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चित्र में चरित्र की खूबसूरती

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मैंने एक युवक से पूछा-“ तुम क्या करते हो ?” उसने कहा – “ मैं पढ़ता हूँ। ”  मैंने पूछा –“ क्यों पढ़ते हो? ” उसने कहा- “ पास होने के लिए। ”  मैंने सवाल किया- “ क्यों पास होना चाहते हो? ” उसका जवाब था –“ प्रमाण पत्र पाने के लिए ” ।  मैंने फिर पूछा- “ प्रमाण पत्र क्यों चाहते हो ?”, “ नौकरी पाने के लिए ”- उसका जवाब था।  फिर मैंने पूछा -“ नौकरी क्यों चाहिए? ”, उसने कहा- “ पैसा कमाने के लिए ”।  फिर मैंने पूछा –“ पैसा क्यों चाहते हो? ” । उसने कहा- “ खाने के लिए ”।  मैंने फिर पूछा- “ खाना क्यों चाहते हो? ” उसने कहा-“ जीने के लिए ”। जीना क्यों चाहते हो ?   मेरे इस प्रश्न पर वह चुप रह गया, क्योकि उसके पास आगे कोई जवाब नही था। दुनिया में ऐसे लाखों -करोड़ो लोग होंगे, जिनके पास इस प्रश्न का आज भी कोई जवाब नही है । पर ध्यान रखिये जिंदगी का यह विकृत और सबसे भद्दा चित्र है।       इस चित्र में कोई खूबसूरती नहीं है। जिंदगी की चित्र में चरित्र की खूबसूरती चाहिए। फूलों का सार इत्र है और जीवन का सार चरित्र है।

व्यक्तित्व विकास की वाणी - वेदों से

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ईश्वरीय ज्ञान को वेद कहतें है। वेद विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ है। वेद चार हैं-    ऋग्वेद (अग्नि ऋषि) यजुर्वेद (वायु ऋषि) अथर्वेद ( अंगिरा ऋषि) सामवेद (आदित्य ऋषि)          वेद में मानव के व्यक्तित्व विकास सम्बंधित जो बातें कही गयी है, वे उस काल में जितनी उपयोगी थी, आज भी उतनी ही उपयोगी है। दोस्तों, आज मैं आपके सामने इसका संक्षिप्त भावार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ - ऋग्वेद -     हे प्रभो! अपने ज्ञान के प्रकाश से हमारे अज्ञान को नष्ट करो।   हे प्रभो! हम कुटिलता रहित हो कर शक्ति को प्राप्त करें।     प्रभात बेला में जागने वाला ऐश्वर्यवान होता है।     उपासक को शत्रु नहीं दबा सकता।     प्रभु की संगति से हमारी मति कल्याणी होती है।     सहनशील पुरुषार्थियों से द्वैषियों को ईश्वर दूर कर देता है।      हे जीव ! यज्ञ ही तुझे बढ़ाने वाला है।     यज्ञकर्ता को , देव गण भी चाहतें है।     यज्ञ कर्ता को, ईश्वर बार बार धन देता है।     याज्ञिक को महाबलि भी नहीं मार सकता।     ईश्वर यज्ञकर्ता को   देव बना कर शक्तियुक्त कर द