगी जिसे हम देर से समझते है दरअसल हर दिन हर पल को जीने का नाम है”
एक पुरानी रोमन कहावत है” “Carpe Diem”.जिसका मतलब है “दिन को भरपूर जियो” आप अपनी जिंदगी के चाहे किस मोड़ पर हो, इसे एन्जॉय करो, इसे जियो. जिंदगी में जो भी मिला है, उसे सराहो. ना पास्ट की फ़िक्र करो ना फ्यूचर की. बस उस पर फोकस करो जो आज करना है.
क्योंकि पास्ट आपको बस उदास करेगा. जो भी बुरी यादे है, रीग्रेट्स है उन सबको पीछे छोड़ दो. जो हो गया उसे भूल जाओ”  और जहाँ तक फ्यूचर की बात है तो आने वाले कल में कई बाते हो सकती है. आपके फ़िक्र करने से कुछ होने वाला नहीं. जो होना है वो तो होकर रहेगा. आज के बारे में सोचे आज आपके क्या टास्क है? अभी इस वक्त आप कहाँ है? अपने आज को अप्रेशियेट करे. हर रोज़ एक जिंदगी जिए. जो 24 घंटे आपको मिले है सिर्फ उनपर फोकस करे और ये देखे कि इन 24 घंटो को आप कैसे बेहतरीन बना सकते है. क्या आप ये 24 घंटे सिर्फ टेंशन में गुजारेंगे ? या फिर इन्हें आप अपने करियर, अपने करीबी लोगो और जिंदगी की खुशियों को एप्रिशिएट करने में बिताएंगे.
आप देख्नेगे कि कैसे हर एक दिन भरपूर जीकर आपको जिंदगी से कितना कुछ मिल सकता है. आप हर पल का मज़ा लेंगे और अपने हर टास्क पर फोकस कर पायेंगे. जैसा कि सर विलियम ने कहा है “ जितनी भी सक्सेस मुझे मिली है उसका सारा क्रेडिट मै फ्यूचर की फ़िक्र छोड़कर अपने आज के टास्क को पूरा करने की पॉवर और अपना बेहतरीन करने की कोशिश को देता हूँ.
अपनी पत्नी को बर्तन साफ़ करता देख मै बेफिक्र जिंदगी जीना सीख गया
महान विलियम वुड पेट के जानलेवा दर्द से परेशान रहते थे. उन्हें इतना दर्द होता था कि वो रात में सो नहीं पाते थे. उनके पिता की स्टमक कैंसर से मौत हुई थी. महान वुड को लगता था कि उन्हें भी शायद यही बिमारी है.
विलियम वुड अपना चेकअप करवाने हॉस्पिटल गए. एक स्पेशलिस्ट ने उनका एक्जामिन किया. डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनके स्टमक का एक्स रे एकदम क्लियर है. उसने उन्हें कुछ दवाईया लिख के दी जिससे उन्हें आराम आ जाए और चैन से सो सके. डॉक्टर ने ये भी कहा उनके स्टमक पेन की वजह उनका इमोशनल स्ट्रेस है.
महान विलियम वुड बहुत बिजी रहते थे. उन पर हमेशा अपने टास्क फिनिश करने की धुन रहती थी जिससे  वो आराम नहीं कर पाते थे. वे हमेशा जल्दी में रहते थे और आंक्शियस और टेन्स फील करते थे. एक वक्त में उनके दिमाग में हज़ार बाते आती थी. फिर उन्होंने अपने डॉक्टर की एडवाइज़ फ़ॉलो करनी शुरू कर दी उन्होंने हर जिम्मेदारी अपने सर लेने की आदत छोड़ दी और अब वे हर मंडे रेस्ट करने लगे थे.
एक दिन वे अपनी डेस्क साफ़ कर रहे थे जिसमे उन्हें कुछ ऐसे नोट्स और इम्पोर्टेन्ट पेपर मिले जो अब काम के नहीं थे. एक एक करके विलियम ने वो सारे पेपर डस्टबिन में फेंक दिए. तभी उन्हें एक आईडिया आया कि जैसे वे वेस्ट पेपर डस्टबिन में फेंक रहे है उसी तरह बीते हुए कल की हर प्रॉब्लम को तोड़-मरोड़ कर अपनी जिंदगी से बाहर फेंका जा सकता है.
अपने पास्ट का बर्डन लेकर चलने का कोई फायदा नहीं है. अच्छा होगा कि उसे भी किसी रद्दी पेपर की तरह फेंक दिया जाए. एक दुसरे मौके पर विलियम वुड ने देखा कि उनकी पत्नी बर्तन साफ़ करते हुए कुछ गा रही थी. उन्होंने खुद से कहा” देख, बिल तुम्हारी बीवी कितनी खुश लग रही है. हमारी शादी को अठारह साल हो गए है और वो इतने सालो से बर्तन धो रही है”
विलियम ने सोचा अगर उनकी बीवी को पहले ही पता होता कि शादी करने के बाद उसे इतने सालो तक बर्तन धोने पड़ेंगे तो वो शायद कभी उनसे शादी के लिए हाँ नहीं करती. महान विलियम वुड को र्रियालाइज हुआ कि उनकी बीवी को ये काम ज़रा भी बुरा नहीं लगता क्योंकि वो हर रोज़ के हिसाब से बर्तन धोती है. उसके कल के गंदे होने वाले बर्तनों की फ़िक्र आज नहीं है. और ना ही वो उन बर्तनों के बारे में सोचती है जो उसने कल साफ़ किये थे.
उन्हें समझ आ गया कि उनकी बिमारी की वजह यही है कि वे हर काम तुरंत पूरा करने की कोशिश में लगे रहते है. वो दरअसल कोशिश कर रहे थे कि” आज के बर्तन, पीछले दिन के बर्तन और आने वाले कल के बर्तन जो अभी गंदे भी नहीं हुए, उन सबको वे आज ही साफ़ कर ले, किसी भी सूरत में’. और यही विलियम वुड की सबसे बड़ी गलती थी जो उन्हें रियेलाइज हुई. वे दुसरो को हमेशा सही ढंग से जीने की नसीहत देते थे मगर खुद अमल करना भूल गए थे. महान विलियम वुड ने जब अपना रूटीन चेंज किया तो उन्हें नींद भी बढ़िया आने लगी और उनका स्टमक पेन भी गायब हो गया था.
ये याद रखे कि हर दिन को उस दिन के हिसाब से जीये. क्योंकि जब आप बीते हुए और आने वाले टाइम का बर्डन लेकर चलेंगे तो होगा कुछ नहीं बस आपकी बॉडी सफ़र करेगी और लास्ट में आपके हाथ कुछ नही लगने वाला.
वक्त हर चीज़ का मरहम है
लुईस मोंटेंट जूनियर को लगता था कि उन्होंने अपनी जिंदगी के 10 साल खो दिए है. और वो वक्त था उनकी 18 से 28 की उम्र का. लुईस को ऐसा इसलिए लगता था क्योंकि वे तब हर चीज़ की फ़िक्र करते थे. अपनी जॉब, परिवार, हेल्थ और कई तरह की इनसिक्योरिट उन्हें थी. जबकि वे साल उनकी जिंदगी का सबसे बेस्ट टाइम हो सकता था मगर उन्होंने उसे टेंशन में खो दिया.
लुईस नए लोगो से मिलने से कतराते थे उन्हें एक तरह का इन्फियेरिटी कोम्प्लेक्स था. उनकी यही इनसिक्योरिटी उनकी जिंदगी छीन रही थी. उन्होंने तीन जगह जॉब के लिए अप्लाई किया था और तीनो जगह से वे रिजेक्ट हुए थे क्योंकि उनमे इतना कोंफीडेंस तक नहीं था कि वे अपने एम्प्लोयी को अपनी खूबियाँ बता सके.
और तब एक दिन उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने उनकी जिंदगी को बदल कर रख दिया. वे एक ऐसे इंसान से मिले जिसकी जिंदगी में उनसे भी ज्यादा प्रोब्लेम्स थी. फिर भी वो इंसान खुश लग रहा था. उस आदमी का नाम बिल था.
बिल 1929 में अपनी सारी जमापूँजी गँवा चूका था. फिर दुबारा 1933 में भी उसके साथ यही हुआ था. 1937 में भी वो बैंकरैप्ट हुआ था. हालांकि उसने काफी परेशानिया झेली थी मगर वो फिर भी नहीं टूटा. उसने कितने ही लोगो से क़र्ज़ ले रखा था. कई सारे लोग उसके दुश्मन थे तब भी वो मजबूती से खड़ा था. लुईस को बिल से जलन हो रही थी कि वो उसकी तरह स्ट्रोंग क्यों नहीं है. बिल ने लुईस को अपना सीक्रेट बताया. उसने कहा कि अगली बार जब कोई बड़ी मुसीबत आये तो पेपर की एक शीट और एक पेन्सिल अपने पास रखे. जो भी प्रॉब्लम उसे फेस करनी पड़े उसकी डिटेल उस पेपर में लिखने के बाद वो उसे अपने डेस्क की किसी ड्राअर में डाल दे. दो हफ्ते बाद फिर से वो पेपर पढ़े. जो तुमने उस पेपर में लिखा था अगर वो अब भी तुम्हे तंग कर रहा है तो वापस उसे फिर से दो हफ्ते के लिए ड्राअर में रहने दे. आपकी परेशानियों वाली वो लिस्ट अभी भी ड्राअर के अन्दर है मगर इस बीच आपके आस-पास काफी कुछ बदल गया होगा. आपने नोटिस भी नहीं किया होगा मगर आपकी कुछ प्रॉब्लम अपने आप ही सोल्व हो गयी होंगी.
बिल कहते है” मैंने महसूस किया कि अगर मै पेशेंस रखता हूँ तो मेरी सारी चिंता फ़िक्र ऐसे गायब हो जाती है जैसे हवा निकलने से बलून फुस्स हो जाता है. लुईस को बिल की एडवाइस हमेशा याद रही. इससे उनको बहुत सी चीजों में मदद मिली. तो अभी आपको किस बात की फ़िक्र सता रही है ? आपको एहसास होगा कि जो अभी सोल्व नहीं हो रहा, वो टाइम के साथ खुद ही सोल्व हो जायेगी.
ऐसे पांच तरीके जिसे में अपनी चिंता दूर करने के लिए यूज़ करता हूँ.
प्रोफ़ेसर विलियम फेल्प्स को लगता था कि उनकी आँखे अब नहीं रही. पांच मिनट कुछ पढ़ते ही उनकी आँखे दुखने लगती थी. उनसे खिड़की के बाहर भी नहीं देखा जाता था. ऐसा लगता था जैसे कोई उनकी आँखों में सुई चुभो रहा है. प्रोफेसर विलियम को डर था कि कहीं उन्हें अपनी आँखों की वजह से टीचिंग न छोडनी पड़ जाए. एक दिन उन्हें एक स्पीच के लिए इनवाईट किया गया.वहां लाइट इतनी ब्राइट थी थी कि प्रोफ़ेसर को बार-बार अपनी नज़रे फ्लोर की तरफ करनी पड़ रही थी. मगर जब उन्होंने स्टूडेंट्स को एड्ड्रेस करने के लिए उनकी तरफ देखना शुरू किया तो उन्हें आँखों में पेन महसूस ही नहीं हुआ. वे पूरे 30 मिनट तक इसी तरह स्पीच देते रहे. प्रोफ़ेसर विलियम को लगा कि अपने टीचिंग के पैसन की वजह से उन्होंने अपने दर्द को जीत लिया था. जब उनका दिमाग कोई बेहद ज़रूरी काम में लगा होता है तो उन्हें अच्छा महसूस होता है.
टीचिंग के लव ने प्रोफ़ेसर विलियम को जिंदगी जीना और इसे एन्जॉय करना सिखा दिया था. वो अपना हर दिन ऐसे जीते थे जैसे कि वो उनका पहला और लास्ट डे हो. जब वे सुबह उठते थे तो अपने स्टूडेंट्स से मिलने का वेट करते थे. ये उनक एन्थूयाज्म ही था जो उन्हें सारे दुःख दर्द से निजात दिलाता था. और अपने पेन और दुःख से छुटकारा पाने का ये पहला मेथड है.
और दूसरा मेथड जो प्रोफ़ेसर विलियम ने अपनाया वो था की कोई अच्छी सी किताब पढके टेंशन से दूर रहे. जब आप कोई बुक पढ़ते है तो आपका दिमाग उसमे इतना डूब जाता है कि आपको और कुछ याद ही नहीं रहता. तीसरा मेथड है फिजिकल एक्टिविटी. एक बार प्रोफेसर विलियम डिप्रेस्ड हो गए थे उन्होंने क्या किया कि खुद को कई तरह की फिजिकल एक्टिविटी में लगा लिया. वे हर सुबह टेनिस खेलने लगे. फिर नहाने के बाद वे अपना लंच लेते थे दोपहर में वो गोल्फ खेलने चले जाते. और कभी-कभी रात में घंटो तक डांस करते रहते. उन्होंने महसूस किया कि जब उनकी बॉडी पसीना बहाती है तो दिमाग से ऑटोमेटिकली सारी परेशानिया गायब हो जाती है. चौथा मेथड है खुद को किसी भी तरह के प्रेशर और जल्दबाजी से दूर रखे. प्रोफ़ेसर विलियम को कनेक्टीकट के फोर्मर गवर्नर विल्बुर क्रॉस से एक एडवाइस मिली. मिस्टर क्रॉस ने उन्हें बताया “ कई बार मुझे एक ही साथ में कई सारे काम करने होते है जिससे मै प्रेशर में आ जाता हूँ तब उस वक्त में क्या करता हूँ कि रीलेक्स बैठकर बस अपना पाइप पीता रहता हूँ और कुछ नहीं’
टेंशन भगाने का प्रोफ़ेसर विलियम का पांचवा और लास्ट मेथड है ये याद रखना कि टाइम और पेशेंस हर प्रॉब्लम को सोल्व कर देता है. कोई भी मुश्किल आये वे उसे एक अलग सोच के साथ देखते है. प्रोफेसर विलियम खुद से कहते है” दो महीने हो जाने दो फिर मैं इसकी परवाह नहीं करूँगा तो अभी क्यों करू?  .
एक बार में एक काम, भले आदमी
एक बार पेनिसिल्वेनिया के एक हंटिंग क्लब में एक बूढा तोता था. उसका पिंजरा दरवाजे के साथ लटका रखता था. जब भी कोई वहां आता तो तोता ये बोलता था एक बार में एक काम करो भले आदमी.’ वो बूढा तोता बस यही रटता रहता था क्योंकि उसे यही सिखाया गया था.
कहने का मतलब है कि आप पर चाहे जितनी भी रिसपोंसेबिलिटी हो फिर भी काल्म और कम्पोजड रहने की कोशिश करे. एक एक करके ही अपनी हर रीस्पोंसेबिलिटी पूरी करे.
कैसे जॉन डी. रॉकफेल्लर पैन्तालिस सालो तक उधार की जिंदगी जीते रहे
33 की उम्र में जॉन डी. रॉकफेलर.,सर मिलेनियर बन गए. जब वे 43 के हुए उस वक्त तक उनकी कंपनी स्टैंडफोर्ड आयल लार्जेस्ट मोनोपली कंपनी बन चुकी थी. मगर 53 साल के होते होते उनकी बिजनेस धीमा पड़ने लगा था. जॉन डी. अपने जीवन की उंचाईयों को छू लेते मगर उनकी हेल्थ गिरने लगी थी. डॉक्टर के हिसाब से ऐसा उनकी लाइफस्टाइल की वजह से हुआ था. जॉन डी. अपने बिजनेस की दिन-रात फ़िक्र किया करते थे. उनके बाल गिरने लगे थे वे टकले हो गए थे. कभी वे एक स्ट्रोंग इंसान हुआ करते थे मगर अब काफी कमज़ोर हो गए थे. उनकी स्किन भी अब स्किन पीली पड़ गयी थी. जॉन डी. के पास ज़रा भी फुर्सत नही होती थी. किसी भी शौक या आराम के लिए उनके पास वक्त ही नहीं था. बस पैसा कमाना ही उनका मकसद बन गया था. जिसकी वजह से हर टाइम प्रेशर और टेंशन में रहते थे. 
जॉन डी हमेशा खुद को ये रीमाइंड कराते थे कि शायद उनकी सक्सेस टेम्पररी थी. उनके बिजनेस पार्टनर जोर्ज गार्डनर उन्हें सेलिंग के लिए इनवाईट करते मगर जॉन डी. कभी नहीं जाते थे. उनका वीकेंड भी ऑफिस में ही गुज़रता था.
वो हंसना भूल गए थे, सबको उनसे डरते थे. जॉन डी. किसी की भी अच्छाई नहीं देखते थे. और एक दिन वो भी आया जब उनकी मोनोपोली फेल हो गयी. उनके राइवल्स पूरी पॉवर से वापस आ गए थे. उनकी आयल कंपनी ने जिन लोगो को अब्यूज किया था वे सब अब चेंज की डिमांड कर रहे थे.
जॉन. डी की हेल्थ गिरती चली गयी. उनकी रातो की नींद उड़ गयी थी वे ढंग से खा नहीं पाते थे. उनके डॉक्टर्स ने उन्हें उनकी सही हालत से वाकिफ करा दिया था. या तो वे कंपनी चुने या फिर अपनी हेल्थ. अगर वे रिटायर नही हुए तो 53 की उम्र में मर सकते थे. और उनकी मौत का कारण होगा उनका डर, लालच और टेंशन. तो आखिर जॉन डी. को अपनी कंपनी छोडनी ही पड़ी. उनके डॉक्टर्स ने उन्हें फॉलो करने के लिए 3 हेल्थ रूल्स बताये. पहला तो ये कि कभी टेंशन ना ले. जॉन डी. को हर हाल में टेंशन देने वाली बातो से दूर रहना था. दूसरा कि उन्हें पूरा रेस्ट करना है. रेस्ट के साथ-साथ किसी भी तरह की एक्सरसाइज़ करनी ज़रूरी है. उन्हें आउट डोर एक्टिविटी अपने रूटीन में शामिल करना चाहिए. और तीसरी ख़ास बात कि अपने डाईट को हमेशा मोनिटर करना है. जो भी खाना है सही अमाउंट में खाना है.
जब जॉन डी. ने ये सारे रूल्स फोलो करने शुरू दिए तब जाकर उनकी जान बच पायी. वो 53 की उम्र में मरने वाले थे मगर वे अगले 45 सालो तक जिए. उन्होंने गोल्फ खेलना शुरू कर दिया था और अपने कई सारे नेबर्स से दोस्ती भी कर ली थी. थोड़ी बहुत गार्डनिंग भी शुर कर दी थी.
यही नहीं अब वे गाने भी लगे थे. मगर सबसे बड़ा चेंज जो जॉन डी. की जिंदगी में आया वो ये कि वे अब दुसरो की परवाह करना सीख गए थे. जब वे रिटायर हुए तो उनके पास काफी वक्त था सोचने के लिए. जॉन डी. ने महसूस किया कि जितना पैसा उनके पास था उससे वे ना जाने कितने ही लोगो की जिंदगी में खुशियाँ ला सकते थे. अब उन्होंने पैसे कमाने के बारे में सोचना छोड़कर लोगो की हेल्प करने लगे थे.
जॉन डी. ने लेक मिशिगन के एक छोटे से कॉलेज की मदद भी की. उन्होंने मिलियंस इन्वेस्ट करके इसे बंद होने से बचा लिया था. वो छोटा कॉलेज बाद में शिकागो युनिवेर्सिटी बना. जॉन डी. ने माइनोरिटीज़ के स्कूल जैसे तस्कीगी कॉलेज को भी काफी पैसा डोनेट किया.
एक बार साउथ यू.एस. में हुकवर्म की बीमारी फ़ैल गयी थी. जो भी इस बीमारी से इन्फेक्ट होता था उसके इलाज़ में 50 सेंट लगते थे. जॉन डी. ने इस बिमारी से लोगो को बचाने के लिए एक ही बार में मिलियंस डोनेट कर दिए ताकि इस बीमारी को से एक बार में ही हमेंशा के लिए छुटकारा पाया जा सके. और यही से रॉकफेलर फाउंडेशन की शुरुवात हुई. आज रॉकफेलर वक वर्ल्डवाइड ओर्गेनाईजेशन बन गया है जिसका ऐम है बिमारीयों और जानकारी के अभाव से लड़ना.
रॉकफेलर ने कई रिसर्च के लिए फंडिंग भी की है. जॉन डी. की हेल्प की वजह से ही साइंटिस्ट मिरकल ड्रग पेनिसिलिन बनाने में कामयाब हो पाए. हुमेनिटी को इन्फ़्ल्युएन्जा, मलेरिया और ट्युबरकुलोसिस जैसे बीमारियों से बचाकर उसकी प्रोग्रेस में रॉकफेलर फाउंडेशन ने काफी मदद की है.
जॉन डी. ने अपना सारा पैसा डोनेट कर दिया. उनकी कंपनी स्टैंडफोर्ड आयल कंपनी कौर्ट केसेस हार गयी थी जिसकी वजह से उन्हें कई मिलियंस का नुकसान भी हुआ. मगर जैसा कई लोगो को लगा कि वे टूट कर बिकार जायेंगे मगर ऐसा नहीं हुआ.. जॉन डी. अब अपनी जिंदगी से खुश थे. जॉन डी. ने अब बेवजह फ़िक्र करना छोड़ दिया था. इन्होने अब जीना सीख लिया था और वे पूरे 98 सालो तक जिए.
कन्क्यूलेजन
ये समरी आपको बताएगी कि किस तरह एक वक्त में ही काम करे जिस पे आप पूरा ध्यान लगा पाए. अपना सारा एफोर्ट डाल पाए; बस अपने पास्ट को भूल जाए सिर्फ प्रेजेंट पर सारा ध्यान दे. जो सामने है बस उसी पर फोकस करे कि आज आपको क्या काम करने है, आपके टास्क क्या है? खूब मेहनत करे. अगर आप अपना बेस्ट एफोर्ट देंगे तो फ्यूचर अपना ध्यान खुद ही रख लेगा.
आपने इस किताब से बेफिक्र जीने के कई तरीके सीखे है. तो जो आपके लिए बेस्ट है आप वो चूज़ कर सकते है. जो कुछ भी आपने आज सीखा उसे अप्लाई करके दिखाए |

 स्रोत- GIGL

टिप्पणियाँ