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हिंदी

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हिंदी ही भारत माँ के , माथे की बिंदी है। हुई बहुत सी भाषायें, पर आगे हिंदी है। मीरा महादेवी तुलसी सब,  हुए प्रखर हिंदी से। सूर केशव कबीर तुलसी सब,  चमक उठे हिंदी से। अब तक का इतिहास यही है , भारत माँ की शान हिंदी है। हिंदी ही भारत माँ के , माथे की बिंदी है। हुई बहुत सी भाषायें , पर आगे हिंदी है। शब्द शब्द हर अक्षर में , भरा है प्यार। हर सुख से संपन्न है , हिंदी का संसार। है मर्यादा हिन्द की , पहचान हिंदी है। हिंदी ही भारत माँ के , माथे की बिंदी है। गयी जहाँ अपनी भाषा , सब प्रणत हुए है लोग। नन्द विवेका ने भी इसको, कर दिया सुयोग। हम भारत के वीर सपूतो की, तकदीर हिंदी है। हिंदी ही भारत माँ के , माथे की बिंदी है। है वैज्ञानिक लिपि हमारी, और सरल समर्थ । हो जाये संज्ञान सभी को, समझ सके सब अर्थ। है संस्कृति धरोहर अपनी, प्राण हिंदी है। हिंदी ही भारत माँ के , माथे की बिंदी है।                            -शिल्पी पाण्डेय

उड़ान की काबिलियत (कहानी)

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बहुत समय पहले की बात है , एक राजा को उपहार में किसी ने बाजके दो बच्चे भेंट किये । वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे ,और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया। जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया , और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था। राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे । राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, ” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो ।“ आदमी ने ऐसा ही किया। इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे , पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था , वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया जिससे वो उड़ा था। ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा. “क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”, राजा ने सवाल किया। ” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।” राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दुसरे बाज को भी उसी त

चिंता न करे, चिंतन करे।

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कल, तुम्हे जो करना हो कर लो, मैंने आज तो जीना सीख लिया है। काँटों की इस दुनिया में, फूलो को चुनना सीख लिया है। होनी को सत्य समझ कर, कटु सत्य स्वीकार किया है। कल, तुम्हे जो करना हो कर लो, मैंने आज तो जीना सीख लिया है। दुनिया के सम्मुख आज हम, आनंदित होना सीख लिया है। यह नश्वर वस्त्र देह , सब के सम्मुख सत्य किया है। कल, तुम्हे जो करना हो कर लो, मैंने आज तो जीना सीख लिया है। तथ्य परख निवारण कर, विश्लेषण को अंजाम दिया है। दुविधा की दुनिया छोड़ चले, आज में जीना जान लिया है।                                                        - विकास पाण्डेय

भगवान आप

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बचपन से ही , लाठी का सहारा हो गया। तभी से तू, हमारा हो गया। ऐसे विश्वास, न आता तेरे पे। ऐसी काया पा के , मेरे मन का सहारा हो गया। ऐसी अवस्था का सत्कार , मैंने ही माना है। किसी और ने ये कहा जाना है? जीवन जीने का ईश ही बहाना है। शक्ति देना ,स्वावलम्बी बन सकूँ, एक मुकाम बना सकूँ, तेरे आगे कोई न हो। पंख न दिए तो क्या हुआ? हौसला भी कुछ होता है। हौसलों से उडूँगा, देखता हूँ, साथ कैसे नही देता? गिरूंगा फिर उडूँगा, पर उडूँगा ज़रूर। इच्छा,आस्था और उम्मीदों से, जीतूँगा ज़रूर।                      -विकास पाण्डेय

प्रेम (कहानी)

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एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी।औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया। औरत के पति ने कहा – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” – फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को

हमेशा हँसते रहिये (कहानी)

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अमेरिका की बात हैं. एक युवक को व्यापार में बहुत नुकसान उठाना पड़ा। उस पर बहुत कर्ज चढ़ गया, तमाम जमीन जायदाद गिरवी रखना पड़ी । दोस्तों ने भी मुंह फेर लिया, जाहिर हैं वह बहुत हताश था। कही से कोई राह नहीं सूझ रही थी। आशा की कोई किरण दिखाई न देती थी। एक दिन वह एक park में बैठा अपनी परिस्थितियो पर चिंता कर रहा था। तभी एक बुजुर्ग वहां पहुंचे. कपड़ो से और चेहरे से वे काफी अमीर लग रहे थे। बुजुर्ग ने चिंता का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी कहानी बता दी। बुजुर्ग बोले -” चिंता मत करो. मेरा नाम John D. Rockefeller है। मैं तुम्हे नहीं जानता,पर तुम मुझे सच्चे और ईमानदार लग रहे हो। इसलिए मैं तुम्हे दस लाख डॉलर का कर्ज देने को तैयार हूँ.” फिर जेब से checkbook निकाल कर उन्होंने रकम दर्ज की और उस व्यक्ति को देते हुए बोले, “नौजवान, आज से ठीक एक साल बाद हम ठीक इसी जगह मिलेंगे। तब तुम मेरा कर्ज चुका देना.” इतना कहकर वो चले गए।                   युवक हैरान था. Rockefeller तब america के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे। युवक को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था की उसकी लगभग सारी मुश्किल हल हो गयी। उसके पैरो