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जो लोग रोकने की कोशिश करते हैं उनसे जरूरत है चैतन्यता पूर्वक बचने की

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जो लोग रोकने की कोशिश करते हैं उनसे जरूरत है चैतन्यता पूर्वक बचने की जब कभी भी हम कोई नया कार्य आरंभ करने का प्रयास करते हैं तो हमारे आसपास के लोग ऐसा करने से हमेशा रोकने की कोशिश करते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि रोकने वाले को स्वयं इसके बारे में कुछ भी पता नहीं होता। एक समय की बात थी। एक बार कुछ महान वैज्ञानिकों ने एक बड़ा ही रोचक प्रयोग किया। उन्होंने 5 बंदरों को एक ही पिंजरे में बंद कर दिया और उसके बीचो-बीच एक लंबी सी सीढ़ी लगा दी और उस सीढी के ऊपर कुछ केले लटका दिए।               अब जैसे ही एक बन्दर की नजर उन लटके केलों पर पड़ी, तो वह उसे खाने के लिए थोड़ा जैसे ही उसने कुछ सीढ़ियां ही चढ़ रहा था, उस पर ऊपर से तेज ठंडी पानी की बौछार डाली गई, उससे डरकर वह बंदर उतर कर वापस भाग गया।     पर शोध करने वाले यही नहीं रुके। वह सभी को ठंडे ठंडे पानी से भिगाते रहे। जो भी ऐसा करता वह ठंडे-ठंडे पानी से भीग जाता। कुछ समय बाद एक दूसरा बन्दर, सीढ़ी की तरफ दौड़ा, लेकिन उसे भी पानी की तेज धार से नीचे गिरा दिया गया। थोड़ी देर बाद जब तीसरा बंदर केेलों के लिए सीढ़ी चढ़ने लगा  त

यदि आपको खुशी खुशी जीना है, तो ये सब छोड़ दें।

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यदि आपको खुशी खुशी जीना है , तो ये सब छोड़ दें। अहम   यानी ‘मैं’ भाव। हमारी वही हमारी सबसे बड़ी समस्या है। जो न हमें हमारी गलती को मानने देती है , न ही इस बात को स्वीकार करने देती है कि - सामने वाला हमसे अच्छा वह समझदार है , न हम झुकना चाहते हैं। हमारा अहंकार , हमारी झूठी अकड़ ही हमें ठीक से जीने नहीं देती। जिसके कारण न केवल छोटी-छोटी बातें हमें चुभती हैं , बल्कि बने-बनाए सारे कार्य एवं संबंध , तहस-नहस हो जाते हैं। जिसके कारण हमारा विकास रुक जाता है , और हम अपने आसपास एक नरक निर्मित कर लेते हैं। ईर्ष्या ईर्ष्या एक ऐसी समस्या है , जो इंसान को अंदर से खोखला कर देती है। ईर्ह्या सदा हमें दूसरों से उकसाती है तथा जोह्मरे पास है , जो हमें मिला हुआ है उसे देखने नहीं देती। हमारा मन सदा कुढ़ता रहता है तथा दूसरे के सुकून में , आनंद में विग्न डालने की योजनाएं बनाता रहता है। हम स्वयम को हीन समझने लगते हैं। और जो कुछ भी हमारे पास है , हम ऐसे ही गवां बैठते हैं। एक दिन यही जलन हमें जला देती है और दुख होने लगता हैं। क्रोध -   क्रोध यानि गुस्सा जिसकी अग्नि