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मार्गदर्शन (एक उड़ान की तैयारी )

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दोस्तों, जब कभी भी हम दुविधा में होते है, जीवन मे एक मार्ग दर्शन करने वाला होना आवश्यक हो जाता है , किसी के कहे गए वाक्य हमारे लिए सफलता की कुंजी बन जाते है।       आइये हम ऐसे ही महापुरुषों के द्वारा कहे गए वाक्यो को मस्तिष्क में रेखांकित करने की कोशिश करते है। डा. ऐ पी जे अब्दुल कलाम द्वारा दिए गए कथनों को  अपने मार्गदर्शन का स्रोत बनातें है। 1."मुझे अपने जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करना है, उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मैं ज्ञान एकत्र करूँगा, यदि कोई बाधाऐं आती है तो उस बाधाओं को हराऊंगा और सफलता प्राप्त करूँगा।" 2. ह्रदय की सत्यता , चरित्र में निखार लाती है, चरित्र में निखार आशाओं में उम्मीदें देता है, आशाओं में उम्मीदें देश को क्रमबद्ध करता है, और क्रमबद्धता से देश में शांति होती है, दोस्तों प्रारम्भिक बिंदु था ,"ह्रदय की सत्यता ", मेरे हिसाब से ये बहुत ही आवश्यक बिंदु है। 3.एक युवा होने क नाते , मै लगन के साथ किसी भी कार्य को करूँगा और दूसरों की सफलता का आनंद लूंगा। 4. मैं हमेशा अपने घर, घर के आस पास और वातावरण का स्वच्छ रखूंगा , स्व

उम्र

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उम्र के दराजो ने , आज अपना हाथ छोड़ दिया। जब खुद ने, खुद का हाथ छोड़ दिया तो, और क्या हाथ थामेंगे ! अपने उम्र के अनुभव भी , आज काम न आ सके। नये पीढ़ी के लोगों ने, अनुभवों में , मिश्रित अभिव्यक्ति ला दी है। वो कहते है, जहाँ लक्ष्मी है। वहाँ सब कुछ है आज। पर वे भी जान जायेंगे उस समय, लक्ष्मी की महत्ता को। पुरानी यादों के सिवा, कुछ नही मिलेगा। बस जो है उससे आनंद लो, कि कल का पश्चाताप न हो ।                         - विकास पाण्डेय  मनःस्थिति -              दोस्तों, वृद्धावस्था एक प्रकार से बाल्यावस्था की तरह ही होता है, दोस्तों, ये वही समय है जब हम अपनी उऋिणता का प्रयास करते है । आधुनिकता के दौर ने हम सभी को स्वार्थी बना दिया है, समय के साथ अनुभव भी बदलते रहतें है, आने वाली पीढियों ने अनुभवों में भी बदलाव लाया है । यह अनुभव एक मिश्रित अभिव्यक्ति के रूप में आ जाती है, परन्तु पुराना अनुभव ही नये की आधारशिला बनती है , इसलिए ये आवश्यक नही की नवीन अनुभव ही सर्वोपरी है।  जीवन में धन की महत्ता है, परन्तु धन से अधिक महत्वपूर्ण है , उस प्राचीन धन का आदर करना, जो आज जीवित है क्यों

मन चंचल है

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मन चंचल है, निश्चल है, पारिस्थितिक शाखित है। निर्द्वंद चिन्ताहीन, और शोधित कर्मो पर भी, निश्चचेतित है। मन स्वच्छ नीर है, प्रतिविम्बित है समाज मे, मन वह दर्पण है। मन भाव है, साथ लिए अभाव, ऐसा स्वभाव है। मन अश्व है, मन ही सर्वश्व हैं मन सर्व है, मन ही गर्व है मन ईश्वर है, स्वयं का परमेश्वर है बाल स्वरुप, सर्व धन रूप है मन क्षम्य है, फिर भी अदम्य है मन ज्ञात है, फिर भी अज्ञात है।                  -विकास पाण्डेय मनः स्थिति -        दोस्तों, मन के कई भाव होतें है, जो विभिन्न परिस्थितिओं में परिस्थिति के अनुसार उत्त्पन्न होतें है । एक सुन्दर से बगीचे में बैठ कर, प्रकृति भाव को देखने का प्रयास कर रहा था । निश्चल मन के बालक , खेलते हुए ऐसे प्रतीत हो रहे थे ,मानो चंचलता के सारे गुण ईश्वर ने नन्हे बालको को दियें हो स्वच्छ नीर ह्रदय वाले वे स्वयं ,जगत को भी चमका रहे थे , सभी को आनंदित कर रहे थे । मन अनंत है, उसकी पूर्ति अभाव में  रहती है। पल में यहाँ है तो पल में सूदूर स्थित हो जाता है। परन्तु इसी के द्वारा किसी उम्मीदों से परे , लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है। कई कृत

नीर ह्रदय

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क्षोभित हो जाता हूँ , परिस्थितियों से । सोचता हूँ , ब्रह्म हो जाऊं। पीड़ा हर के लिए, दीनता हीनता , नष्ट हो जाये। परिष्कृत ह्रदय, बन जाये। दीर्धकालीन, ह्रदय , करुणा, और दया का, सामना न करे। ईश्वर तम में, निर्वात में भी, सहज है । सांत्वना है, तुम हो। सोचता हूँ, तुम हो, देखते हो सब, करोगे न्याय, जब होगा अन्याय ।                                              - विकास पाण्डेय मनः भाव -      प्रिय मित्रों आपने राह चलते दीन हीन भिक्षुकों को देखा ही होगा । मानवतावादी एवम् मनुष्य होने के नाते ह्रदय सहम जाता है ,ऐसी परिस्थितियाँ किसने उत्पन्न की ? कहाँ से आएं है ? ये लोग यहां क्यों बैठे है ? दोस्तों, हम सभी ईश्वर के ही रूप है ,ये प्रकृति हमारी जननी है , हम सभी इसी के रूप है । हम सभी ये सब देखते है ,परंतु समय की कमी, आवश्यक कार्य होने के कारण उनकी सहायता करने में असमर्थ रहते है । हम सभी मनुष्य है ,और मानवता हमारा धर्म है। इसलिए अपना कर्तव्य समझ कर निःस्वार्थ भाव से एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए ।        ईश्वर बनने के लिए नही ईश्वरत्व कार्य के लिए।             

लिखता हूँ पर , अभिव्यक्ति नही पाता हूँ ।

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लिखता हूँ पर , अभिव्यक्ति नही पाता हूँ । सोचता हूँ पर , शक्ति नहीं पाता हूँ। सत्य शोधित कर्म पर, वह सृष्ठि नही पाता हूँ। मंथन करता हूँ पर, वो भक्ति नही पाता हूँ। क्रम बद्ध कृतियों के, संयम तट पर, लहरें आती है, कुछ लेकर कुछ, दे जाती है। कर्ता तो वह है, और हम कर्म है। लिखता हूँ पर, अभिव्यक्ति नही पाता हूँ। लहरों की उथल पुथल, समय का बदलाव है। धारा की तरंगें , मन का उन्माद है। खोजता हूँ पर, इच्छित नही हो पाता हूँ । लिखता हूँ पर , सृजित नही हो पाता हूँ ।                              - विकास पाण्डेय

विचार ही , प्रेरणा देते है ।

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मेरे विचार ही , प्रेरणा देते है, स्वयं को । सत पथ, बनाये रखते है, विचलित होते है, जब पथ से। नई ऊर्जा, नया विश्वास देते है। जब भ्रमित होतें है, अपने पथ से। तुम ही सार्थक हो, जीवन का। जो निर्थक होने से वंचित करता है, सकारात्मक हो जाते है, जब कभी, मनोन्माद में होते है। हे ! विचार , धन वैभव हो तुम। प्रेरणा का अनंत, श्रोत हो तुम। बनाये रखना, साथ सदैव, अपने धन वैभव का।                           - विकास पाण्डेय मनः स्थिति -               दोस्तों विचार हमारे मन की उपज होती है हम जैसा सोचते है वैसा ही हमारे मन में तेज आता है। कई लोग ईश्वर के अस्तित्व को नही मानते है ,परन्तु जब आप दुःख और विषाद वाली परिस्थितियों में होंगे एक प्रेरणामयी श्रोत आप का मार्ग दर्शन करेगी ।       दोस्तों ऐसी कोई दैवीय शक्ति ज़रुर है जो हमे दुःख. भ्रमो एवं विषादो से दूर रखती है। हमारे मन की दो चेतन अवस्थाये होती है। 1. अंतः चेतन अवस्था 2. वाह्य चेतन अवस्था । हमारी अंतः चेतन अवस्था , हमारा वास्तविक मार्गदर्शन करती है ,और उसका मार्गदर्शन, वह दैवीय शक्ति करती है । जब कभी हम दुःख, विषादों

विचार

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आत्मविश्वास, नया प्रकीर्णन है । नव उत्साह, एक नव उमंग है । नव प्रभात, चमकीली सी किरण शीतल मंद हवा, मधुर सी शरण, विचार वैभव है। उत्साह नया, पल में जाग्रत, अपलक है । गंभीर अनुभव, संवेदन हमारा है । कृतियाँ नई सी, चिर अनंत है ।                     - विकास पाण्डेय

मन है एक आकृति बनाऊँ

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मन है एक , आकृति बनाऊँ, एक सुन्दर सी कृति बनाऊँ। जी लूं जीवन का सार मैं, एक छोटा सा घर द्वार मैं। मानवता का द्वार सजाऊँ, मन है एक , आकृति बनाऊँ। संघर्षों की क्रमबद्ध कृतियाँ, मानव जीवन की संस्कृतियाँ। सबका आदर मान दिलाऊँ , मन है एक , आकृति बनाऊँ। जीवन का गीत सारबद्ध, हो जीवन एक करबद्ध। एक सुंदर सी कृति बनाऊँ, मन है एक , आकृति बनाऊँ। प्रेम भाव हो सब के मन में, सब कर्मठ हों जीवन में। ऐसी मर्यादा का मान दिलाऊँ , मन है एक , आकृति बनाऊँ।                            - शिल्पी पाण्डेय