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फ़रवरी, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुणों की मल्लिका - कृतज्ञता

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कृतज्ञता हमें हमसे बाहर लाती है, जहाँ हम खुद को कहीं बड़े और जटिल इंटरनेट के एक हिस्से एक रूप में देख पाते है।- रॉबर्ट एमन्स           इन दिनों कृतज्ञता, नैतिक व्यवहार का हिस्सा नहीँ रह गयी है और इसी कारण सामूहिक रूप से हम बहुत दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति में पहुँच गए है। रोमन दार्शनिक सिसरो ये यह कहा था कि- कृतज्ञता सभी गुणों की देवी है , तो निश्चित रूप से उनके कहने का अर्थ यह कदापि नही था कि कृतज्ञता अपने निजी सुख की ओर किया गया एक प्रयास है। कृतज्ञता नैतिक रूप से एक जटिल प्रवृत्ति है, और इस गुण को अपना मूड सुधारने के लिए या खुश होने की भावना को महसूस करने के लिए एक तकनीकी या रणनीति में परिवर्तित कर देना भी उचित नहीं होगा।  विचारों के इतिहास में कृतज्ञता को एक क्रिया माना जाता है। उदाहरणार्थ किसी की कृपा का उत्तर देंना, न केवल अपने आप में एक सद्गुण है, अपितु यह समाज के लिए भी बहुमूल्य है। किसी को प्रत्युत्तर देना अच्छी बात है।  सिसर ने कहा था दयालुता के बदले में दयालुता दिखना आवश्यक है। और सेनेका का कहना था जो व्यक्ति कोई लाभ प्राप्त करते हुए आभार जताता है तो वास्तव में अपने ऋण

डाकू और मकड़ी

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प्राचीन समय की बात थी। एक बहुत ही भयानक दिखने वाला डाकू, सुमसान से वन में रहता था। वह रोज-रोज वहां से गुजरने वाले राहगीरों को लूटता था, और उसे दूसरे की जान लेने में, उसे बहुत मज़ा आता था।  वहाँ से गुजरने वाले लोगों के अंदर, उसका बहुत खौफ़ था। समय के साथ वह बूढा हुआ, और पाताल को प्राप्त हुआ। उसके जाने से लोगों में अत्यंत प्रसन्नता की लहर  दौड़ गयी। अब सब खुशियाँ मनाते थे, और प्रेम के साथ रहते थे।           उसके कर्मों के कारण उसे पाताल की प्राप्ति हुई पाताल में जाकर उसने देखा, चारों तरफ अँधेरा था। वहां जाकर, उसका दम घुटने लगा था, उसे काफी कष्ट सहना पड़ता था। एक दिन की बात है, वह बहुत ही दुखी मन से बैठा तथा तभी, एक महात्मा बुद्ध की दिव्य ज्योति प्रकट होती हुई। उसे देख कर, उस डाकू को बहुत ही राहत मिली। महात्मा बुद्ध प्रकट हुए और उन्होंने उसे पाताल की प्राप्ति होने का कारण बताया। उन्होंने उसके सभी बुरे कर्मों को गलत बताते हुए कहा - "यदि आपने अपने जीवन में एक भी अच्छा कार्य किया है, तो बताइये? मैं आप को यहां से मुक्त कर दूँगा । बहुत सोचने के बाद,  डाकू को   एक बात याद आई कि, वह

संयुक्त परिवार का महत्व

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अब तक समूचे इतिहास में हरेक संस्कृति में परिवार समाज की बुनियादी इकाई रहा है। लेकिन आज कई मायनों में यह इकाई संकट से घिरी लगती है। विकासित देशों में बदलती आर्थिक स्थितियों और उपभोग के नये ढांचों से ऐसे परिवारों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है, जहां पति-पत्नी दोनों काम करतें है, उनके पास अपने देखभाल करने के लिए और अपने पारिवारिक जीवन के लिए भी समय नहीं होता। अन्य सामाजिक ताकतों ने बड़े पैमानों पर विस्तृत परिवार, कार्यस्थल, आस पड़ोस और समाज से मिलने वाली सहायता में भी कमी करने में अपनी भूमिका निभाई है। विकासशील देशों में ऐसी प्रवृत्ति गरीबी, पर्यावरणीय दुर्दशा, पुरुष स्त्रियों के बीच बढ़ती असमानताओं और वैश्विक महामारियों के उदय होने की समस्याएं बहुत जटिल हो गयी है।           अपनी पुस्तक में आचार्य महाप्रज्ञ जी ने परिवार को एक राष्ट्र की बुनियाद के रूप में और व्यक्ति को एक कर्ता और विकास के लाभार्थी के रूप में पेश किया है। डॉ कलाम ने भी इस पुस्तक में अपना योगदान सशक्तिकरण, भागीदारी और किसी काम में सभी लोगों को सम्मलित करने पर जोर दिया है। परिवार समाज की एक बुनियादी इकाई है, और इसकी

भ्रष्टाचार मुक्त साम्राज्य

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"भ्रष्टाचार की अपनी कई वजह है, जिनका अच्छी तरह से अध्य्ययन किया जाना चाहिये और उस आधार को ख़त्म कर देना चाहिए जिस पर भ्रष्टाचार  टिका होता है। भ्रष्टाचार का जन्म इस भावना से होता है कि आप मुझे क्या दे सकतें है? इस सोच को उचित शिक्षा और पारिवारिक परंपरा के जरिये मैं आप को क्या दे सकता हूँ ? में बदल दिया जाना चाहिए।"- डॉ कलाम           जिस देश में महात्मा गाँधी, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री और कामराज जैसी विभूतियों ने जन्म लिया और जिन्होंने जीवन मूल्यों पर आधारित जीवन जिया,  उसी देश को अब बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। आज कल भ्रष्टाचार जैसी बुराईयों को हर तरफ देखा जा सकता है, वह हर जगह मौजूद है। जब हम सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की बात करतें है तो हम दरअसल राजनीति, राज्य सरकारों, केंद्रीय सरकार. व्यापार और उद्योग में व्याप्त भ्रष्टाचार की बात करतें हैं। अधिकांश सरकारी कार्यालयों में जनता से जुड़े कार्यों के काउंटरों पर सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार दिखाई देता है। यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य के लिए घूस नहीं देता, तो निश्चित है कि उसका कार्य किस

रुकें न कदम

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राष्ट्र परिवारों से मिल कर बना होता है, और परिवार बनते है व्यक्तियों से। व्यक्ति से राष्ट्र के बीच एक सीढ़ियों जैसा सिलसिला है, जो दोनो तरह से काम करता है- एक दुष्चक्र के रूप में और दूसरा सद्चक्र के रूप में भी - एक जटिल श्रृंखला है, एक दूसरे से जुड़ी घटनाओं की। लोगों के साथ उनके प्रभावों की जानकारी देने का सिलसिला भी चलता रहता है। ये चक्र अपनी गति की दिशा में तब तक चलतें रहतें है, जब तक कि कोई बाहरी कारक इसमें दखल देकर इसे तोड़ नहीं देता। वर्त्तमान में हम जिस दुष्चक्र में फंसें हैं, उन चक्करों को रोकने के लिए क्या करना होगा? कौन इस चक्र को तोड़ेगा ? डॉ कलाम बतातें है इसका उत्तर। आइये खुद पढ़तें है, उन्ही के द्वारा बताई गयी बातें।           डॉ कलाम बात करते है अनवरत चलने वाले लोगों की, जिसे रोका न जा सके। न रुकने वाले व्यक्तिओं में छह खूबियां होती है।           पहला है सपने देखना समर्पित होना और क्रियाशील होना। हम सभी के अंदर कोई जुनून, कोई लक्ष्य या कोई सपना तो होता ही है। चाहे वह पुस्तक लिखने का हो, चाहे वह भूखों का खाना खिलाने का हो, पेड़ लगाने के लिए हो, मंदिर मस्जिद या सामुदायि

साहस की पहचान

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"जो उचित है वह करने से कतराना साहस की कमी दर्शाता है ।"      साहस की पहली और सबसे महत्वपूर्ण पहचान यह है कि डर का अनुभव होने के बावजूद व्यक्ति वह करता है, जो उचित है। डर और साहस वास्तव में दो भाई हैं। साहस का अर्थ डर का न होना नहीं , बल्कि डर पर जीत हासिल करना है। बहादुर वह नहीं होता जो डर से डर जाये, बल्कि वह होता है जो उस डर पर जीत दर्ज करता है। कोई भी ऐसा प्राणी नही है जो खतरे से सामना होने पर न डरता हो। सच्चा साहस इसमें है कि डर लगने पर भी खतरे का सामना किया जाये। आतंकित होते हुए भी आगे बढ़कर जो करना चाहिये वह कर डालना ही साहस है। जिसे डर नहीं लगता वह मूर्ख है, और जो डर को खुद पर हावी हो जाने देता है वह निस्संदेह कायर है। साहस का अर्थ वह करना, जो करने से आप को डर लगता है। अगर आप डरे नहीं है, तो फिर साहस का सवाल ही नहीं पैदा होता। प्रर्तिक्रिया करने के बजाये हमें कुछ कर डालने का साहस होना चाहिए।      बचपन से ही एक बालक ने मन में उडान भरने का सपना पाल रखा था। इसी वजह से उसने एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग पढ़ी। अपना कोर्स ख़त्म करने के बाद उसने वायु सेना में शोर्ट सर्विस कमीशन

डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के प्रेरक कथन

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कार्यकुशलता और स्वाभिमान आत्मविश्वास को बढ़ाता है। आत्मविश्वास के चार सोपान -     अपना लक्ष्य निर्धारित करें     लक्ष्य की दिशा में कदम उठाएं     तेजी से लक्ष्य की ओर बढ़ते जाएँ       काम काम और काम करते जाएँ मैं चाहता हूँ कि हर एक युवा की जिंदगी में दो सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य जरूर हो, एक तो यह की वह कुछ ऐसा करे कि उसके पास उपलब्ध समय बढ़ जाये। दूसरा यह कि उसके पास जो समय है, वह उतने ही समय में ज्यादा से ज्यादा काम करके अधिक से अधिक उपलब्धियाँ हासिल करें। संकल्प वह शक्ति है, जो हमें तमाम निराशाओं और विघ्नों से पार करने में मदद करती है। वह इच्छाशक्ति जुटाने में भी हमारी मदद करती है, जो कामयाबी का आधार है। आस्था और संकल्प। जिंदगी में तमाम अवसर इन दो पहियों के बीच से निकलतें हैं। अपने सपने पूरे करने की राह में जो भी मुश्किलें आएं, चाहे आप की उम्र कुछ भी हो और आप जिंदगी के किसी भी पड़ाव पर हों, बेहतर भविष्य के सपनों को पूरा करने की कोशिश कभी न छोड़ें। समय की हत्या करना क़त्ल नही, ख़ुदकुशी है। मतलब यह कि अगर समय को बेकार निकल जाने देते है