एक वेश्या के माध्यम से हुआ विवेकानंद को संन्यासी होने का अनुभव

एक वेश्या के माध्यम से हुआ विवेकानंद को संन्यासी होने का अनुभव


दोस्तों 12 जनवरी को युवा दिवस है , और
हम सभी इसे स्वामी विवेकानंद के सम्मान में हर वर्ष इसी दिन युवा दिवस के रूप में मनातें है। लेकिन क्या आप जानतें है एक वेश्या के माध्यम से हुआ था विवेकानंद को संन्यासी होने का अनुभव। आइये पढतें है स्वामी जी का ही ऐसा ही एक संस्मरण।

स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो के कोलंबस हाल में चल रहे धर्मसंसद में भाषण देकर पूरे विश्व को ये एहसास कराया कि भारत विश्व गुरु था और है। 

अमेरिका प्रस्थान से पहले स्वामी विवेकानंद जी जयपुर के  महाराजा के महल में ठहरे थे। राजा विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस का परम भक्त था। स्वामी विवेकानंद जी के स्वागत के लिए राजा ने एक भव्य आयोजन किया। इसमें वेश्याओं को भी आमंत्रित किया गया था।राजा यह भूल गया कि वेश्याओं के माध्यम से एक संन्यासी का स्वागत करना उचित नहीं है। विवेकानंद उस समय थोड़े अपरिपक्‍व थे। वे अभी पूरी तरह  से संन्‍यासी नहीं बने थे। जब उन्‍होंने वेश्‍याओं को देखा तो अपना कमरा बंद कर लिया। जब राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने विवेकानंद से क्षमा मांगी।

जयपुर के राजा ने कहा कि उन्होंने वेश्या को इसके पैसे दे दिए हैं, लेकिन ये देश की सबसे बड़ी वेश्या है, अगर इसे ऐसे चले जाने को कहेंगे तो उसका अपमान होगा। आप कृपा करके बाहर आएं। 

स्वामी विवेकानंद कमरे से बाहर आने में डर रहे थे। उसी समय वेश्या ने गाना गाना शुरू किया, उसने एक सन्यासी गीत गाया। गीत बहुत सुंदर था। गीत का अर्थ कुछ इस प्रकार था- 

''मुझे मालूम है कि मैं तुम्‍हारे किसी भी योग्‍य नहीं, तो भी तुम तो जरा ज्‍यादा करूणामय हो सकते थे। मैं राह की धूल ही सही, यह मालूम मुझे। लेकिन तुम्‍हें तो मेरे प्रति इतना विरोधात्‍मक नहीं होना चाहिए। मैं कुछ नहीं हूं। मैं अज्ञानी हूं। एक पापी हूं। पर तुम तो पवित्र आत्‍मा हो। तो क्‍यों मुझसे भयभीत हो तुम?''

स्वामी विवेकानंद जी ने अपने कमरे से इस गीत को सुना, वेश्‍या ऐसा रोते हुए गा रही थी। उन्होंने उसकी स्थिति का अनुभव किया और सोचा कि वो क्या कर रहे हैं। 

स्वामी विवेकानंद जी से रहा नहीं गया और उन्होंने कमरे का गेट खोल दिया। स्वामी विवेकानंद जी मानों ऐसा लग रहा था कि वो एक वेश्या से पराजित हो गए। वो बाहर आकर बैठ गए। 

उस रात उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, ''ईश्‍वर से एक नया प्रकाश मिला है मुझे। डरा हुआ था मैं। जरूर कोई लालसा रही होगी मेरे भीतर। इसीलिए डर गया मैं। किंतु उस औरत ने मेरी आत्मा को पूरी तरह झकझोर दिया। मैंने पहले कभी नहीं देखी ऐसी विशुद्ध आत्‍मा।'

शिक्षा- इस घटना से स्वामी विवेकानंद जी को तटस्थ रहने का ज्ञान मिला, आपका मन दुर्बल और निसहाय है। इसलिए कोई दृष्‍टि कोण पहले से कभी तय मत रखो।




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