भला है देना ( डॉ कलाम का एक संस्मरण)



डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम  के बड़े भाई, ए पी जे मुथु मीरा लेबाई मरासयर इस समय 98 साल के हैं, और रामेश्वरम में अपने पैतृक मकान में रहते हैं। हर शुक्रवार वे नोटों की एक छोटी सी गड्डी लेकर जाते हैं, यही कोई 1000 रुपए के करीब और यह रुपए मस्जिद और मंदिर के आसपास के गरीब लोगों में बांट देते हैं। गरीब लोग चाहते हैं कि उनके हाथ से उन्हें कुछ रूपए मिल जाएं, इसलिए नहीं की उनसे उनकी जिंदगी में कोई बहुत बड़ा फर्क पड़ जाएगा, बल्कि इसलिए क्योंकि लोगों को उनके हाथ से लेने में महज़ लेने और देने के ऊपरी काम से कुछ अलग महसूस होता है, कुछ गहरा कुछ गंभीर।
     मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का शरीर के तंत्रिका तंत्र और प्रतिरक्षा तंत्र पर जो पारस्परिक प्रभाव होता है, उसका अध्ययन साइको नूरो इम्युनोलॉजी के तहत किया जाता है। डॉ कलाम के दोस्त विलियम्स सेल्वामूर्ति ने इस क्षेत्र में हो रहे ताजा शोध के बारे में डॉ कलाम को संक्षेप में बताया। ऐसे भरोसेमंद शोध जिनसे पुष्टि होती है कि देने से ना सिर्फ लेने वाले को फायदा पहुंचता है, बल्कि इससे देने वाले की सेहत पर अच्छा असर पड़ता है और और इससे उसे खुशी मिलती है, जिससे समूचे समुदाय को ताकत मिलती है। सेल्वामूर्ति कहते हैं कि दान के धन पर चलने वाली संस्थाओं को दान देने से, सर्दियों में बेघर गरीबों को कंबल दान करने से या गर्मी के दिनों में आने जाने वाले राहगीरों और जानवरों को पानी पिलाने या अपनी मर्जी से भलाई के ऐसे ही कई काम में अपना समय लगाने से एक भी वैसा ही फायदा होता है। मैं आपको देने के पांच ठोस कारण बताता हूं, और साथ में उनसे होने वाले लाभ भी।
      सबसे पहला और सबसे बड़ा कारण तो यह है कि हम अच्छा महसूस करते हैं। यह अच्छा एहसास हमारे शरीर पर अच्छा प्रभाव डालता है, जो दिखाई देता है। जब लोग किसी धर्मार्थ संस्था को दान देते हैं, तो उनके दिमाग का वह हिस्सा सक्रिय हो जाता है जो आनंद, सामाजिक संपर्क और भरोसे से संबंधित है जिससे तेज पूर्णा आभा पैदा होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि परोपकार भरे व्यवहार से मस्तिष्क में एडोर्फिन नमक  एंजाइम का श्राव होता हैं, जिससे अच्छा एहसास होता है। 18 दिसंबर 2005 को डॉ कलाम केरल के कोलाम जिले में माता अमृतानंदमई मठ गये। जहां वे अम्मा की मौजूदगी सुनामी पीड़ितों के लिए बने 500 नए मकान उन्हें सौपने के लिए आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया। अम्मा के चेहरे पर तेज पूर्ण आभामंडल साफ दिखाई दे रहा था।
दूसरे देना हमारी सेहत के लिए अच्छा है। कई तरह के अध्ययन के बाद यह बात सामने आई है कि तमाम किस्म की उदारता का सेहत पर, यहां तक की बीमार और बुजुर्ग लोगों पर भी अच्छा असर होता है। अपनी किताब व्हाई डू गुड थिंग्स हैप्पेन टू गुड पीपल में स्टीफेन ने लिखा है कि दूसरों को कुछ देने से लंबी बीमारियों से जूझ रहे लोगों की सेहत पर अच्छा असर पड़ता है। जिन बुजुर्ग लोगों ने बिना किसी परिश्रम के स्वेक्षा से काम किया, वह ऐसा ना करने वालों के मुकाबले बेहतर स्वास्थ्य के साथ ज्यादा लंबी जिंदगी जीते हैं। देने से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होने के साथ जिंदगी के ज्यादा लंबे होने की संभावना बढ़ने की एक वजह यह है कि ऐसा करने से कई तरह की स्वास्थ्य गत समस्याओं की वजह से बनने वाला तनाव घट जाता है। उन लोगों को सीधा सीधा लाभ होता है, जो खुद देते हैं। डॉ कलाम के भाई इसका अच्छा उदाहरण है। तीसरे, देने से आपसी सहयोग और सामाजिक संबंधों की भावना पड़ती है। जब आप देते हैं, तो आपको भी मिलने की संभावना पहले से ज्यादा बढ़ जाती है। जब आप किसी को देते हैं तो आप ही उदारता के बदले में देने का यह सिलसिला कोई दूसरा आगे बढ़ाता है, कभी वह जिसे आपने दिया है और कभी कोई और इस लेन देन से एक दूसरे पर भरोसे और सहयोग की भावनाओं को बढ़ावा मिलता है। जिससे दूसरों के साथ हमारे रिश्तो की मजबूती आती है। शोध से यह भी पता चला है कि सकारात्मक सामाजिक आदान-प्रदान अच्छे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का मुख्य कारक है। इतना ही नहीं जब किसी को कुछ देते हैं, तो सिर्फ वही हमें अपने नजदीक नहीं पाते हैं, बल्कि हम भी खुद को उन के ज्यादा करीब महसूस करते हैं। दयालु और उदार होने से आप दूसरों को भी ज्यादा सकारात्मक और भलाई के नजरिए से देखते हैं और इससे आप के सामाजिक दायरे में एक दूसरे पर निर्भरता और आपसी सहयोग की भावना को बल मिलता है।
      चौथे, देने से कृतज्ञता पैदा होती है। आप किसी को कोई उपहार दे रहे हैं, या उपहार आपको मिल रहा है, वह उपहार खुद ही आभार की भावना से भर जाता है। उपहार देना कृतज्ञता व्यक्त करने या उपहार पाने वाले में कृतज्ञता की भावना जगाने का तरीका हो सकता है। यह आप खुद महसूस करेंगे, कृतज्ञता खुशी सेहत और सामाजिक संबंध बांधने के लिए बेहद जरुरी है। 1990 के दशक में DRDO में डॉ कलाम के सहकर्मी डॉक्टर हरिद्वार सिंह की जान बचाने के लिए जिगर के प्रत्यारोपण की जरूरत थी डॉ कलाम ने सारी शासन प्रशासन व्यवस्था से लड़ झगड़ कर उन्हें इंग्लैंड भेजने का रास्ता बनाया, और उनके जिगर का प्रत्यारोपण हो सका। जब आप अपने मन में जगी कृताज्ञता के भाव को शब्दों के जरिये या कुछ करके व्यक्त करते हैं, तो सिर्फ आपके अन्दर ही नहीं बल्कि दूसरों के अंदर भी सकारात्मक भाव पैदा होता है। रोज मर्रा की जिंदगी में कृतज्ञता पैदा करना अपनी व्यक्तिगत खुशियों को बढ़ाने की कुंजी है।

       और सबसे बढ़कर देने की भावना हवा में सुगंध की तरफ रहती है। जब हम किसी को कुछ देते हैं तो हम सिर्फ का ही भला नहीं कर रहे होते हैं जिससे हम उपहार दे रहे हैं, बल्कि पानी में कंकड़ गिरने से पैदा होने वाली तरंगों की तरह इसका असर भी सारे समाज में पडता है। जब एक व्यक्ति उदारता का बर्ताव करता है, तो दूसरों को अन्य लोगों के साथ उदारता का बर्ताव करने की प्रेरणा मिलती है। दरअसल देने की नियत तीन तरह से फैलती है। एक व्यक्ति से दूसरे में और दूसरे से तीसरे में नतीजन एक दूसरे से आगे बढ़ता यह सिलसिला हर एक व्यक्ति के संपर्क में आने वाले दर्जनों और यहां तक कि सैकड़ों लोगों तक अपना असर कर सकता है। इनमें से कई को वह लोग जानते ही नहीं होंगे  जिनसे यह सिलसिला शुरु हुआ। सन 2003 में डॉ कलाम ने जन्मजात दिल की बीमारी के शिकार उन गरीब बच्चों के इलाज के लिए एक फंड शुरू करने के लिए केयर फाउंडेशन की एक छोटी सी रकम दी। जिनकी जान बचाने के लिए सर्जरी जरूरी होती है। और आज वह फंड बढ़ कर तीन करोड़ का हो गया है, और उस से अब तक एक हजार से ज्यादा बच्चों को मदद मिली है तो आप चाहे उपहार खरीद कर बाटें, कुछ हासिल करने की सोचे बिना अपना समय दे, या किसी धर्मार्थ संस्था को धन दें । यह देना सिर्फ कुछ पल अच्छा लगने के एहसास से कहीं ज्यादा होता है। इससे आपको बेहतर सामाजिक संपर्क बनाने में मदद मिल सकती है। और आप अपने लोगों के बीच उदारता का एक सिलसिला छोड़ सकते हैं, और अगर इस प्रक्रिया में आप को भी खुशियों की एक बड़ी सी खुराक मिल जाए तो हैरत में मत पड़ियेगा, इसमें कोई शक नहीं कि सच बोलने से, गुस्सा ना करने से, और मांगने पर देने से चाहे कितनी भी कम क्यों ना हो, आप अपनी जिंदगी की पूरी तरह बदल सकते हैं, और अपने आस-पास वालों को भी फायदा पहुंचा सकते हैं।

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